अवार्ड
कथा साहित्य | लघुकथा मुकेश कुमार ऋषि वर्मा15 Sep 2022 (अंक: 213, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
तेज प्रताप जी सुबह-सुबह तैयार होकर कहीं जाने वाले थे। ज़रूरी सामान की पैकिंग कर रहे थे, कि अचानक उन्हें चाय की तलब लगी। उन्होंने अपने नौकर तेरह वर्षीय छोटू को आवाज़ दी।
“अरे ओ छोटू! गाड़ी बाद में धोना पहले दो कप चाय बना ले। एक कप मुझे दे जाना और दूसरा मैम के कमरे में पहुँचा देना।”
छोटू साहब का आदेश पाकर चाय बनाने रसोई घर में चला गया। दस-पंद्रह मिनट में चाय का कप ट्रे में सजाकर साहब की सेवा में हाज़िर हो गया।
साहब ने जैसे ही पहला घूँट मारा और पूरा कप छोटू पे दे मारा, “साले तुझे दो साल हो गईं रोटियाँ तोड़ते हुए और तू अभी चाय तक बनाना नहीं सीखा। इतनी मीठी चाय पिलाकर मुझे मारेगा क्या?”
छोटू अपने साहब का ग़ुस्सा देख घिघियाने लगा। तभी अंदर से तेज प्रताप की पत्नी आँखें मलते हुए बाहर आ गई, “क्या बात है? आज सुबह-सुबह क्यों गरम हो रहे हो और कहाँ जाने की तैयारी हो रही है।”
तेज प्रताप का ग़ुस्सा अब कुछ कम हो गया और छोटू को पुनः फटकारते हुए बोले, “अब जा . . . गाड़ी साफ़ कर, यहाँ खड़ा-खड़ा क्या मेरा मुँह देख रहा है।”
छोटू सिर झुकाए चला गया।
तेज प्रताप की पत्नी ने पुनः सवाल किया, “क्यों डाँट रहे थे उसे। चाय में ज़्यादा चीनी डालने के लिए कल मैंने ही बोला था उसे। कल उसने मुझे फीकी चाय दी थी। वैसे आज कहाँ जाने की तैयारी ज़ोर-शोर से चल रही है।”
“अरे, मैडम आपको नहीं पता? मुझे आज अवार्ड मिलेगा। मैंने बाल अधिकारों को लेकर जो शोध किया है व बाल विकास के लिए इतने बड़े-बड़े कार्य किए हैं। उससे सरकार प्रभावित हुई है।”
उसकी पत्नी ने मुस्कुराते हुए बधाइयाँ दीं।
और तेज प्रताप अवार्ड प्राप्ति के लिए निकल पड़े।
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