अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सुख की ओर . . . 

 

जीवन सुख-दुःख का संगम है। आज सुख है तो कल निश्चित ही दुःख आयेगा। ये प्रकृति का नियम है। रात–दिन, सुबह–शाम, स्त्री–पुरुष, धूप–छाँव, धर्म–अधर्म जैसे जोड़े प्रकृति ने बनाए हैं ठीक वैसे ही सुख–दुःख हैं। परन्तु अगर हम ईश्वर में विश्वास रखते हैं तो हमारा दुःख, दुःख न रहेगा, सुख बन जायेगा। गीता में स्पष्ट लिखा है कि जो हुआ वो अच्छा हुआ, जो हो रहा है वो अच्छा ही हो रहा है और जो भविष्य में होने वाला है वह भी अच्छा ही होगा। 

दुःख का मूल कारण इच्छाओं की पूर्ति न होना ही है। वैसे इच्छाएँ जागृत करना बुरा नहीं है। जैसे कहते हैं कि जैसा सोचोगे वैसे बन जाओगे . . . ये बात परम सत्य है, तो क्यों ना हम (जीव) लौकिक कामनाओं का त्याग करके ईश्वर प्राप्ति की ओर अपनी इच्छाएँ जागृत करें। 

आप बिल्कुल चिंता मुक्त हो जाइए, क्योंकि ईश्वर ने आपकी आजीविका पहले से ही निश्चित कर रखी है। आप भटकते रहिए . . . होगा वही जो विधि (प्रकृति) ने लिख रखा है। अगर आप सुखी रहना चाहते हैं, तो जो कार्य आप कर रहे हैं, करते रहिए। अपनी अनावश्यक कामनाओं को नष्ट कीजिए और ईश्वर प्राप्ति के लिए शुभ कर्मों को विस्तार दीजिए। 

ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है, ऐसा विश्वास मन में हमेशा रखिए। इससे पाप कर्मों के प्रति हृदय में डर पैदा होगा और यही डर प्रभु प्राप्ति का सुगम मार्ग प्रशस्त करेगा। 

सहज-सरल, सच्चा हृदय प्रभु प्राप्ति के लिए हमेशा उपयुक्त होता है और प्रभु ऐसे हृदयों में ही अपना निवास बनाते हैं। निर्मल-पवित्र मन से प्रभु को याद कीजिए और सभी प्राणियों से प्रेम कीजिए। ऐसा करने से सुख की ओर आप बढ़ते रहेंगे। स्वार्थ में जीना राक्षसी प्रवृत्ति है। जितना हो सके इससे बचिए। सबके हित में कार्य करना मानवी पद्धति है। परमार्थ के लिए हमेशा तत्पर रहना मनुष्य का परम कर्त्तव्य है। ऐसा करने से भी सुख के नवीन द्वार खुलेंगे। 

सच्चा सुख तो प्रभु प्राप्ति में ही है। बाक़ी आप अपने सांसारिक कर्त्तव्यों का निर्वहन भी करते रहिए। ग़लत राह पर चलकर अगर कोई आगे बढ़ गया है तो उसका अनुसरण हरगिज़ न करें। प्रभु भक्ति में मगन रहें। ईश्वर चाहेगा तो आपको सहज ही उस स्थिति में पहुँचा देगा, जिसके लिए आपको प्रकृति ने नियुक्त किया है। इसीलिए आप स्वयं पर अत्यधिक ज़ोर लगाकर स्वयं को हृदय रोगी, मानसिक रोगी मत बनाइए। 

सहज-सरल व सच्चे बन रहिए। संसार को संसार के भरोसे छोड़कर बस आप अपना कर्त्तव्य पूर्ण कीजिए और ईश्वर भक्ति में मगन रहिए . . .। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
|

दोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…

अच्छाई
|

  आम तौर पर हम किसी व्यक्ति में, वस्तु…

अनकहे शब्द
|

  अच्छे से अच्छे की कल्पना हर कोई करता…

अपना अपना स्वर्ग
|

क्या आपका भी स्वर्ग औरों के स्वर्ग से बिल्कुल…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

चिन्तन

काम की बात

किशोर साहित्य कविता

लघुकथा

बाल साहित्य कविता

वृत्तांत

ऐतिहासिक

कविता-मुक्तक

सांस्कृतिक आलेख

पुस्तक चर्चा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं