बसंत आ रहा
काव्य साहित्य | कविता मुकेश कुमार ऋषि वर्मा1 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
हौले-हौले से आ रहा
धीरे-धीरे से छा रहा
कायनात का ज़र्रा-ज़र्रा
महक उठा-चहक उठा
बसंत आ रहा . . .
मौसम करवट बदल रहा
मंद-मंद ख़ुश्बू फैला रहा
खिल उठा सबका हृदय
नई उमंग-नई तरंग
बसंत आ रहा . . .
धरा सुंदर स्वर्ग बन रही
ऋतुओं की रानी आ रही
करो सब जन अभिवादन
यौवन नवल-मन चंचल
बसंत आ रहा . . .
कली-कली खिल रही
खगों की ध्वनि गूँज रही
माँ शारदे को कोटिश: नमन
आता फाग-लाता दाग
बसंत आ रहा . . .
फूलों पे भँवरे मँडरा रहे
पराग शायद चुरा रहे
क़ुदरत बनी सुरम्य
मीठी छुअन-पीला परिधान
बसंत आ रहा . . .
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