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मैं ऑटो वाला और चेतेश्वरानंद – 3

खाने के दौरान ख़ूब बातें हुईं। जो पूरी तरह मिलर दंपती के घूमने-फिरने पर केंद्रित रहीं। यह सारी बातें वही कर रहे थे। वह दोनों पति-पत्नी बार-बार मेरी जानकारियों की तारीफ़ करना नहीं भूल रहे थे। उनकी तारीफ़ पर मुझे बार-बार पिताजी याद आते, जिनसे मैंने यह सब जाना-समझा था। मैंने एक बात मार्क की कि मेरी और मिस्टर मिलर की बातें चर्च-मैन और मेरी पत्नी आहना और सास को अच्छी नहीं लग रही थीं। ससुर जी के बारे में कुछ नहीं कहूँगा। क्योंकि तब वह इन सब बातों से बहुत ऊपर उठे हुए व्यक्ति हुआ करते थे। उस समय वह कभी इतने होशो-हवास में होते ही नहीं थे कि यह क्या, ऐसी कोई भी बात उनकी समझ में आती, उसको वह कुछ समझ पाते। 

खाने के दौरान ही अगले दिन घूमने का प्रोग्राम तय हुआ। अगुआई चर्च-मैन करेंगे यह उसने स्वयं ही घोषित कर दिया। जब उसने यह कहा तभी मैंने सोचा जब यह जाएगा तो मैं नहीं जाऊँगा। एकमात्र वज़ह यह थी कि हम दोनों एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे। यह हम दोनों अच्छी तरह समझते थे। लेकिन अन्य किसी पर या ज़ाहिर नहीं होने देते थे। सबके सामने ख़ुशमिज़ाज मित्रों की तरह ही पेश आते थे। मुझे दो कारणों से वह पसंद नहीं था, पहला कि वो हिंदुस्तानियों को घृणा की दृष्टि से देखता था। दूसरा वह हद दर्जे का कनिंग आदमी था। 

वह मुझसे क्यों चिढ़ता था यह मैं नहीं जानता। अनुमान लगा सकता हूँ कि मैं प्राचीन भारतीय संस्कृति, इतिहास की सराहना करता था तो वह सुन नहीं पाता था। प्रत्युत्तर में अंग्रेज़ी संस्कृति, अंग्रेज़ी साम्राज्य की तारीफ़ों के पुल बाँध कर कहता, ‘अँग्रेज़ों ने दुनिया के इतने बड़े भू-भाग पर राज किया है कि उसके राज्य में सूर्यास्त ही नहीं होता था।’ अपने को ऊँचा रखने के लिए हम दोनों में एक मूक प्रतिस्पर्धा चलती थी जो शायद ही बाक़ी समझ पाते थे। 

अगले दिन मैंने सीधे मना करना उचित नहीं समझा, कि यह अशिष्टता होगी, आतिथ्य भाव का उल्लंघन होगा। मैंने ससुर जी को आगे करने की सोचकर उनसे कहा, 'ऑटो ना चलाने से नुक़सान हो रहा है। बाक़ी लोग तो जा ही रहे हैं। मुझे ऑटो लेकर निकलने दीजिए।' लेकिन बात उलटी पड़ गई, वह बोले, ‘यह करने से मेहमान नाराज़ हो सकते हैं, दूसरे टैक्सी करने से ख़र्चा ज़्यादा आएगा।’ अन्ततः मुझे ही जाना पड़ा। एक पिद्दी से ऑटो में पाँच लोग बैठे। मैंने अपना ग़ुस्सा निकाला चर्च-मैन को आगे बैठा कर। जहाँ सिर्फ़ ड्राइवर की सीट होती है, दूसरा कोई बस किसी तरह बैठ सकता है। पहले आहना के चलने का प्रोग्राम नहीं था। लेकिन मिलर दंपती की ज़िद के चलते उसे चलना पड़ा। जिससे बैठने की जगह की समस्या पैदा हुई। 

घूमने के लिए कहाँ चलना है इसको लेकर मैंने कोई पहल नहीं की। मैंने सब चर्च-मैन पर ही छोड़ दिया, कि जहाँ कहेगा वहाँ चल दूँगा। मेरा यह अघोषित असहयोग चर्च-मैन ने भाँप लिया। मैं जहाँ शहर के नए दर्शनीय स्थलों पर ले गया था वहीं उसने सीधे रेज़ीडेंसी चलने को कहा। 

रात खाने पर बातचीत के दौरान ही उसने इसका ज़िक्र किया था मिलर से। बोला था कि, ‘यहाँ जाना चाहिए था। यह ग्रेट ब्रिटिश एंपायर के लोगों के साथ हुए बर्बरतापूर्ण अत्याचार, उनके सामूहिक नरसंहार का स्थान है। जो यह बताता है कि यहाँ हमारे पूर्वजों को किस तरह घेर कर हिंदुस्तानियों ने क़त्ल किया था। हमें वहाँ चलकर अपने दो हज़ार पूर्वजों की कब्रों पर फूल चढ़ाकर प्रभु यीशु से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह उन सभी को स्वर्ग में स्थान प्रदान करें। जो "सिज ऑफ लखनऊ" (प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के समय अँग्रेज़ रेज़ीडेंसी में छियासी दिन छिपे रहे। यह लंबी लड़ाई इतिहास में "सिज ऑफ़ लखनऊ" के नाम से जानी जाती है। जिसमें दो हज़ार अँग्रेज़ स्वतंत्रता सेनानियों के हाथों  युद्ध में मारे गए थे) के समय शहीद हो गए थे।’ मिलर दंपती आश्चर्य में पड़ गए कि डेढ़ सौ वर्ष से भी पहले उनके देश के लोग अपने एंपायर को बचाने के लिए यहाँ भी लड़े थे। 

चर्च-मैन के कहने और मिलर दंपती की अतिशय उत्सुकता के कारण मैं सब को लेकर रेज़ीडेंसी पहुँचा। वहाँ पहुँचने से पहले चर्च-मैन ने काफ़ी सारे फूल ले लिए थे। वह वहाँ बहुत बार जा चुका था। इसलिए उसे किसी गाइड की ज़रूरत नहीं थी। उसके पास वहाँ के चप्पे-चप्पे की सारी जानकारी थी। उसने एक-एक हिस्से को दिखाया। उनकी डिटेल्स बताईं। अठारह सौ सत्तावन के युद्ध का ऐसा वर्णन किया कि जैसे आँखों देखा वर्णन कर रहा हो। तैंतीस एकड़ में फैली रेज़ीडेंसी के अवशेषों पर गोलियों और तोपों के गोलों के अनगिनत निशानों को दिखाया। लॉन, फूलों की क्यारियों को मिलर दंपती मंत्रमुग्ध होकर देखते रहे। 

चर्च-मैन सबसे आख़िर में वहाँ बने चर्च के अवशेषों के पास लेकर गया। उससे लगे बड़े से कब्रिस्तान की ओर देख कर भावुक हो गया। कहा, ‘तुम लोग यह क़ब्रें देख रहे हो। इन्हें जल्दी गिन नहीं पाओगे। यह क़रीब दो हज़ार हैं। इनमें हमारे पूर्वज आज भी सो रहे हैं। ये हमारे वो जांबाज़ शहीद हैं जो दुश्मनों से छियासी दिनों तक बहादुरी से लड़ते रहे। शहीद होते रहे। रसद, हथियारों की आमद ना होने के कारण वो हारे नहीं, हार मानने को तैयार नहीं हुए। शहीद होना स्वीकार किया। इनमें सैकड़ों बच्चे, महिलाएँ हैं। आओ, मैं तुम्हें उस महान सेनानायक से मिलवाता हूँ जो दुनिया के महान योद्धाओं में से एक था।’ 

हम सब उसके पीछे-पीछे चलते रहे। मैं अनमना सा उसके साथ लगा रहा। मगर उसकी बातों से मुझ में भी उत्सुकता बनी हुई थी। इतनी बड़ी संख्या में क़ब्रों को देखकर मुझे अपने स्वतंत्रता सेनानियों पर गर्व हो रहा था, कि जिनके साम्राज्य में सूर्यास्त नहीं होता था उन्हें हमारे जांबाज़ों ने धूल चटाई थी। लेकिन दूर तक क़ब्रों को देखकर यह बात भी मन में आई कि यह सब अपने देश, अपनी मातृ-भूमि से हज़ारों किलोमीटर दूर यहाँ बेगाने देश में ना सो रहे होते, यदि इन्होंने दूसरे देशों को हड़पने का दुस्साहस ना किया होता। मेरे देशवासियों पर बर्बर अत्याचार ना किया होता। स्वतंत्रता सेनानियों ने वही किया जो उनका धर्म था। वह तो धर्म पथ पर थे। अधर्म पथ पर चलने वाले इन क़ब्रों में सो रहे हैं। क्या इन लोगों को परिणाम मालूम नहीं था। स्वतंत्रता सेनानियों में इन लोगों के  प्रति इतना गुस्सा था कि यदि ये आत्मसमर्पण कर देते तो भी जीवित न बचते । इनके अत्याचारों के कारण इनकी मृत्यु सुनिश्चित  थी ।

चर्च-मैन तमाम क़ब्रों को पार करता हुआ एक क़ब्र के पास जाकर ठहर गया। ध्यान से उसे देखता रहा। फिर जेब से रूमाल निकालकर क़ब्र पर पड़ी पत्तियों, धूल को साफ़ करके सिरहाने लगी नेम प्लेट को साफ़ किया। और सीधा खड़ा होकर सैल्यूट किया। फिर मिलर दंपती की तरफ़ मुख़ातिब हुए बिना नेम प्लेट की तरफ़ उँगली से इशारा करते हुए कहा, ‘तुम यह सब देख पा रहे हो ना। यह हैं ग्रेटेस्ट वॉरियर सर लॉरेंस। जो यहाँ शहीद हो गए। बहुत लड़ा उन्होंने। दुनिया भर में दुश्मनों को धूल चटाई और अब यहाँ सो रहे हैं। देखो यहाँ क्या लिखा है।’ 

चर्च-मैन के कहने पर मिस्टर मिलर ने सस्वर पढ़ा "यहाँ पर सत्ता का वो पुत्र दफ़न है जिसने अपनी ड्यूटी के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी थी।" ‘तो मिस्टर मिलर ऐसे महान व्यक्ति थे सर लॉरेंस। इन लोगों के कारण हमारे राज्य में सूर्यास्त नहीं होता था। लेकिन शायद आगे चल कर हम थोड़े ढीले पड़ गए। और महान लॉरेंस को यहाँ सोना पड़ा। एक मिनट मैं यहाँ लिखी लाइन के लिए कहूँगा "दफ़न है" की जगह लिखना चाहिए "सो रहा है"। ख़ैर मिस्टर मिलर हमें हार नहीं माननी चाहिए। 

एक वह समय था जब पूरा हिंदुस्तान हमारे इशारे पर चलता था। हम यहाँ के भाग्यविधाता थे। लेकिन समय ने हमारा साथ छोड़ा और हमें इसे आज़ाद करना पड़ा। लेकिन मैं मानता हूँ कि एक दिन यह फिर हमारा होगा। हम ही यहाँ के वास्तविक शासक होंगे। हो सकता है तुम हँसो मुझ पर। मुझे सिरफिरा समझो। संभव है तुम मन में हँस भी रहे हो। ऐसा है तो भी मुझे परवाह नहीं। क्योंकि मुझे आशा ही नहीं दृढ़ विश्वास है कि एक दिन ऐसा ही होगा। 

जब हमने सदियों पहले इस देश की धरती पर क़दम रखा था, तो हम एक मर्चेंट ही तो थे। तब किसने सोचा था कि हम दस-बीस साल नहीं दो सौ साल तक यहाँ शासन करेंगे। और एक बात बताऊँ कि हमने इस देश को आज़ाद नहीं किया है। हमने एक बिल के ज़रिए सिर्फ़ सत्ता हस्तांतरित की है। जैसे बिल के ज़रिए हस्तांतरित की है वैसे ही एक बिल के ज़रिए सत्ता हस्तांतरण निरस्त भी कर देंगे। हमारा हिंदुस्तान फिर से हमारे हाथ में होगा।’ 

चर्च-मैन की बातें सुनकर मिलर दंपती और मैं उसे आश्चर्य से देखते रह गए। आहना भी। कि यह क्या बात कर रहे हैं। वह हमारी भावना को समझ रहा था। तभी मिसेज मिलर ने कहा, ‘लेकिन अब ऐसे किसी बिल के पास करने का मतलब ही क्या? इंडिया संयुक्त राष्ट्र में है। पूरी दुनिया ने इसे संप्रभुता संपन्न देश का दर्जा दे रखा है। यह परमाणु शक्ति संपन्न देश है। हम ऐसा बिल पास करने की बात छोड़िए ला भी नहीं पाएँगे।’ 

मिसेज मिलर की बात पर चर्च-मैन ठठाकर हँसा, फिर बोला, ‘तुम लोग समझने की कोशिश करो। बहुत मामूली सी बात है, कि जिस प्रकार सत्ता हस्तांतरण पर मान्यता मिली, उसी प्रकार हस्तांतरित सत्ता को समाप्त करने पर मान्यता भी समाप्त हो जाएगी। ख़ैर इस पर हम बैठ कर बड़ी बहस करेंगे, अभी तो आओ, इधर आओ इस तरफ़ यहाँ देखो। इस क़ब्र पर क्या लिखा है।’ 

मिस्टर मिलर ने फिर पढ़ना शुरू किया, "रो मत मेरे बेटे मैं मरा नहीं हूँ, मैं यहाँ सो रहा हूँ।" चर्च-मैन लाइन पूरी होते ही बड़ी भावुकता से बोले, ‘सोचो, कल्पना करो कि कितना कष्ट पाया है यहाँ हमारे पूर्वजों ने। एक बेटे पर क्या बीती होगी जब उसने अपने हाथों से अपने पिता को यहाँ दफ़नाया होगा। अपने उस पिता को जिसकी गोद में वह बड़ा हुआ। जिसकी उँगली पकड़ कर वह पहली बार खड़ा हुआ, चलना सीखा। सोचो इस पिता की आत्मा को कितना कष्ट हुआ होगा। जब उसने अपने बेटे को भी शहीद होते और फिर यहाँ एक क़ब्र में चिर-निद्रा में सोते देखा होगा।’ 

चर्च-मैन बहुत भावुक, उत्तेजित हो रहा था। मिलर दंपती तटस्थ लग रहे थे। मिस्टर मिलर ने कहा, "हमें इतने बड़े ब्रिटिश एंपायर को खड़ा करने के लिए बड़ी क़ीमत तो चुकानी ही थी। जो हमने चुकाई। यह सच्चाई भी हमें माननी चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने भी यहाँ बड़ी संख्या में लोगों को ख़त्म किया था। इसीलिए यहाँ के लोगों में इतनी घृणा थी हमारे लिए कि उन्होंने बच्चों और महिलाओं को भी बचने का रास्ता नहीं दिया। 

अभी जलियाँवाला बाग़ कांड पर बड़ी चर्चा मीडिया में भी हुई थी। अपने जनरल डायर ने जलियाँवाला बाग़ में निकलने के एक मात्र रास्ते पर ही खड़े होकर, गोलियों की बौछार करवा कर हज़ारों निर्दोष निहत्थे लोगों की हत्या करवा दी थी। उनके प्रति इसी से यहाँ के लोगों में इतनी ग़ुस्सा था कि ब्रिटेन में जाकर यहाँ के क्रांतिकारी उधम सिंह ने उन्हें मारने का प्रयास किया। लेकिन मिलते-जुलते नामों के कारण उधम सिंह धोखा खा गए और इस कांड के मास्टर माइंड तत्कालीन पंजाब के गवर्नर जनरल माइकल ओ‘ ड्वॉयर को मार दिया। हमारे देश ने इतने वर्षों बाद ग़लती का अहसास किया है। इसीलिए पीएम ने जलियाँवाला बाग कांड के लिए अफ़सोस जताया। मैं समझता हूँ कि अपने देश को दो क़दम और आगे बढ़कर समग्र के लिए माफ़ी माँगनी चाहिए थी।" 

मिस्टर मिलर की बातें चर्च-मैन को बहुत बुरी लगीं। उसने दबे स्वर में अपना प्रतिरोध दर्ज कराते हुए कहा, ‘हमें अपने पूर्वजों के महान बलिदान का हृदय से सम्मान करना चाहिए। हम आज भी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ प्राणी हैं तो अपने इन्हीं महापुरुषों के बलिदानों के ही कारण। यहाँ हिंदुस्तान में उन्होंने जो कुछ किया, इस देश के लिए किया, यहाँ के लोगों की भलाई के लिए ही किया। यह सब लड़ते रहने वाले लोग थे। हमने इन्हें सही रास्ता दिखाने का प्रयास किया था। बस इतनी सी बात है। 

यह भी कहता हूँ कि हमने सत्ता का हस्तांतरण ज़रूर किया लेकिन इन्हें सही रास्ता दिखाने का प्रयास कभी भी बंद नहीं किया है। यह हर क्षण आज भी चल रहा है। और यह भी बता दूँ कि हम ही हैं जो इन्हें सही रास्ते पर ला सकते हैं। बिल लाकर इन्हें फिर से अपने झंडे तले लाने का प्रयास भले ही ना हो। इन्हें इस तरह अपने अधीन लाना उतना स्थायी ना हो। लेकिन एक दूसरे रास्ते से इन्हें अपने झंडे तले लाने के लिए हम निरंतर मज़बूती से आगे बढ़ रहे हैं। इस रास्ते से सफलता शत-प्रतिशत मिलनी है। और सदैव के लिए मिलनी है।‘ 

चर्च-मैन की बातों से इस बार मैं ख़ुद को तटस्थ नहीं रख सका। मिलर दंपती कुछ बोलें उसके पहले ही मैंने पूछ लिया कि उनका यह दूसरा रास्ता कौन सा है? इस पर चर्च-मैन ने मेरे कंधे को हल्के से थपथपाते हुए कहा, ‘बताता हूँ माय सन। देखो आज ज़माना बदल गया है। प्रत्यक्ष युद्ध के मैदान में किसी राष्ट्र को अपने झंडे तले नहीं ला सकते। आज राष्ट्र जीते नहीं जाते। क्योंकि जीत कभी भी स्थायी नहीं होती। आज राष्ट्रांतरण होता है। वह सदैव के लिए होता है। स्थायी होता है। 

किसी देश की जनता के साथ ही उस देश का अस्तित्व है। यदि उस देश की जनता ही अपनी संस्कृति, अपना धर्म त्याग कर दूसरे देश की संस्कृति, धर्म को मानने लगे, उसकी आस्था परिवर्तित हो जाए, तो यह बदलाव जनता द्वारा एक राष्ट्रांतरण है, उस दूसरे देश को जिसके धर्म, संस्कृति को उन्होंने अपनाया। इस तरह वो पहले जिस देश को, उसकी धर्म-संस्कृति को अपना मानते थे, उसका कोई नाम लेने वाला ही नहीं बचता। वह इतिहास के पन्नों में सदैव के लिए समाप्त हो जाता है। यही तो हो रहा है दुनिया में। बहुत से देशों का राष्ट्रांतरण हो चुका है। वह प्रभु यीशु के होकर हमारे संगी साथी हैं। हमारी भुजाएँ हैं।’ 

चर्च-मैन को लगा कि मैं उनकी बात समझ नहीं पाया तो वह फिर बोले, ‘देखो मैं राष्ट्रांतरण के तुम्हें कुछ परफ़ेक्ट उदाहरण देता हूँ। पहला हिन्दुस्तान का ही लो। भारत के हिस्से को काट कर पाकिस्तान इसीलिए बनवाया जा सका क्योंकि उस क्षेत्र के हिंदुओं ने मुस्लिमों के प्रचार में आकर अपनी हज़ारों वर्ष पुरानी संस्कृति, धर्म बदल लिए। इस्लाम मानने लगे और पाकिस्तान बना लिया। तुम मेरी बात को और क्लीयर समझ सको इसलिए तुम्हें पर्शिया यानी ईरान का भी उदाहरण बताता हूँ। 

इतिहास बताता है कि ईरानी यानी आर्यों की पार्थियन, सोगदी, मिदी आदि शाखाएँ क़रीब दो हज़ार वर्ष पूर्व उत्तर एवं पूरब से वहाँ पहुँचीं। यहाँ के मूल लोगों के साथ एक नई संस्कृति बनी। कालांतर में परिवर्तन होते रहे। फिर यहाँ के लोगों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। यह शिया बहुल हो गया। और 1979 में इस्लामिक गणराज्य बन गया। पुराना सब समाप्त हो गया। अभी ज़्यादा वर्ष नहीं हुए उक्रेन का रूसी भाषा बाहुल्य क्षेत्र रूस में मिल गया। ऐसे ही जिन-जिन क्षेत्रों में, प्रदेशों में हमने लोगों को प्रभु यीशु के साथ जोड़ लिया है, वह क्षेत्र हमारी भुजाएँ बन गए हैं। हमारी यह भुजाएँ तेज़ी से बड़ी हो रही हैं। मज़बूत हो रही हैं। 

राष्ट्रांतरण का प्रभाव क्या होता है, इसका अनुमान इसी से लगा सकते हो कि यहाँ पूर्वोत्तर के जिन राज्यों का अंतरण हम करवा चुके हैं, उसे तुम राज्यांतरण कह सकते हो। वहाँ संविधान भी हमें बहुत सी छूट देने के लिए विवश है। एक तरफ़ यहाँ का संविधान गो-वध निषेध करता है, तो दूसरी तरफ़ अंतरण हो चुके क्षेत्रों में स्थानीय जनता के दबाव में छूट भी दी है।’ यह कहते हुए चर्च-मैन ठहाका लगाकर हँसा। इतना तेज़ की आस-पास के बहुत से पर्यटक मुड़-मुड़ कर उसे देखने लगे। 

मिलर दंपती और आहना भी उसके साथ हँसे जा रहे थे। मगर उसकी बातों का मर्म समझ कर मैं आश्चर्य में था, कि इतना बड़ा छल-कपट। धर्मांतरण के सहारे हिंदुस्तान को सिर्फ़ ग़ुलाम ही बनाने का प्रयास नहीं किया जा रहा है, बल्कि यहाँ तो उससे भी हज़ारों गुना ज़्यादा बढ़कर भयावह स्थिति है। यहाँ तो देश का अस्तित्व ही समाप्त किया जा रहा है। पूर्वोत्तर के तमाम क्षेत्रों में जिस तरह धर्मांतरण हो रहा है, जितना हो चुका है, उस हिसाब से तो इन नव-आक्रांताओं के पैर मज़बूती से जम चुके हैं। और हम देशवासी मस्त हैं। ख़ुद में खोए हुए हैं। बेखबर सोए हुए हैं। 

मुझे ही किस तरह शादी के समय अचानक ही ईसाई बना दिया गया। मैं इस बात की गंभीरता को समझ ही नहीं सका। खोया रहा, शादी की ख़ुशी में। उससे ज़्यादा कि अंकल का अहसान है। जबकि सही तो यह है कि हमने जी-तोड़ मेहनत करके उनका ऑटो ही नहीं, पूरा घर सँभाला हुआ है। अहसानमंद तो इन्हें मेरा होना चाहिए। मैं तो निरर्थक अहसानमंद हो ठगा गया। 

राष्ट्रांतरण की रफ़्तार और देशवासियों की मस्ती का आलम जो यही रहा तो तीन अधिकतम चार दशक में कंप्लीट राष्ट्रांतरण हो जाएगा। दुनिया की प्राचीनतम सनातन संस्कृति, सभ्यता वाले राष्ट्र का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। नामोनिशान ना रहेगा पर्शिया या फारस की तरह। यह सही ही तो कह रहा है कि इस देश का आज़ादी के वक़्त जो विभाजन हुआ वह राष्ट्रांतरण का ही तो परिणाम था। जहाँ अब सनातन संस्कृति, देश के अवशेष मात्र ही रह गए हैं। तो क्या काल के गाल में पृथ्वी की पहली सभ्यता-संस्कृति लुप्त हो जाएगी? अफ़गानिस्तान जहाँ पहले सनातन संस्कृति थी, आज वहाँ माइक्रोस्कोप लेकर ढूँढ़ने पर भी शायद ही उसके कोई अवशेष मिल पाएँ। तो... 

मेरे दिमाग में यह मंथन चलता रहा। और चर्च-मैन अपनी बातें कहता रहा। शाम होने तक वह वहीं बना रहा। फिर निकला और एक चर्च में ले गया। उसकी बातों में जोश, उत्साह, ख़ुशी सब समाई हुई थी। वह ख़ुश था कि वह संपूर्ण राष्ट्रांतरण के और क़रीब पहुँच गया है। जो ब्रिटिश एंपायर यहाँ डूबने के बाद पूरी दुनिया में डूब गया था, वह फिर यहीं अपनी नींव डाल चुका है। 

मैं बड़ी अजीबोगरीब स्थिति से गुजर रहा था, कि इसकी बातों को कितनी गंभीरता से लूँ। यह जो कह रहा है क्या यह संभव है? मन में जितने प्रश्न उठ रहे थे, उनके जो उत्तर मुझे मिल पा रहे थे उनका एक ही निष्कर्ष था, कि इसकी बातें, इसके तर्क, तथ्य निराधार नहीं हैं। यह सही तो कह रहा है कि अँग्रेज़ व्यापारी बनकर आया तो दो सौ साल शासन किया। देश के टुकड़े करके गया और अब इस तरह आया तो . . .

– क्रमशः
 

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