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समायरा की स्टुडेंट

 

दिसंबर का दूसरा सप्ताह शुरू हो चुका है। ठंड ने अपनी रफ़्तार पकड़ ली है। पाँच बजते-बजते शाम हो जा रही है। सूर्यास्त होते ही अँधेरा घना होने लगा है। समायरा को स्कूल की छुट्टी के बाद घर पहुँचने में एक घंटा से ज़्यादा समय लग जाता है। शहर से उसका स्कूल कई किलोमीटर दूर है। साधन भी कोई सीधा नहीं है। तीन जगह टेंपो बदलने, फिर क़रीब एक फर्लांग पैदल चलने के बाद ही वह स्कूल से घर पहुँचती है। रोज़-रोज़ की इस दौड़-धूप के चलते वह पाँच साल में ही टीचरी की नौकरी से ऊब गई है। 

स्कूल के आस-पास का एरिया उसे अपनी सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं लगता, इसलिए वह वहाँ से क़रीब दस किलोमीटर दूर मेन शहर में ही एक बहुत ही दूर के रिश्तेदार के यहाँ किराए पर रहती है। इतनी दूर की रिश्तेदारी कि, “नाते के नात, पनाते का ठेंगा।” कहावत चरितार्थ करती है। उसके इस बहुत ही मनी-माइंडेड रिश्तेदार ने मकान किराए पर देते समय फ़ॉर्मेलिटी के लिए भी यह नहीं कहा था कि चलिए आप तो भाँजी लगती हैं, किराया इतना कम दे दीजिएगा। 

समायरा अपना सामान लाए उससे पहले ही उससे स्टैंप पेपर पर किराएदारी का बकायदा एग्रीमेंट साइन करा लिया था। जिसमें सबसे बड़ी शर्त यह थी कि हर साल किराया पंद्रह परसेंट बढ़ाना होगा। उनके तीन लड़के पढ़-लिख कर नौकरी कर रहे हैं। अपने-अपने परिवार के साथ दो गुजरात में, तो एक महाराष्ट्र में रहता है। साल डेढ़ साल के अंतराल पर उनमें से कोई पाँच-छह दिन के लिए परिवार के साथ आता है। बेहद रूखे स्वभाव की इस रिश्तेदार का चार-छः दिन के लिए ही आई बहू से भी रिश्ता कुछ ज़्यादा मधुर नहीं रहता। ऐसे रूखे रिश्तेदार दंपती के साथ समायरा कई साल से रह रही है। उसने मकान के ऊपरी हिस्से में एक कमरे का सेट ले रखा है। 

आज भी हमेशा की तरह जब वह टेंपो से उतर कर घर की ओर चली तो सब्ज़ी, मसाला, किचन का और कई सामान ख़रीदा। पिछली छुट्टी में तबीयत ख़राब होने के कारण वह कोई ख़रीदारी नहीं कर पाई थी। घर से बाहर ही नहीं निकली थी। दोनों हाथों में सामान लादे-फांदे जब वह घर पहुँची तो रिश्तेदार ने गेट खोलने में क़रीब आठ मिनट लगा दिए। दिनभर स्टुडेंट्स के साथ मग़्ज़मारी और स्टॉफ़ के बीच चलने वाली छलनीति, राजनीति, कूटनीति से थकी-माँदी समायरा को बहुत ग़ुस्सा आ रहा था। लेकिन मजबूरी है। कुछ कर भी तो नहीं सकती। 

रिश्तेदार गेट खोलने निकलीं तो तीखे स्वभाव वाली सास की तरह बोलीं, “इतनी देर क्यों कर देती हो? यह आने का टाइम है? कुछ तो ध्यान रखा ही करो ना। देखो मोहल्ले में कोई दिख रहा है क्या?” ग्रिल का जालीदार गेट खोलने तक इतनी बातें कहकर वह अंदर जाने के लिए मुड़ गईं। समायरा की यह बात भी सुनना ज़रूरी नहीं समझा कि, “तीन टेंपो बदल कर आने में एक घंटा से ज़्यादा समय लग जाता है। शाम को और सुबह जल्दी मिलते ही नहीं। आज सामान भी ख़रीदना था इसलिए और टाइम लग गया।”

समायरा ने मामी को अंदर जाते हुए देखा और गेट से भीतर आ कर उसे बंद किया। अपने कमरे में आ गई। कमरे में आने तक वह भुनभुनाती रही कि, “बुढ़िया एक नौकरी के चलते तेरी यह ज़हरबुझी बातें सुनती हूँ, नहीं तो तुझे ऐसा जवाब दूँ कि तू बोलना भी भूल जाए।”

समायरा को सामान लेकर ऊपर चढ़ते समय घुटनों में अच्छा-ख़ासा दर्द महसूस हो रहा था। पिछले ही साल उसे आर्थराइटिस की शिकायत का पता चला था। कुछ दिन तो उसने दवा ठीक से ली थी, लेकिन उसके बाद उससे बराबर लापरवाही होती ही जा रही है। सामान रख कर उसने पहले चाय बनाई, फिर बाज़ार से लाई हल्दीराम की तीखी वाली भुजिया निकाली और बेड पर दीवार के सहारे तकिया लगा कर पीठ टिका ली। उसे बड़ा आराम मिल रहा था। वह चाय पीती जा रही थी और बीच-बीच में भुजिया भी खाती जा रही थी। चाय ख़त्म कर उसने आँखें बंद कर लीं। कुछ देर ऐसे ही निश्चल बैठी रही। मानों ध्यान में लीन हो गई हो। लेकिन जब घुटनों के दर्द ने ज़्यादा परेशान किया तो उठ कर अलमारी से पेन-किलर तेल ले आई। 

एक वैद्य के कहने से वह इसी तेल को दर्द से राहत पाने के लिए यूज़ करती आ रही है। पेन-किलर टेबलेट के अत्यधिक बैड साइड एफेक्ट के कारण वह इन्हें नहीं लेती। दोनों पैरों में कुछ देर तेल की हल्की मालिश करने के बाद उसने हसबैंड को फोन किया। कॉल रिसीव होते ही पूछा, “घर पहुँच गए?” 

“हाँ।”

“तो फोन नहीं कर सकते थे, जब मैं करूँगी तभी बात होगी, तुमसे अच्छे तो मम्मी-पापा हैं। दिन भर में कम से कम दो-तीन बार तो बात करते ही हैं। रुद्रांश से भी कराते हैं।”

“क्या यार, आज क्या हुआ जो बात शुरू होते ही धाँए-धाँए शुरू कर दी, बिना किसी वजह के।” 

“फायर नहीं कर रही हूँ। अकेले रहो तो पता चले। तुम तो वहाँ मम्मी-पापा, रुद्रांश सब के साथ हो। यहाँ अकेले दो सौ किलोमीटर दूर इस शहर में रात हो या दिन एक मिनट भी मन नहीं लगता। कोई ज़रूरत पड़ जाए तो कोई आगे-पीछे नहीं है।”

पति नलिन समझ गया कि समायरा आज फिर पैर के तेज़ दर्द से परेशान है। उसने कहा, “परेशान ना हो, मैं यहाँ ट्रांसफ़र की कोशिश में लगा हुआ हूँ। विधायक, मंत्री सब कुछ कर रहा हूँ। मगर हर जगह आश्वासन ही मिलता है।”

“क्या परेशान ना हो, शहर जैसा शहर नहीं। अँधेरा होते ही सब घरों में दुबक जाते हैं। दिनभर स्कूल में बच्चे, वह जाहिल प्रिंसिपल, सारा स्टॉफ़ जिसको देखो वही एक दूसरे की चुग़लख़ोरी में लगा रहता है। बच्चे रोज़ कुछ ना कुछ बवाल किए रहते हैं। सख़्ती करो तो उनके गॉर्जियन सिर पर सवार हो जाते हैं।”

समायरा की बातों से नलिन को समझते देर नहीं लगी कि आज फिर कोई तमाशा हुआ है। उसने पूछा, “आज फिर किसी ने कुछ किया क्या?” 

“कुछ किया! अरे आज बहुत ही ज़्यादा बड़ी बात हो गई।” 

“अरे! तुम्हारे लिए तो कोई दिक़्क़त नहीं है ना?” 

“अब क्या बताऊँ। अच्छा पहले यह बताओ कि चाय-नाश्ता कुछ किया कि नहीं।” 

“बस अभी-अभी ख़त्म किया है। पहले तुम बताओ आज हुआ क्या?” 

नलिन पत्नी की बातों से परेशान हो गया, इसलिए सफ़ेद झूठ बोला कि नाश्ता कर लिया है। जबकि उसने अभी घर में क़दम रखे ही थे। वह पत्नी समायरा को लेकर बराबर परेशान रहता है, कि वह लखीमपुर से आगे पलियाकलां में एक सरकारी स्कूल में टीचर है। अकेली रहती है। वह इस बात से थोड़ी राहत महसूस करता है कि संयोग से रहने के लिए रिश्तेदार का मकान मिल गया। नहीं तो और मुसीबत थी। 

समायरा भी अच्छी तरह समझती है कि नलिन अक़्सर उससे कई झूठ बोल देते हैं, जिससे वह परेशान ना हो। इसलिए उसने फिर पूछा, “सच बोल रहे हो ना?” 

“हाँ भाई सच बोल रहा हूँ। बताओ आज क्या हुआ?” 

“हुआ यह कि आज एक पियक्कड़ टाइप का गॉर्जियन आया। उसकी लड़की जूनियर हाई-स्कूल में पढ़ती है। मेरी ही स्टुडेंट है। आते ही सीधे प्रिंसिपल के पास गया। लगा सभी टीचर्स को अनाप-शनाप बकने।” 

“क्यों ऐसा क्या हुआ था?”

“वही सोशल मीडिया। बच्चों, बड़ों क्या सबको फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप का भूत सवार है। उसकी लड़की इंस्टाग्राम पर पेरंट्स से छुपकर अपनी फोटो पोस्ट करती रहती है। पेरंट्स को कहीं से पता चल गया तो वह आकर टीचर्स पर ब्लेम लगाने लगा कि सब लापरवाह हैं। छात्रों पर ध्यान नहीं देते। स्कूल में कोई पढ़ाई-लिखाई नहीं होती। सब यहाँ दिनभर टाइम पास करते हैं, मटरगश्ती करते हैं, फोकट की तनख़्वाह लेते हैं।”

“हद हो गई है, बड़ा बेवुक़ूफ़ आदमी है, बच्चे घर में क्या कर रहे हैं यह पेरंट्स देखेंगे कि स्कूल। क्या करता है वह?” 

“क्या करता है पता नहीं। दिखने में पक्का शराबी-मवाली लग रहा था। करता होगा कुछ काम-धंधा। बात करने की भी तमीज़ नहीं थी। मन तो कर रहा था कि धक्के मरवा कर उसे बाहर कर दें। लेकिन मेरा प्रिंसिपल इतना कमज़ोर आदमी है कि बजाए सख़्ती से पेश आने के उलटा उसकी जी-हुज़ूरी में लग गया। उसे बड़े आदर से बैठा कर चाय-पानी पूछने लगा, उसने सब मना कर दिया। आधा घंटा बवाल करने के बाद गया। उसके बाद जाहिल प्रिंसिपल शुरू हो गया। बेवुक़ूफ़ उस पियक्कड़ को उसकी ज़िम्मेदारी बताने के बजाए उल्टा हम टीचर्स पर लाल-पीला होने लगा। 

“मैं तो चुप रही पियक्कड़ के सामने, लेकिन वंदना चुप नहीं रही। प्रिंसिपल को इग्नोर करके पियक्कड़ को बराबर उसकी ज़िम्मेदारी बताती रही। जो काम प्रिंसिपल को करना चाहिए था उसे वह कर रही थी।” 

“बड़ी अजीब बात है। अच्छा तुम पहले खाना-पीना करो, थोड़ा आराम करो, फिर करता हूँ बात।” 

“खाना क्या बनाना? अकेले कुछ करने-धरने का मन नहीं करता। आते समय सोचा था कि पराँठा सब्ज़ी बना लूँगी। सब्ज़ी ले भी आई, लेकिन इतना थक गई हूँ, पैरों में इतना दर्द है, कि कुछ बनाने की हिम्मत नहीं हो रही है।” 

“अरे तो क्या भूखी ही रहोगी।” 

“भूखी रही तो नींद कहाँ आएगी। मैगी रखी है वही बना लूँगी दो मिनट में। दो-तीन केले भी हैं, उसी से काम चल जाएगा।” 

“अजीब औरत हो यार, यहाँ बेटे को, घर भर को शिक्षा दोगी की मैगी में लेड होता है। यह लिवर, किडनी को डैमेज करता है। फ़ास्टफ़ूड से दूर रहो। और ख़ुद वही फ़ास्ट फ़ूड, जब सुनो, तब वही मैगी।” 

“तुम यार अकेले रहो ना, तब पता चले। अच्छा, पहले तुम बताओ नाश्ता करा, तुम वाक़ई सच बोल रहे हो।” 

“फिर वही बात पूछ रही हो। इतना शक क्यों करती हो मुझ पर।” 

“क्योंकि यही एक बात है जो तुम मुझसे हमेशा झूठ बोलते हो कि तुम मुझसे सच बोलते हो। तुम यार सच क्यों नहीं बोलते? तुमको ज़रा भी इस बात का एहसास है कि तुम जब सही नहीं बताते कि खाया-पिया कि नहीं तो मुझे यहाँ कितनी परेशानी होती है। कितनी तकलीफ़ होती है, कि मैं यहाँ खा-पी रही हूँ और मेरे रहते हुए भी मेरा पति वहाँ भूखा है। 

“इस समय भी तुमने सही नहीं बताया। जब तुमने घर में एंट्री की तब मैं घर पहुँचने वाली थी। अम्मा से बात कर रही थी। रुद्रांश उन्हीं के पास था। बाइक की आवाज़ सुनते ही पापा कहते हुए मम्मी के पास से भागा था। अम्मा भी बोलीं थीं, ‘चलें कुछ नाश्ता बनाएँ, भैया आ गए हैं।’ मैंने जानबूझकर घर पहुँचते ही फोन किया, सोचा कि देखूँ आज तुम क्या कहते हो?”

“क्या यार तुम तो बिल्कुल पीछे पड़ जाती हो। तुम टीचर्स अगर ऐसे ही अपने स्टुडेंट को पढ़ाने, उन्हें संस्कार देने के लिए पीछे पड़ जाएँ तो इंडिया एक बार फिर से ग्रेट नहीं ग्रेटेस्ट इंडिया बन जाए।” 

“अच्छा, पहले नाश्ता कर लो तब बताती हूँ कि हम टीचर्स क्या करते हैं, क्या नहीं करते हैं। और पेरंट्स को क्या-क्या करना चाहिए जो वो नहीं करते हैं। गवर्नमेंट की लापरवाही के चलते सोशल मीडिया किस तरह पूरी की पूरी जनरेशन में ज़हर घोल रहा है। स्टुडेंट पढ़ाई-लिखाई छोड़कर बाक़ी सारी पढ़ाई किस तरह कर रहे हैं, किस तरह सोशल-मीडिया में ख़ुद को बर्बाद कर रहे हैं, समझे।”

“ठीक है, ठीक है। करता हूँ।” 

खाने-पीने के समय के बाद समायरा ने दस बजे रात को फिर फोन किया हस्बैंड को। यह उसका रोज़ का रुटीन है। दोनों इस समय बड़ी देर तक इत्मीनान से बातें करते हैं। वीडियो कॉलिंग कर समायरा पहले बेटे रुद्रांश फिर हस्बैंड से बात करती है। इस दौरान उसे कुछ देर ही को सही ऐसा एहसास होता जैसे वह अपने बच्चे पति के साथ बैठी है। उनसे सामने ही बैठी बात कर रही है। स्पर्श कर रही है। इस समय भी उसने बेटे रुद्रांश को कई बार किस किया। बेटे ने उसे किया। वह भी दिन भर खेल-कूद कर थक जाता है, इसलिए माँ को जल्दी से गुड नाईट बोला और पिता के बग़ल में ही लेट गया। 

पिता नलिन प्यार से उसके सिर को सहलाते रहे और समायरा से बातें करते रहे। समायरा ने दिन में हुई घटना का बचा हुआ हिस्सा बताते हुए कहा, “मैं तो उस लड़की के फ़ादर की बदतमीज़ी से इतना घबरा गई थी कि सोचा पुलिस को फोन कर दूँ। मगर डर गई कि जब प्रिंसिपल नहीं कर रहा है तो मैं क्यों करूँ। फिर यह पियक्कड़ मवाली टाइप का आदमी कहीं बाद में दुश्मनी ना निकालने लगे। मुझ पर ब्लेम लगाने लगा, तो मैंने कहा स्कूल में स्टुडेंट पढ़़ रही है, यहाँ देखना मेरी ज़िम्मेदारी है। 

“एक टीचर को जितना देखना चाहिए, जितना सम्भव होता है उतना देखती हूँ। लेकिन स्कूल के बाद बच्चे कहाँ जा रहे हैं? क्या कर रहे हैं? इसकी पूरी ज़िम्मेदारी पेरंट्स की है। पहली बात तो बच्चों को इतनी कम एज में मोबाइल देना ही नहीं चाहिए। और अगर दिया भी है तो उस पर कड़ी निगाह रखनी चाहिए कि वह क्या देख-सुन रहा है। उसमें क्या कर रहा है। मेरे इतना कहते ही वो एकदम से चिल्लाने लगा कि, ‘स्कूल को फ़ीस किस लिए देते हैं। हम अपना काम-धंधा देखेंगे या बच्चों के पीछे लगे रहेंगे।’ अपना आख़िरी सेंटेंस बड़ी भद्दी सी गाली देकर बोला था। 

“तब मैंने सोचा कि प्रिंसिपल अब ज़रूर कुछ बोलेगा, लेकिन वह इंपोटेंट (नपुंसक) खींसे निपोरता उसकी और ज़्यादा ख़ुशामद करने लगा। मेरा मन करा कि इस मौवाली पियक्कड़ से पहले इस प्रिंसिपल को दस-बारह चप्पलें मारूँ।” 

“यह सब ग़लती मत करना। अरे अकेले रहती हो, अपनी सेफ़्टी के बारे में पहले सोचो, बाक़ी सब उसके बाद। बाक़ी भी उतना ही करो जितने से नौकरी चल जाए। उसकी लड़की ने ऐसा क्या कर दिया था कि जाहिल इतना बवाल कर रहा था।” 

“सेफ़्टी का जितना हो सकता है उतना ध्यान रखती हूँ। टीचर हूँ, कुछ नैतिक ज़िम्मेदारी तो मेरी बनती ही है ना। अपनी आँखों से देखते हुए तो स्टुडेंट को ग़लत रास्ते पर चलता मैं नहीं देख सकती। अपने भरसक जितना हो सकता है उतना रोकने की कोशिश करती हूँ।” 

“लेकिन मेरी समझ से स्टुडेंट कुछ ग़लत नहीं कर रही थी। आज कल तो तमाम बच्चे सोशल-मीडिया में लगे रहते हैं।” 

“ज़रूर लगे रहते हैं लेकिन यह स्टुडेंट लिमिट से आगे चल रही है। अभी चौदह-पंद्रह साल की है, लेकिन हरकतें मैच्योर गर्ल्स से भी आगे की कर रही है। इंस्टाग्राम पर इसने अपना फ़ेक अकाउंट बनाया हुआ है।” 

“इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई। लगभग सारे बच्चे यही सब कर रहे हैं।” 

“इसमें बड़ी बात यह है कि ऐसे सारे बच्चों में से कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो हद पार कर जाते हैं। यह स्टुडेंट भी हद पार गई है। इसने अपनी बहुत सी न्यूड, सेमी न्यूड, फ़ोटोज अपलोड कर रखी हैं। बराबर करती रहती है। एक और लड़की जो इससे एक साल सीनियर है वह भी यही करती है। दोनों इतनी स्मार्ट हैं कि दो-दो अकाउंट बनाए हुए हैं। एक में बोल्ड फोटोज तो हैं लेकिन पूरी तरह न्यूड नहीं। जिस अकाउंट में पूरी तरह न्यूड हैं वह अकाउंट फेक नाम से है।” 

“वेरी स्मार्ट गर्ल्स। इतनी अक़्ल कहाँ से आ गई इनमें।” 

“सॉरी स्मार्टनेस निकल जाएगी, अगर बाप ने फुली न्यूड वाला अकाउंट देख लिया। चांस की बात है कि सेमी न्यूड वाला ही देखा है। उसे ही देखकर इतना आग बबूला हो गया। अपने सामने अकाउंट बंद करवाने पर तुला हुआ था। लड़की जानबूझकर अनजान बन गई कि बंद नहीं होता। मुझे इतना नहीं आता। उसके इतना बोलते ही बाप ने दो थप्पड़ जड़ दिए थे। प्रिंसिपल ने रोका ना होता तो और मारता। मार-मार कर हाथ-पैर ही तोड़ देता। मुझसे, बाक़ी खड़ी दो और टीचरों से भी बोला कि आप लोग ही बंद कर दीजिए। कोई किसी विवाद में पड़ना नहीं चाहता था, तो सब अनजान बन गईं। 

“बस इतने पर ही वह आउट ऑफ़ कंट्रोल हो गया। मोबाइल पटक कर तोड़ दिया। बोला, ‘लो जी अब तो बंद हो गया। अरे आप लोग इतना नहीं जानते तो बच्चों को क्या पढ़ाएँगे। बैठकर कुर्सियाँ तोड़ेंगे बस।’ प्रिंसिपल को भी ख़ूब खरी-खोटी सुनाई। लड़की को धमकी दी सीधे घर पहुँचने की। बोला, ‘तुझे आज क़ायदे से इंस्टा इंस्टा कराऊँगा।’ मैंने सोचा चलो बला टली लेकिन असली बला उसके जाने के बाद आई।” 

“क्यों उसके बाद क्या हुआ?” 

“उसके जाने के बाद प्रिंसिपल ने मुझे और उस लड़की को रोक लिया। बाक़ी टीचरों को अपनी क्लास में जाने के लिए कहा। फिर उस स्टुडेंट सतविंदर से सॉरी डीटेल्स पूछने लगा। वह इतनी घाघ कि कुछ भी पूछने पर एक बार में बोल ही नहीं रही थी। 

“खीझ कर प्रिंसिपल ने कहा, ‘देखो तुम्हारे चलते स्कूल की बदनामी होगी। अगर तुम सच बता दोगी तो तुम्हें माफ़ कर देंगे। तुम्हारे फ़ादर को भी फोन कर देंगे कि घर पहुँचने पर तुम्हें कुछ ना कहें। अब आगे तुम ऐसी ग़लती नहीं करोगी। और अगर सच नहीं बताओगी तो अभी तुम्हारा नाम स्कूल से काटकर, तुम्हारे फ़ादर को बुलाकर तुम्हें उनके हवाले कर दूँगा।’ प्रिंसिपल की धमकी काम कर गई। उसका फ़ादर घर पहुँचने पर सख़्ती से पेश होने की धमकी दे ही गया था। इससे वह डर गई। उसने सारी बातें बता दीं। सतविंदर ने जो बताया उसे सुनकर ख़ुद मैं और प्रिंसिपल दोनों ही हैरत में पड़ गए। कुछ देर तक हम दोनों उसे आवाक देखते ही रह गए।” 

“अरे यार यह तुम्हारी स्टुडेंट है कि कोई तमाशा।” 

“वह है तो स्टुडेंट ही है। एक इनोसेंट स्टुडेंट। जिसे शातिर बनाने वाली, सारी ख़ुराफ़ात की जड़ रिंग मास्टर तो ज्योग्रॉफी की टीचर नासिरा अंजुम है।” 

“नासिरा!”

“हाँ, नासिरा। जब तुम आए थे तो तुमसे बड़ा चहक-चहक कर बातें कर रही थी। और तुम भी ऐसे चिपके जा रहे थे, फ़िदा हुए जा रहे थे कि पूछो मत। घर पहुँच कर बोले अरे यार तुम्हारी नासिरा तो बड़ी पटाखा चीज़ है।” 

“अरे यार वह तो मैंने मज़ाक़ किया था। तुम साल भर बाद भी वहीं खड़ी हो।” 

“मैं भी मज़ाक़ ही कर रही हूँ। अच्छा सुनो तुम्हारी पटाखा ने क्या-क्या किया!” 

“हाँ जल्दी सुनाओ, नींद आ रही है।” 

“तो सो जाओ, कल सुनाती हूँ।” 

“अरे नहीं, सुनाओ अभी सुनाओ।” 

“असल में नासिरा ने इंस्टाग्राम पर सना खान नाम से अपना फ़ेक अकाउंट बनाया है। रोज़ तीन-चार फोटो पोस्ट करती है। उसमें ही उसने बाहर की किसी टीवी स्टार, मॉडल किम करदाशियाँ और अन्य कई सेलिब्रिटीज को, जो इंस्टाग्राम पर हैं, उन्हें देखा। जिनके लाखों फ़ॉलोअर्स हैं। और उनकी फोटो को लाखों लाईक करते हैं। जिससे यह सेलिब्रिटिज करोड़ों रुपए साल में कमा रहे हैं। नासिरा को भी सेलिब्रिटी बनने, पैसा कमाने का भूत सवार हो गया। 

“उसने देखा यह सेलिब्रिटी बोल्ड, नेकेड पिक्चर्स पोस्ट करते हैं, इसे ही लोग देखने के दीवाने हैं। तो उसने पहले मोबाइल से, फिर जल्दी ही एक बढ़िया कैमरा लखनऊ जाकर ले आई। उसी से बोल्ड पिक्चरें खींचकर डालने लगी। इससे उसके भी फ़ॉलोअर बढ़ने लगे। पहले सैकड़ों, फिर हज़ारों में हो गए। अब वह और ज़्यादा उत्साहित हो गई। 

“अपनी आयडल किम के प्रति उसकी दिवानगी ऐसी कि उसकी लाइफ़ हिस्ट्री नेट पर ढूँढ़-ढूँढ़कर पढ़ती है। किम की इस बात ने नासिरा को डीपली इंप्रेस किया कि उसने अपनी सुंदरता को बढ़ाने के लिए अपने हिप्स का करेक्शन करवा कर उन्हें बबल शेप दिया, बड़ा बनवाया। अब इसका दिमाग़ और ख़राब हो गया। इसने एक बार तबीयत ख़राब होने का बहाना बनाकर हफ़्ते भर की छुट्टी ली। लखनऊ गई। वहाँ बॉडी आल्टर करने वाली किसी क्लीनिक में अपने होंठ और शार्प कराए। अपने ब्रेस्ट को और लिफ़्ट करवाया। नाभि को नए सेक्सी लुक टी शेप में कन्वर्ट कराया।” 

“क्या?” 

“चौंकिए नहीं, आपकी प्रिय पटाखा ने आगे और क्या गुल खिलाया वह भी सुनिए। सारी नींद अपने आप दूर ना हो जाए तो कहिएगा।” 

“अच्छा तो सुनाओ, देखें यह कितनी बड़ी पटाखा है।” 

“तुम्हारे अनुमानों से भी ज़्यादा बड़ी पटाखा है। यह अपना बॉडी करेक्शन करा कर आई तो उसके बाद उसे अपनी सुंदरता का भ्रम हो गया। तमाम पिक्चर टू पीस कपड़ों में ही पोस्ट करने लगी। फॉलोवर और तेज़ी से बढ़ने लगे। इससे उसके पर और फैल गए। यह और ऊँची उड़ान भरने को मचलने लगी। इसने फुली नेकेड पिक्चर डालनी शुरू कर दी। पोजेस उन्हीं सेलिब्रिटीज की कॉपी करती। इस ढंग से जिससे प्राइवेट पार्ट एक्सपोज ना हों और इंस्टाग्राम के रूल्स ना टूटें, उसे ब्लॉक ना कर दिया जाए। अपनी प्रोफ़ाइल में ख़ुद को मॉडल बताया। इससे उसके पास कुछ छोटी-मोटी कंपनियों से मैसेज भी आने लगे, उसका प्लान यह है कि ज़्यादा पैसे आने शुरू हो जाएँ तो नौकरी छोड़ दे।” 

“बहुत ख़ूब, यह पटाखा तो वाक़ई पटाखा है और बड़ी हिम्मती भी। मैं तो कहूँगा कि इस हिम्मती लेडी के परवाज़ भरते पंखों को कतरने का हक़ किसी को नहीं है। तुम्हारे प्रिंसिपल को भी नहीं। लेकिन इसने इतनी सारी डिटेल्स क्यों बता दीं?” 

“आप की इस बोल्ड हिम्मती पटाखा ने सब कुछ ख़ुद नहीं बताया। जब सतविंदर चंगुल में आई तो उसने बताया। हुआ यह था कि सतविंदर और उसकी एक सीनियर स्टुडेंट इंस्टाग्राम पर आईं तो उन्हें एक दिन संयोग से नासिरा की फोटो दिख गई। नाम बदला था लेकिन दोनों को यक़ीन हो गया कि यह सना नहीं नासिरा ही हैं। उन दोनों ने नासिरा को फॉलो करना और मैसेज भेजना शुरू कर दिया। लेकिन नासिरा ने इनके मैसेज रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट ही नहीं किया। तो इन दोनों ने उनकी हर पोस्ट पर कमेंट लिखना शुरू कर दिया। जानबूझकर उनको ‘सना मैम यू आर रियली लुकिंग ब्यूटीफ़ुल, यू आर लुकिंग वेरी हॉट, मैम यू आर ए वेरी ब्रेव लेडी’। नासिरा ने घबराकर इन दोनों को ब्लॉक कर दिया। मगर इन छोकरियों ने नासिरा की कमज़ोर नस पकड़ ली थी। स्कूल में बिना किसी संकोच के दोनों नासिरा से मिलीं।” 

“यह दूसरी कौन है?” 

“दूसरी दीक्षा है। दोनों जब नासिरा से मिलीं, उनको बधाई वग़ैरह दी तो वो पहले तो अनजान बनने का ड्रामा करती रहीं। लेकिन ये नेट युग के बच्चे हैं, कोई संकोच या डर इनमें कहाँ होता है। दोनों ने तमाम फोटोज का ज़िक्र करके उन्हें निरुत्तर कर दिया। नासिरा परेशान हो गईं, लेकिन हार नहीं मानी, अपना आख़िरी दाँव चला। 
इन दोनों को उल्टा प्रेशर में लेते हुए कहा कि, ‘तुम दोनों ने अंडर एज होते हुए भी क्यों इंस्टा ज्वाइन किया?’ मगर नासिरा का प्रेशर इन दोनों के आगे बेकार हो गया, तो उन्होंने इन दोनों को घर बुलाया। इनका मुँह बंद रखने के लिए इन्हें भी इंस्टा पर सक्सेस के गुरु मंत्र दिए। फोटोग्रॉफी के लिए इन दोनों को घर आते रहने का ऑफ़र दिया। अब तीनों चोर-चोर मौसेरे भाई नहीं, मौसेरी बहनें बन गईं। गुरु शिष्य का रिश्ता तिरोहित हो गया। 

“अब तीनों एक दूसरे की फोटो खींचतीं। अब तक नासिरा केवल अपने ही द्वारा किसी तरह खींची गई फोटो से काम चला रही थीं। अब तीनों एक से बढ़कर एक फोटो एक दूसरे की खींचने लगीं। तीनों एक दूसरे की राज़दार थीं। नासिरा ने बैंक के अकाउंट के लिए अपना नंबर यूज़ करने को कहा। क्योंकि दीक्षा और सतविंदर के पास कोई बैंक अकाउंट नहीं था। पैन कार्ड के बिना अकाउंट में इंटरनेट बैंकिंग ऐक्टीवेट नहीं करवा सकती थीं। टीचर स्टुडेंट का रिश्ता इस तरह कलंकित होने लगा। तीनों एक दूसरे की मदद कर आगे बढ़ रही थीं। मैं तो यह सुनकर ही अचंभे में पड़ गई कि तीनों कैसे एक दूसरे की नेकेड फोटो खींचती रहीं। मुझे तो तुम्हें बताते हुए भी शर्म आ रही है।” 

“सिहरन तो मुझे भी हो रही है यार। इमेजिन करके ही कि हमारी पटाखा, मेरी टोंड बॉडी वाली नेकेड पटाखा, कैमरा, फोटोग्रॉफी आहः।” 

“बस-बस ज़्यादा आहें भरने की ज़रूरत नहीं है। तुम मर्दों की लार ना औरतों का नाम सुनते ही ना जाने क्यों इतनी जल्दी टपकने लगती है।” 

“क्यों ग़ुस्सा होती हो यार, मज़ाक़ को मज़ाक़ रहने दिया करो। अच्छा यह तो बताओ, मर्दों पर तो सेकेंड भर में आरोप लगा दिया। ज़रा औरतों के बारे में भी सच में सच बताओगी। उनकी भी फ़ीलिंग क्या ऐसी ही नहीं होती?” 

“नहीं-नहीं, नेवर मिस्टर हसबैंड।” 

“मानना पड़ेगा कि तुम झूठ भी इतनी परफ़ेक्टली बोलती हो कि वह सच से भी ज़्यादा बड़ा सच लगता है। ख़ैर क्या सना मतलब कि नासिरा के घर में उसे कोई टोकता नहीं? उसके हस्बैंड कैसे बरदाश्त करते हैं कि उसकी नेकेड बीवी को दुनिया देखकर आहें भरे।” 

“जब होंगे तब ना कोई देखेगा, टोकेगा।” 

“क्यों, क्या उसका परिवार नहीं है।” 

“नहीं, बताती तो यही है कि जब वह पढ़ रही थी तभी उसका निकाह कर दिया गया। एक लड़का भी हुआ था। कुछ दिन बाद किसी बात पर मियाँ-बीवी में कुछ अनबन हो गई तो मियाँ ने एक झटके में तीन तलाक़ दे दिया। इसको घर से निकाल दिया। लड़के को भी छीन लिया। 

“जब इसके भाई-बाप ने सुना तो दौड़े-भागे पहुँचे सुलह कराने। फिर से नासिरा को घर में रखने के लिए उसके मियाँ को मनाने। बड़ी मान-मनौव्वल के बाद मियाँ तैयार हुआ लेकिन साथ ही हलाला की शर्त भी रख दी। नासिरा को किसी मौलवी से हलाला करना था। नासिरा ने यह शर्त मानने से मना कर दिया। 

“पढ़ाई कर के आगे बढ़ी। नौकरी मिल गई। बाद में इसके भाइयों का निकाह हो गया तो वह सब अपने परिवार में व्यस्त हो गए। अब तक माँ-बाप भी चल बसे थे। उनके ना रहने पर भाइयों-भाभियों ने इसे अपमानित प्रताड़ित करना शुरू कर दिया तो नासिरा ने सबको छोड़ दिया। सारे सम्बन्ध ख़त्म कर दिए।” 

“ओह यह तो बड़ी सैड स्टोरी है नासिरा की। सॉरी मुझे ऐसी परेशान बहादुर महिला के लिए पटाखा नहीं बोलना चाहिए था। वाक़ई मुझसे अनजाने में ही सही बड़ी ग़लती हुई। तुमसे उसकी जो मदद हो सके वह ज़रूर करना। वह वाक़ई एक बहादुर औरत है।” 

“बस-बस, उसके लिए इतना परेशान ना हो। पहले मेरा ट्रांसफ़र कराओ। नहीं तो अकेले रहते-रहते मैं भी कहीं पटाखा ना बन जाऊँ। समझे। यार समझने की कोशिश करो। तुम सब वहाँ, मैं यहाँ अनजान लोगों के बीच अकेले। बहुत डर लगता है। बेटे को देखकर प्यार करने को जी तरस जाता है। बेटे वाली होकर भी बिना बच्चे वाली का सा जीवन जी रही हूँ। बच्चा माँ के होते हुए भी बिन माँ के जैसे जी रहा है। प्लीज़ यार मैं यहाँ अब ज़्यादा दिन नहीं रह पाऊंगी।” समायरा यह कहते-कहते फोन पर ही रो पड़ी। नलिन ने पत्नी को बड़ी मुश्किल से चुप कराया। 

कहा, “सुनो, बस यही सेशन पूरा कर लो। कुछ ही महीने रह गए हैं। इस बार ट्रांसफ़र करा पाया तो ठीक है। नहीं तो स्टडी लीव, बीमारी लीव, आदि किसी भी बहाने पर चली आना। इस बीच कोशिश करता रहूँगा। हो गया तो ठीक है। नहीं तो छोड़ देना नौकरी। अब तुम्हें दोबारा वहाँ नहीं जाना। वहाँ छोड़ कर यहीं किसी प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना। इतनी सैलरी न सही आधी तो मिल ही जाएगी ना। तुम्हें क्या लगता है, मैं, बाक़ी सब लोग यहाँ तुम्हारे बिना बहुत ख़ुश हैं। 

“कुछ महीने और, फिर हम सब हमेशा साथ रहेंगे। ऐसे पैसों का भी क्या मोल जिससे पारिवारिक जीवन, सुख ही ख़त्म हो जाए। परिवार ही बिछुड़ जाए है। ठीक है। अब शान्ति से सो जाओ। कल जैसा हो नासिरा के मामले में वह बताना। ज़रूरी हुआ तो मैं कल ही आ जाऊँगा। ठीक है।” 

“ठीक है।” 

“गुड नाइट माय स्वीटहार्ट। आई लव यू सो मच।” 

“गुड नाइट डार्लिंग।” 

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