नक्सली राजा का बाजा - 2
कथा साहित्य | कहानी प्रदीप श्रीवास्तव15 May 2019
भाग - 2
अफनाहट में उन्हें यह शक भी परेशान करने लगा कि उनके आसपास आज भी जो लोग हैं वह वाक़ई उनके हैं भी या नहीं। या भोजू के जासूस बनकर उनके आगे पीछे लगे हैं। हर आदमी उनके शक के राडार पर आ गया। कई बार पत्नी भी उन्हें शक के राडार पर नज़र आने लगी। जबकि उनकी तेज़तर्रार पत्नी के राडार पर उनकी हालत साफ़ नज़र आ रही थी। जिसे देख कर पत्नी चिंता में पड़ गई कि "ऐसे तो यह बीमार पड़ जाएँगे। इन्हें कुछ हो गया तो इतना फैला हुआ काम-धंधा कौन सँभालेगा। चारों बच्चे अभी छोटे ही हैं।" आख़िर उन्होंने एक दिन नेता जी को बहुत समझा-बुझाकर कहा-
"देखिए पता नहीं कितने राजनीतिज्ञ, पता नहीं कितनी बार यह कहते आए हैं कि राजनीति में ना तो कोई स्थायी शत्रु है, ना कोई स्थायी मित्र। देखते नहीं कैसे जानी दुश्मन नेता, पार्टियाँ ज़रूरत पड़ने पर पल भर में थूक कर बार-बार चाटने में देर नहीं करते। पलभर में गले मिलने लगते हैं। उन्हें देख कर तो कहना पड़ता है कि साँप-छछूंदर की, साँप-नेवले की भी दोस्ती हो जाती है।" इस पर नेताजी एकदम तड़कते हुए बोले-
"आख़िर तुम कहना क्या चाहती हो?"
नेताजी भीतर-ही-भीतर बुरी तरह हिल रहे थे, पत्नी से उनकी वास्तविकता छिपी नहीं थी, फिर भी पत्नी ने अनजान बनते हुए उन्हें अपनी योजना बताई। योजना सुनते ही नेताजी लगे तियाँ-पाँचा बतियाने। लगे तांडव नृत्य करने। इतना भीषण की पत्नी को लगा कि उसका अनुमान ग़लत है कि पति के बारे में वह सब कुछ जानती-समझती है। सदैव की भाँति वह फिर चली गईं दूसरे कमरे में। इधर जब नेताजी का पारा ठंडा हुआ तो उन्हें पत्नी की बातों में दम नज़र आने लगा। कुछ ही देर में यह दम उनके दिमाग़ में बढ़-चढ़ कर बोलने लगा।
आख़िर उन्होंने तय कर लिया कि वह पत्नी की सलाह पर अमल करेंगे। मगर यह तय करते ही समस्या यह आन पड़ी कि बहाना कौन सा ढूँढें? कौन सा अवसर ढूँढें? इस पर उन्हें ज़्यादा माथापच्ची नहीं करनी पड़ी। कुछ ही दिन बाद उनकी माँ की बरसी थी। वही समय उन्हें ठीक लगा। सोचा इस अवसर को ही भुनाता हूँ। उनके मन में एक लालच और उठ खड़ा हुआ कि इसी बहाने कितने उनके कहने पर चल सकते हैं यह भी पता चल जाएगा। भोजू और पार्टी को भी अपनी ताक़त का एहसास करा देंगे।
यह सोचने के साथ ही उनके मन में एक चोर भी आ बैठा कि यह योजना कहीं बैक फ़ायर ना कर जाए। यह कहीं कम लोगों के आने से फ़्लॉप शो ना बन जाए। ऐसा हुआ तो लेने के देने पड़ जाएँगे। फिर ख़ुद ही उत्तर दिया कि "अगर ऐसा हुआ तो कहूँगा माँ की बरसी है, ख़ुशी या शक्ति प्रदर्शन का अवसर नहीं है। आप लोग कम से कम भावनात्मक बातों को राजनीति का हिस्सा ना बनाया करें। उल्टा चढ़ बैठूँगा क्वेश्चन खड़ा करने वालों पर।"
नेता जी ने पूरा ज़ोर लगा दिया। इतना कि जैसे एम.पी. का चुनाव लड़ रहे हों। नगर, ज़िला, प्रदेश, से लेकर आलाकमान तक ज़ोर लगा दिया। जिसे कभी झुक कर नमस्कार नहीं किया था उसके भी चरणों में झुक गए। जिसके चरण छूते थे उसके क़दमों में लेट गए। रीढ़विहीन जीव से रेंग गए। ग़रज़ यह कि जितना ज़्यादा, जितना बड़ा नेता आएगा भोजुवा पर उतना ही ज़्यादा असर पड़ेगा। ज़्यादा प्रभाव पड़ेगा तो वह फिर से मेरे क़दमों में लोटेगा। जितनी बार नेता जी के मन में यह बात आती उतनी ही बार वह भोजू को सबसे बदतरीन गालियों से नवाज़ते कि "इस साले के कारण बीसों लाख रुपये फूँकने पड़ रहे हैं। लाखों रुपये तो कंवेंस में डूब गए हैं। कितने चक्कर तो दिल्ली के लगा चुका हूँ। तीन-तीन, चार-चार लोगों को लेकर हवाई जहाज़ से आनन-फानन में जाना-आना कितना हो गया। यह साला बहुत बड़ा भस्मासुर बन गया है। देखो अभी और क्या-क्या करवाता है।
नेताजी की सारी मेहनत के परिणाम वाले दिन ऐसा मिला-जुला परिणाम रहा कि नेताजी ना सिर पीट पा रहे थे, ना ही ख़ुशी मना पा रहे थे। कोई बड़ा नेता, व्यक्ति नहीं आया। कुछ के व्हाट्सप मैसेज आए कि ईश्वर माता जी की आत्मा को शांति प्रदान करें।
कुछ मैसेज इतनी जल्दी, इतनी लापरवाही से भेजे गए कि भाई लोग बरसी को ख़ुशी का अवसर मान बैठे। नेता जी इन सब को पढ़-पढ़ कर मन में ख़ूब गरियाए जा रहे थे। ज़्यादातर वही लोग आए जिनकी गिनती छुटभैए नेताओं में होती थी या वह जो मुफ़्त का खाने-पीने का अवसर ढूँढ़ते रहते हैं। मिलने पर कहीं भी टूट पड़ते हैं। कुल मिलाकर नेताजी की अपेक्षा से कम ही लोग आए, खाय-पिए चल दिए। कोई महत्वपूर्ण आदमी आया ही नहीं। सारे समय जिस एक आदमी को उनकी आँखें ढूँढ़ रही थीं वह दिखा ही नहीं।
भोजू का साया भी उन्हें कहीं नज़र नहीं आया। उसके ख़ासमख़ास में से भी कोई नज़र नहीं आया। नेताजी तंबू उखड़ने तक उसका इंतज़ार करते रहे। बार-बार मोबाइल देखते, रिंग होने पर उनको लगता कि भोजू का फोन आ गया। हर बीतते पल के साथ उनका दिल बैठता जा रहा था। उनकी दशा उनकी पत्नी से छिपी नहीं थी। उन्हें भोजू पर ग़ुस्सा और पति पर दया आ रही थी। देर रात नेताजी बिना ठीक से खाए-पिए ही अपने बेडरूम में चले गए।
पत्नी सारा तामझाम समेटवाने के बाद उनके पास पहुँची। उनकी मानसिक हालत को देखते हुए उन्होंने ज़्यादा कोई बात करने के बजाए ठंडा-ठंडा कूल-कूल तेल उनके सिर पर लगाया। फिर हल्का-हल्का सिर दबाकर सुलाने की कोशिश की।
नेताजी भी आँखें बंद किए रहे। लेकिन उन्हें नींद नहीं आ रही थी। बार-बार भोजू को गरियाते कि "साले को बेशर्म बनकर चार-चार बार बुलावा भेजा। बरसी में बुलावा भेजने का औचित्य ना होने के बावजूद ऐसा किया। व्हाट्सअप मैसेज दिया। माँ की बरसी का इमोशनल कार्ड भी खेला, लेकिन सब बेकार। साले की आँखों में सुअर का बाल है, सुअर का बाल। नहीं तो ज़रूर आता। भले ही दो मिनट को अपना मनहूस चेहरा ही दिखाने को सही।"
इन सब से ज़्यादा नेता जी को कुछ देर पहले ही बड़े पापड़ बेलने के बाद मिली इस सूचना से और चिंता होने लगी कि भोजू किसी बड़े निर्णायक क़दम को उठाने में लगा है। इतना ही नहीं इसके लिए वह पार्टी भी छोड़ने जा रहा है। वह भी बस कुछ ही दिन में। इस सूचना ने नेता जी के पैरों तले ज़मीन खिसका दी। क्योंकि वह अच्छी तरह जानते थे कि भोजू के पास उनके जो-जो राज़ हैं, पार्टी छोड़ने के बाद वह उनका यूज़ करके उन्हें निश्चित ही सड़क पर ला खड़ा करेगा। और वह उसका कुछ भी नहीं कर पाएँगे।
उन्हें सुलाते-सुलाते ख़ुद पत्नी सो गई मगर उन्हें नींद नहीं आई। उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि जैसे तनाव से उनकी नसें फट जाएँगी। वह उठे, अलमारी से व्हिस्की निकाली, बिना सोडा, पानी के नीट ही गिलास में डाल-डाल कर एक झटके में पीते गए। एक दो नहीं तीन-चार लार्ज पैग पी गए और कुछ ही देर में बेड पर भद्द से पसर गए। इतना तेज़ी से दोनों हाथ फैलाए बेड पर पसरे क्या गिरे कि बड़े से बेड पर एक तरफ़ गहरी नींद में सो रही पत्नी से टकरा गए। इतनी तेज़ कि गहरी नींद में सो रही पत्नी घबड़ा कर उठ बैठी। लेकिन पति पर एक नज़र डालते ही समझ गईं कि माजरा क्या है? वह उठीं और किसी तरह उन्हें सीधा कर बेड के बीचो-बीच लिटाया। फिर कई कुशन उठाकर ले आईं और उन्हें उनकी दोनों तरफ़ लगा दिया, ताकि नशे में कहीं वह बेड से नीचे ना लुढ़क जाएँ। ख़ुद दूसरे कमरे में सोने चली गईं। ऐसे में वह कभी भी कोई टेंशन नहीं पालतीं बल्कि उनकी सुरक्षा का हरसंभव इंतज़ाम करके दूसरे कमरे में आराम से सो जाती हैं। आज भी यही किया।
नेता जी का अगला पूरा दिन हैंगओवर से मुक्ति पाने में निकल गया। थोड़ा बहुत जो काम किया उसमें सिर्फ़ यही जानने का प्रयास किया कि भोजू के जिस राइटहैंड को अपनी ओर मिलाने का प्रयास किया था उसमें कहाँ तक सफलता मिली। जितनी जानकारियाँ उन्हें मिलीं उससे उन्हें सफलता मिलती नज़र आई। उनकी भेजी नोटों की गड्डियों का पूरा असर रात होते-होते दिखा। वह आदमी रात के अँधेरे में किसी थर्ड प्लेस पर मिलने को तैयार हो गया।
नेता जी रात दो बजे जब उससे मिलकर लौटे तो उनको इस बात की ख़ुशी, संतुष्टि थी कि उन्होंने भोजू के राइट हैंड को पूरी तरह तोड़ लिया है। हालाँकि यह तब हुआ जब उन्होंने कई लाख रुपये की गड्डी से उसकी हथेली को और ज़्यादा गर्म कर दिया। लेकिन राइट हैंड ने जो जानकारियाँ उनको दीं उससे वो सकते में पड़ गए। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उन सब की काट क्या है? वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि आख़िर किससे सलाह-मशविरा करें। किससे पूछें कि उन्हें क्या करना चाहिए? टेंशन बढ़ते ही वह हमेशा की तरह अपनी बार की तरफ़ बढ़ गए।
आज भी बड़ी बोतल निकाली लेकिन कुछ देर हाथ में लिए पता नहीं क्या सोचते रहे। फिर उसे उसी तरह अलमारी में रख कर बंद कर दिया। बार के सामने ही पड़े बड़े से सोफा कम बेड पर पसर गए। नींद, चैन उन्हें कोसों दूर-दूर तक नहीं दिख रही थी। उधेड़बुन में ज़्यादा देर तक पसर भी नहीं पाए तो कमरे में चहलक़दमी करने लगे। बेड पर पत्नी गहरी नींद में सो रही थी। वह कब आए इसका पता उसे नहीं था। नेताजी की चहलकदमी ने उन्हें उम्मीद की एक किरण दिखा दी। उन्हें अपने एक हम-प्याला हम-निवाला लेखक मित्र की याद आई। जिसे वह ना सिर्फ़ राजनीति बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अपना सलाहकार बनाए हुए थे। कई मौक़ों पर उसने बड़ी-बड़ी गंभीर समस्याओं का समाधान उन्हें बताया और समस्या से बाहर भी निकाला था। मित्र का ध्यान आते ही उन्होंने यह भी न देखा कि रात के तीन बज रहे हैं। मोबाइल उठाया और कॉल कर दी। कई बार रिंग करने के बाद कॉल रिसीव हुई। छूटते ही नेता जी बोले-
"क्या मित्रवर यहाँ जान पर बनी हुई है और आप हैं कि कॉल तक रिसीव नहीं कर रहे हैं।"
लेखक महोदय ने कहा, "नेता जी इतनी रात को कॉल किया सब ठीक तो है ना।"
"सब तो क्या कुछ भी ठीक होता तो सवेरे तक इंतज़ार कर लेता। मगर कुछ भी ठीक नहीं है, इसलिए इंतज़ार करने का कोई मतलब नहीं था।"
"अच्छा तो फिर मुझे जल्दी बताइए क्या बात है?"
नेता जी बोले, "फोन पर सारी बातें नहीं हो पाएँगी। मिलकर ही कर सकते हैं।"
"ठीक है, मैं आने को तैयार हूँ, लेकिन इस वक़्त मेरे पास कोई साधन नहीं है।"
"आप रहने दीजिए मैं ख़ुद आ रहा हूँ।"
नेताजी ने गाड़ी निकाली और पत्नी को बिना बताए चले गए अपने सलाहकार मित्र के पास। सलाहकार मित्र को भी नेताजी और भोजू के बीच तनातनी की भनक थी। नेताजी ने सिलसिलेवार उन्हें सारी बातें बताईं। कहा, "आज ही उसके सबसे बड़े हमराज़ और दाहिने हाथ ने बताया है कि भोजू कोई बड़ा आंदोलन चलाने की तैयारी कर रहा है। इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण यह कि पार्टी छोड़ कर यह सब करेगा। यदि वह सक्सेस हुआ तो मेरा पॉलिटिकल कॅरियर समाप्त, असफल हुआ तो भी।"
नेता जी की इस बात पर लेखक सलाहकार मित्र ने पूछा, "असफल होने पर कैसे?"
मित्र की इस बात पर नेताजी खीझ उठे। वह ऐसा महसूस कर रहे थे कि जैसे मित्र उनकी बातों को गंभीरता से नहीं सुन रहे हैं। इस बार नेताजी ने खीज निकालते हुए बोल दिया-
"लगता है आप मेरी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।" यह सुनते ही लेखक मित्र सकपका कर बोले, "नहीं-नहीं ऐसी कोई बात नहीं है। पूरी गंभीरता से सुन रहा हूँ। आप बताइए।
"देखिए पार्टी द्वारा जो काम पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में कई राज्यों में किया गया वही काम यहाँ भोजू के सहारे किया जाएगा। यदि भोजू को पब्लिक, मीडिया का सपोर्ट मिल गया तो वह निर्दलीय ही जीतेगा, जीतेगा तो आलाकमान उसे कैच करने के लिए हाथ फैलाए खड़ा है। वह बराबर ऐसे लोगों की फिराक में रहता है। तुरंत कैच कर लेगा। भोजू रातोंरात चमक जाएगा।
यदि हार गया तो ऐसा नहीं है कि पार्टी उससे मुँह फेर लेगी। पार्टी में उसकी अहमियत बन जाएगी। क्योंकि इसके चलते पार्टी भोजू के रूप में सीट अपने कब्ज़े में ना कर पाई तो यह भी तो तय है उसके ज़रिए वह सत्ताधारी पार्टी के लिए सिरदर्द पैदा कर देगी। कुछ सीटों पर उसका खेल बिगाड़ देगी। जैसा सुनने में आया है उस हिसाब से पार्टी लाइन से अलग उसका आंदोलन उसे देखते-देखते महत्वपूर्ण बना देगा। उसके ऊपर हर तरफ़ से धन, सरकारी सुरक्षा सब बरसने लगेगा। और तब मेरे पास कुछ नहीं बचेगा। मेरी राजनीति पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी। मैं पूरी तरह ख़त्म हो जाऊँगा।
मेरे सामने राजनीति से तौबा करने, कहीं मुँह छुपा कर बैठने, डूब मरने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचेगा।"
यह कहते हुए नेता जी बहुत गंभीर हो गए। गंभीर लेखक महोदय भी हो उठे थे। लेकिन जल्दी ही ख़ुद को सँभालते हुए बोले, "देखिए उसे मैं समझ तो बहुत दिन से रहा था। मैंने एक दो बार आपसे कहा भी था कि इससे अलर्ट रहिए। कई बार संकेत दिए लेकिन आप इग्नोर करते रहे। कहते रहे कि भोजूवीर ऐसा नहीं है। वह कुछ भी कर सकता है लेकिन मेरे साथ गद्दारी नहीं। लेकिन मैं बराबर उसे पढ़ने का प्रयास कर रहा था। मैं देख रहा था कि वह बहुत एग्रेसिव सोच का है। नियम क़ानून या सिस्टम को फ़ॉलो करने वाली उसकी सोच नहीं है। उसे बस पैसे और रुतबे की हवस है। चाहे जैसे मिले। उसके दिमाग़ में यह भरा हुआ है कि एक व्यक्ति अराजकता पैदा कर एक प्रदेश का सी.एम. बन बैठा है।
हालाँकि अब उसकी इमेज़ थूकने-चाटने भर की रह गई है। दूसरे दो को उसने देखा कि वह जातीय मुद्दे के नाम पर हिंसा उपद्रव करवा कर विधायक बन गए। एक जातीय मुद्दे को आरक्षण की आग लगाकर तकनीकी कारणों से विधायक तो नहीं बना लेकिन पैसा, लोगों का हुजूम, सरकारी सुरक्षा ने उसे भी वी.आई.पी. बना दिया है। वह यही सब करना चाह रहा है। ख़बरें मेरे पास भी हैं, कि उसने ना सिर्फ़ अपने रास्ते का निर्धारण कर लिया है बल्कि उस पर बहुत आगे निकल चुका है। कुछ ही दिन बाद आप लोगों के देवता चित्रगुप्त की पूजा है। उसी दिन वह अपना आंदोलन शुरू कर रहा है। उसकी तैयारी पूरी और पक्की है।
उस दिन वह धरना स्थल पर ही पहले अपने लोगों के साथ सामूहिक पूजा करेगा, फिर पूजा के समापन के साथ ही कायस्थों कोे आरक्षण दिए जाने की माँग करेगा। वहीं से आंदोलन शुरू कर देगा। इसी उद्देश्य से उसने सामूहिक पूजा के नाम पर बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति सुनिश्चित कर ली है। मुझे आश्चर्य तो यह हो रहा है, कि आपको इन सारी बातों की पूरी जानकारी नहीं है। मैं तो सोच रहा था कि आप को बहुत कुछ पता होगा। लेकिन आपके पास बस उड़ती-उड़ती जानकारी है। जिस दिन आपके यहाँ बरसी के कार्यक्रम में पार्टी के बहुत से लोग आ रहे थे उसी दिन यह भी अफ़वाह थी कि भोजू दो दिन से दिल्ली में पार्टी लीडर से गुफ़्तगू कर रहा है। मैं सोच रहा था कि आप भी उस समय दिल्ली के चक्कर लगा रहे थे आपको सारी ख़बर होगी। मगर यहाँ तो बात उलटी है।"
नेताजी लेखक मित्र की बातें सुनकर एकदम बुत बन गए। उनकी हालत देखकर लेखक बोले, "लेकिन आपको घबराने की ज़रूरत नहीं है। भोजू कि इस चालाकी की काट मेरे दिमाग़ में कुछ धुँधली ही सही उभरने लगी है। कोई रास्ता निकल ही आएगा। यह ध्यान रखिएगा कि हर समस्या के साथ उसका समाधान भी नत्थी रहता है। थोड़ा समय दीजिए मैं जल्दी ही आता हूँ आपके पास।"
सुबह हो चुकी थी। लेखक से विदा लेकर नेताजी चेहरे पर दयनीय भाव लिए बाहर निकले। मन ही मन गाली देते हुए "साले लेखक मैं तेरे समाधान के इंतज़ार में अपना सत्यानाश करने वाला नहीं। मैं इस भोजुवा का वह हाल कर दूँगा कि इस बार यह "ॐ श्री चित्रगुप्ताय नमो नमः" बोलने लायक़ ही नहीं रहेगा। उसके पहले ही उसके घर वाले राम नाम सत्य है, भोजू नाम सत्य है, बोल चुके होंगे।" यही सोचते हुए वह घर पहुँचे कि आज इसके तियाँपाँचा के काम को हरी झंडी दे दूँगा। उस साले ड्राइवर को उसकी मुँह माँगी क़ीमत दे दूँगा।
घर पहुँचे तो उन्हें बीवी किसी से मोबाइल पर बात करती हुई मिली। ग़ुस्से में उसे भी मन-ही-मन गरियाया, "साली जब देखो तब मोबाइल ही से चिपकी रहती है।" नेताजी सीधे बेडरूम में पहुँचे। सोचा कि दो-तीन घंटा सो लूँ, फिर निकलूँ। लेकिन भोजू उन्हें लेटने देता तब ना। उनके दिलो-दिमाग़ में निरंतर नगाड़ा बजाए जा रहा था। उनके दिमाग़ का कचूमर निकाले जा रहा था। नींद से कडु़वाती आँखों, थकान से टूटते शरीर के बावजूद वह सो नहीं पाए। एक बार सोचा कि दो-चार पैग मार कर सो जाएँ। लेकिन भोजू फिर आतंकी की तरह सामने आ खड़ा होता है। हार कर उन्होंने ख़ूब जमकर नहाया। फिर निकल गए भोजूवीर के तियाँपाँचा को हरी झंडी दिखाने। क़रीब तीन घंटे बाद वह लौट, ज़ालिम ड्राइवर को हाफ़ पेमेंट एडवांस देकर। बाक़ी काम होने के बाद देने का वादा भी कर आए। साथ ही चित्रगुप्त पूजा से पहले काम हो जाने का सख़्त आदेश देना नहीं भूले।
- क्रमशः
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