नक्सली राजा का बाजा - 3
कथा साहित्य | कहानी प्रदीप श्रीवास्तव1 Jun 2019
नक्सली राजा का बाजा - 3लौटने के बाद नेता जी इतना ख़ुश थे कि पूछिए मत। लग रहा था कि जैसे विश्व मैराथन दौड़ अत्यधिक कड़ी टक्कर मिलने के बाद भी रिकॉर्ड समय के साथ जीत कर आए हैं। दौड़ने से चेहरा, पूरा बदन पसीना-पसीना ज़रूर हो रहा था लेकिन जीतने की ख़ुशी भी चेहरे पर साफ़ दिख रही थी। कोई किसी की जान लेने का इंतज़ाम करके भी ख़ुश हो सकता है यह देखना हो तो नेताजी को देखा जाना चाहिए। जो कल तक अपने राइट हैंड रहे, हम प्याला, हम निवाला भोजूवीर की अर्थी उठवाने की व्यवस्था करके ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे। वही भोजूवीर जिसे वाराणसी ज़िले के भोजूवीर क़स्बे में एक राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान देखा था।
उसकी सांगठनिक क्षमता उसके पीछे चलती भीड़ देखकर बड़ी दूर की सोची और बुला कर कहा, "यहाँ कहाँ अपने को खपा रहे हो। लखनऊ आओ, राजनीति की मुख्यधारा में खेलो।" जब वह आ गया तो जल्दी ही प्यार से उसे उसके नाम ऋषि राज की जगह भोजूराज फिर भोजूवीर कहने लगे।
जिसे कल तक वह सब से अपना छोटा भाई कहकर परिचय कराते थे, अब उसी के लिए नेताजी इंतज़ार करने लगे कि ड्राइवर जल्दी ही बाक़ी पचास पर्सेंट भी लेने आएगा। सवेरे पेपर उठाते ही आदत के मुताबिक फ्रंट पेज देखने के बजाए अब वह लोकल पृष्ठ पहले देखने लगे कि ट्रक दुर्घटना में भोजू की मृत्यु की ख़बर है कि नहीं। हर आने वाले को देखते ही उसका चेहरा पढ़ने का प्रयास करते कि भोजू की सूचना लेकर आया है क्या? लेकिन नेताजी पर जैसे साढ़ेसाती सनीचर की ढैय्या का प्रकोप था। जैसे राहु-केतु की वक्र दृष्टि उन पर पड़ रही थी। सब कुछ उलट-पुलट हो रहा था।
भगवान चित्रगुप्त पूजा के चौबीस घंटे बचे थे, मगर भोजू की मौत की ख़ुशख़बरी सुनने को उनके कान तरस रहे थे। वह बार-बार ड्राइवर से मिलना भी नहीं चाह रहे थे। डर रहे थे कि किसी ने देख लिया और भोजू की दुर्घटना में मौत के बाद जब ड्राइवर पकड़ा जाएगा तो कहीं कोर्ट में वह यह ना बोल दे कि मैं फलां दिन उससे मिला था।
आख़िर वह समय भी आ गया जब भगवान चित्रगुप्त की पूजा के मात्र बारह घंटे बचे। नेताजी अपने स्तर पर भोजू की तैयारियों की पल-पल की ख़बर ले रहे थे। हर पल के साथ उनकी धड़कनें तेज़ हो रही थीं। उल्टी गिनती शुरू हो चुकी थी। वो रात भर कमरे में चहलक़दमी करते रहे। लेकिन उनकी ख़ुशी के पल नहीं आ रहे थे। उनकी सारी ख़ुशी, सुख, चैन का रास्ता भोजू पहाड़ की तरह रोके हुए था। भगवान चित्रगुप्त आ विराजे थे। दीपावली बीत गई थी। लेकिन दीए उनके दिल पर अब भी जल रहे थे। अब भी पूरा घर, पूरी दुनिया त्यौहार की ख़ुशियाँ मना रहा था लेकिन वह अलग-थलग थे। हमेशा विधिवत भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने वाले नेता जी पूजा के बारे में सोच भी नहीं रहे थे। जबकि पूजा के कुछ ही घंटे रह गए थे।
भोर हो गई, सूरज चढ़ आया लेकिन नेताजी की दुनिया में अँधेरा ही था। भोर तक नहीं हो रही थी। घरवालों ने पूजा के लिए तैयार होने के लिए कहा लेकिन उन्होंने भड़कते हुए कह दिया "तुम लोग कर लो।" सब समझ गए कि कुछ बहुत ही गंभीर बात है, वरना आज तक धरती इधर से उधर हो जाए, अपनी धुरी पर उल्टा घूमना शुरू कर दे लेकिन वह भगवान चित्रगुप्त की पूजा नहीं छोड़ते थे। मगर इस बार सब उलटा हो रहा था।
इधर घर में भगवान चित्रगुप्त की पूजा चल रही थी और उधर नेताजी के पास भोजूवीर के ख़ास आदमी की कॉल आ गई। वही ख़ास आदमी जिसे नेता जी ने तोड़ लिया था। उसने जो बताया उससे नेता जी के पैरों तले ज़मीन खिसकी नहीं ग़ायब हो गई। पूरी पृथ्वी ही ग़ायब हो गई। वह अपने को त्रिशंकु की तरह अंतरिक्ष में लटका पा रहे थे। और दूर अपनी धुरी पर घूमती पृथ्वी पर वह भोजूवीर की सिर्फ़ सामूहिक चित्रगुप्त पूजा देख पा रहे थे। विशाल जनसमूह के साथ भोजू भगवान चित्रगुप्त की पूजा कर रहा था। और उनके घर वालों ने पता नहीं क्यों पूजा बीच में ही छोड़ दी थी।
नेताजी घबरा गए कि घरवालों ने इतना बड़ा अपशगुन क्यों कर दिया। वह पूरी ताक़त से चिल्लाए, "मूर्खों, पागलों, पूजा अधूरी क्यों छोड़ी दी। तुम सब पागल हो गए हो क्या? मुझे बर्बाद करने पर क्यों तुले हुए हो?" मगर कोई नहीं सुन रहा था। तभी चित्रगुप्त भगवान की समवेत स्वरों में आरती शुरू हो गई। साथ में घंटा भी बज रहा था। घर के सभी लोग समवेत स्वर में आरती कर रहे थे। नेताजी का ध्यान भंग हो गया।
वह मोबाइल अभी तक कान से चिपकाए हुए थे। जबकि फोन करने वाले ने अपनी बात कहकर कब का फोन डिसकनेक्ट कर दिया था। वह एकदम पस्त होकर सोफ़े पर फिर पसर गए। सिर पीछे टिका कर आँखें बंद कर लीं। कुछ देर बाद उनकी पत्नी आईं। पूजा के समय भी उनका दिमाग़ पति पर ही लगा हुआ था कि आख़िर कौन सी ऐसी बात हो गई है कि जीवन में पहली बार पूजा तक नहीं की। वह प्रसाद देने के बहाने आई थीं। इसी बहाने बात उठाकर पूछना चाहतीं थीं कि बात क्या है? बगल में बैठ कर उन्होंने उनकी बाँह पर हाथ रखकर हल्के से पूछा "सो रहे हैं क्या?" नेताजी ने आँखें खोले बग़ैर ही पूछा "क्या बात है?" दरअसल पिछले बीस बाइस घंटों से वह सो ही कहाँ पा रहे थे। उनकी नींद तो भोजू ले उड़ा था। पत्नी ने कहा "प्रसाद लाई हूँ, बात क्या है? कुछ तो बताइए।" नेताजी चुप रहे आख़िर पत्नी ने फिर पूछा तो तीखे स्वर में कहा "रख दो, जाओ यहाँ से।" पत्नी उनके सख़्त लहजे से समझ गई कि इस समय और बोलना अच्छा नहीं है।
वह गहरे सोच में पड़ गईं। त्यौहार पूजा की जो उमंग थी उस पर पूरी तरह ग्रहण लग गया। घंटा भर भी ना बीता होगा कि नेताजी के इनफ़ॉर्मर का फोन फिर आ गया। उसने बताया कि "भोजू ने पूजा के बाद वहाँ उपस्थित क़रीब आठ सौ चित्रगुप्तवंशियों को धन्यवाद ज्ञापित करने के नाम पर संबोधित करना शुरू किया है।
देश की आज़ादी में कायस्थों के योगदान का उल्लेख कर रहा है। स्वतंत्रता सेनानी एवं देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से लेकर महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस तक का उल्लेख किया है। सबसे योग्य प्रधानमंत्रियों में गिने जाने वाले लाल बहादुर शास्त्री का उल्लेख करते हुए कहा कि "उनके ही चलते देश सुरक्षा मामलों, खाद्यान के क्षेत्र में आज आत्मनिर्भर बन सका है। फिर भी सभी राजनीतिक पार्टियों नेे कायस्थों की घोर उपेक्षा की है। उन्हें हर जगह हाशिए पर डाल दिया है। नौकरी से बाहर कर दिया गया है।
साज़िशन उन्हें किसी भी वर्ग में नहीं रखा गया है। बड़े हैं, अगड़े हैं, बस। लेकिन दलित, वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण किस वर्ण में हैं इस बिंदु पर चुप हैं। पहले भी यह बात आ चुकी है कि कायस्थों को दलित वर्ग में शामिल करो। या फिर पाँचवां वर्ण मानों। जो हाशिए पर है। इसे भी आरक्षित वर्ग में रखो। लेकिन कुटिलतापूर्वक यह कह कर नकार दिया गया कि हम स्वभावतः कुशाग्र बुद्धि के हैं। अपनी मेधा से सारे पद ले लेंगे। यह कुटिलतापूर्ण कुतर्क है। हमें रोकने, बर्बाद करने की साज़िश है।
आज़ादी के बाद से बराबर इस साज़िश का परिणाम है कि आज कायस्थों के पास नौकरी नहीं है। जबकि सदियों से कायस्थ शासन-प्रशासन का सबसे अहम हिस्सा रहा है। मगर आज दर-दर भटक रहे हैं। कायस्थ पटरी पर दुकानें, रेहड़ियाँ लगाने से लेकर रिक्शा तक चला रहे हैं। हमसे हमारे अधिकार, रोज़गार, ज़मीन सब छीन लिए गए हैं। इसलिए हमें अब और चुप नहीं बैठना है।
हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो हमारे अस्तित्व को समाप्त होने में अब ज़्यादा समय नहीं लगेगा। आदरणीय स्वजनों हमने यदि अभी भी कुछ नहीं किया तो हमारी आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी। हम अपनी आँखों के सामने ही अपनी अगली पीढ़ी को दर-दर भटकते देख ही रहे हैं।"
इनफ़ॉर्मर ने नेता जी को चटखारे लेते हुए बताया कि, "भोजू के भाषण को लोगों ने ना सिर्फ़ ध्यान से सुना बल्कि उससे आगे बढ़ने और हर क़दम पर साथ देने का वचन भी दिया।
और भोजू ने गर्म लोहे पर चोट करने में देर नहीं की। उसने सबसे भगवान चित्रगुप्त की शपथ लेने को कहा कि सभी उसके शुरू होने वाले आंदोलन को तन-मन-धन से सहयोग करेंगे। और अब पूजा के नाम पर जिस समूह को इकट्ठा किया था उनकी भावनाओं में उबाल लाकर उन्हें लेकर धरना-प्रदर्शन के लिए आगे की ओर बढ़ चला है। पुलिस के नाम पर चार-छः लोग ही हैं। उन्होंने बिना अनुमति धरना प्रदर्शन के लिए मना किया लेकिन भोजू मान नहीं रहा है।
यह तय है कि और पुलिस फोर्स के आने में देर नहीं लगेगी। वह इन्हें आगे बढ़ने नहीं देगी। भोजू के चुने हुए बदमाश इसी समय पुलिस पर पत्थरबाज़ी, गाड़ियों, दुकानों में आग लगाने का काम शुरू कर देंगे। मजबूरन पुलिस सख़्ती करेगी, लाठी, गोली चलाएगी। दर्जनों लोग मारे जाएँगे। भोजू यही चाहता है। और यह होकर रहेगा। क्योंकि जो भीड़ उसके साथ चल रही है वह तो पूजा के लिए इकट्ठा हुई थी। उसे इस साज़िश का पता ही नहीं है। साज़िश से अनजान मासूम मारे जाएँगे। फिर विपक्षी पार्टियाँ मरे हुए लोगों की हितैषी शुभचिंतक बनकर आगे बढ़ेंगी। मीडिया तो चिल्लाएगा ही। हर तरफ़ से बहुतों का सपोर्ट मिलेगा भोजू को। जातीय राजनीति को इनकार करने का ढोंग करते हुए पार्टी उसे हाथों-हाथ ले लेगी। पैसा, आदमी, आंदोलन को और आग देने के लिए कूटनीतिज्ञों की सेवाएँ बस अगले कुछ ही घंटों बाद भोजू के क़दमों में ढेर होने लगेंगी।"
नेताजी इनफ़ॉर्मर की बातों को इससे ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाए। इतना क्रोध में आ गए कि मोबाइल पूरी ताक़त से सामने दीवार पर दे मारा। मोबाइल कई टुकड़ों में ज़मीन पर बिखर गया। क़रीब एक लाख रुपए के उनके मोबाइल के कई टुकड़े वापस उनके क़रीब आकर गिरे। पसीने से तर नेताजी थरथर काँप रहे थे।
ट्रक ड्राइवर को भी गाली दिए जा रहे थे कि साले ने पैसा ले लिया लेकिन काम नहीं किया। कर दिया होता तो आज यह भोजू... फिर कई गंदी गालियाँ दीं। बुदबुदाए "ठीक है ट्रक से नहीं मरा, ना सही। लेकिन मरेगा निश्चित।" नेता जी ने इसके साथ ही एक और कठोर निर्णय ले लिया कि वह ट्रक ड्राइवर को भी मारेंगे। आज इन दो में से एक को ज़रूर मरना है। उसे उसके धोखे की सज़ा देंगे। वह दाँत किटकिटाते हुए "बुदबुदाए भोजुवा तुझको ऐसे आसानी से नहीं छोड़ दूँगा। साला लेखक रोज़ शाम को आने के लिए कहता है। आज फिर कहा है। देखता हूँ यह नमक-हराम क्या समाधान निकालता है। बहुत पैसा ख़र्च किया है साले पर।"
नेताजी कुछ देर बैठे रहे। इस बीच मोबाइल की आवाज़ सुनकर पत्नी आई और मोबाइल के बिखरे टुकड़ों को देखकर समझ गई कि क्या हुआ? उसने मोबाइल के सारे टुकड़े उठाकर नेताजी के सामने सेंटर टेबल पर रख दिया। एक गिलास ठंडा पानी भी ले आईं। और बिना कुछ कहे वापस चली गईं। उनके जाने के बाद नेताजी ने सिम उठाया उसे दूसरे मोबाइल में लगाया। उसे वह कुछ दिन पहले ही लाए थे, लेकिन लाने के बाद मॉडल से ना जाने क्यों उनका मन हट गया। उन्होंने उसे रख दिया था, इस समय वही काम आ गया। मोबाइल ऑन होते ही उन्होंने अपने लोगों को फोन कर-कर के भोजू की लोकेशन लेनी शुरू कर दी।
आधा घंटा भी ना बीता होगा कि इनफ़ॉर्मर का फोन फिर आ गया। उसने नमक-मिर्च के साथ फिर सूचना देनी शुरू की। छूटते ही कहा, "पहले जहाँ एक-दो मीडियाकर्मी थे वहीं अब सारे प्रमुख चैनलों की ओ वी वैन आ गई हैं। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जमावड़ा हो गया है। बड़ी संख्या में पुलिस, पीएसी, रैपिड एक्शन फोर्स आ गई हैं। जुलूस को आगे बढ़ने से रोकने की पूरी कोशिश हो रही है। लेकिन साज़िशन भोजू मुठभेड़ के लिए आमादा है।" इनफ़ॉर्मर इतना ही बोल पाया था कि एक ज़ोरदार धमाके की आवाज़ ने नेताजी के कान को सुन्न कर दिया। इनफ़ॉर्मर की भी आवाज़ बंद हो गई। फोन डिस्कनेक्ट हो गया था।
नेताजी की घबराहट से ज़्यादा उत्सुकता और बढ़ गई कि क्या हुआ? भोजू अपनी योजना में क़ामयाब हो गया क्या? उन्होंने कॉल बैक किया तो इनफ़ॉर्मर छूटते ही बोला "आप न्यूज़ चैनल देखिए मैं बाद में कॉल करूँगा।" नेताजी चीख-पुकार, गोलियों की आवाज़, धमाके, शोर के बावजूद कुछ और पूछना चाह रहे थे, लेकिन उधर से फोन काट दिया गया। नेताजी ने रिमोट उठाकर तुरंत टीवी ऑन किया। समाचार चैनल लगाने शुरू किए लेकिन किसी पर भोजू के बारे में कहीं कुछ नहीं आ रहा था। वह चैनल बदलते रहे। लोकल न्यूज़ चैनल तक पहुँचे लेकिन वहाँ भी भोजू के बारे में कुछ नहीं था।
उन्होंने इनफ़ॉर्मर को फिर गाली दी। "यह भी साला दग़ाबाज़ निकला क्या?" उन्होंने रिमोट साइड में रख दिया। उन्हें महसूस हुआ कि गला बुरी तरह सूख रहा है तो पानी उठाकर पिया। उसके पहले पत्नी जो प्रसाद रख गई थीं उसमें से एक पीस मिठाई उठा कर खा ली थी। मिठाई, पानी ने गले को कुछ तरावट दी तो बेचैन नेता जी ने रिमोट उठाकर फिर चैनल बदलना शुरू किया। कुछ ही चैनल बदल पाए थे कि उन्हें एक चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ चलती मिली कि, "आंदोलनकारियों पर पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई। सूत्रों के अनुसार डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत। मरने वालों में महिलाएँ, बच्चे भी शामिल।"
नेताजी की नज़रें टीवी पर जम गईं। आधे घंटे में पूरी तस्वीर साफ़ हो गई। इनफ़ॉर्मर ने जो बताया था थोड़ी देर पहले वही सब हुआ था। कई गाड़ियों, दुकानों, पुलिस के वाहनों को आंदोलनकारियों ने आग के हवाले कर दिया था। पुलिस ने पहले लाठी, आँसू गैस, वाटर कैनन का इस्तेमाल किया लेकिन जब उपद्रवी क़ाबू में नहीं आए तो मजबूरन गोलियाँ चलाईं। मरने वालों में सात बच्चे, छह महिलाएँ, पाँच पुरुष थे। दो दर्जन से अधिक पुलिसवाले भी घायल हुए। भोजू सहित सैकड़ों लोगों को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था।
भोजू को बिना अनुमति जुलूस, धरना, प्रदर्शन करने, सरकारी संपत्तियों को नुक़सान पहुँचाने, क़ानून व्यवस्था को बिगाड़ने, दंगा बलवा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया। वह जो चाहता था वह सब हो गया था। वह चैनलों पर छाया हुआ था। जब पुलिस उसे गिरफ़्तार करके गाड़ी में बैठा रही थी तो उसने चैनल वालों से चीख-चीख कर कहा कि, "पुलिस वालों ने चित्रांशियों के शांतिपूर्ण आंदोलन का बर्बरतापूर्वक दमन किया है। सरकार ने ज़ालिम जनरल डायर की याद दिला दी है। इतिहास को दोहराया है। लेकिन वह अच्छी तरह समझ ले कि दमन से हम झुकने वाले नहीं हैं।
डायर ने स्वतंत्रता सेनानियों का दमन किया, उनकी हत्या की तो उनका भी शासन नहीं रह पाया। इस सरकार की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई है। हम चित्रांशी अब चुप नहीं रहेंगे। देशभर में फैलेगी यह आग। हम अपने अधिकार लेकर रहेंगे। हमें अपनी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण चाहिए ही चाहिए।" वह चीख-चीख कर बोले जा रहा था। रिपोर्टर माइक लिए उसी पर टूटे पड़ रहे थे। पुलिस ने जल्दी ही भोजू को ठूँस कर गाड़ी के अंदर भर दिया था। चैनल बार-बार यही दृश्य दिखाए जा रहे थे। एंकर, रिपोर्टर चीख-चीखकर वही बात दोहराए जा रहे थे। उनकी बातें नेताजी के सिर पर हथौड़े की तरह पड़ रही थीं।
वह धम से सोफ़े पर बैठ गए। उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि वह क्या करें। दिमाग़ में भयानक उथल-पुथल मची हुई थी। वह सोच रहे थे कि "मेरे पीछे-पीछे चलने वाला भोजू देखते-देखते घंटे भर में नेता बन गया। एक साथ सारे चैनलों पर छाया हुआ है। पूरा देश देख रहा है। देश क्या विदेशी चैनल भी तो दिखा ही रहे होंगे। इतना बड़ा बवाल हुआ है। इतने सारे लोग मारे गए हैं। घायलों में से भी अभी बहुत से मर जाएँगे। सारे छोटे बड़े लीडर किस तरह इसी साले के पक्ष में बोल रहे हैं। जाति के नाम पर यह बवाल हुआ है। इसमें भी आलाकमान सुर में सुर मिलाए हुए है। साला कोई मॉरल ही नहीं रह गया है। नेताओं के पीछे-पीछे चलने वाले, जय-जयकार करने वाले के लिए भी आलाकमान घंटे भर में ही लाल गलीचा बिछाने लग गया है। देखता हूँ, इस अपमान का बदला लेकर रहूँगा।"
नेताजी शाम को लेखक के आने तक कहीं बाहर नहीं गए। खाना भी ठीक से नहीं खाया। दिनभर टीवी के सामने जमे रहे। जहाँ-तहाँ फोन मिलाते रहे। शाम को लेखक ने आने में दो घंटे की देरी कर दी। इससे उनकी खीझ, ग़ुस्सा और बढ़ गया था। लेखक को सामने देखते ही नेता जी एकदम से तिलमिलाए। लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए अपने ग़ुस्से पर बड़ी मुश्किल से क़ाबू कर लिया। फिर भी बड़े तल्ख़ अंदाज़ में बोले-
"क्या भाई, यह क्या तरीक़ा है। ना कॉल रिसीव करते हैं ना मैसेज का जवाब देते हैं। मैं सुबह से परेशान हूँ।"
इसी बीच लेखक मुस्कुराते हुए उनके क़रीब पहुँचे और उनका हाथ दोनों हाथों से पकड़ लिया। नेताजी पहले से ही हाथ बढ़ाए हुए थे। लेकिन लेखक की मुस्कुराहट ने उन्हें जैसे चिढ़ाने का काम किया। लेखक ने उनके मनोभावों को तुरंत भाँप लिया था इसलिए उन्हें सोफ़े पर बैठाते हुए बोले-
"नेताजी माना भोजू ने अभी दुनिया अपनी मुट्ठी में कर ली है। मगर हर बंद मुट्ठी को खोलना मैं जानता हूँ। उसकी मुट्ठी में बंद दुनिया छीनकर मैं आपकी मुट्ठी में बंद कर दूँगा।"
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