प्रकृति से मित्रता ही महामारियों से बचाएगी
अन्य | सम्पादकीय प्रतिक्रिया प्रदीप श्रीवास्तव15 Apr 2021 (अंक: 179, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
सम्पादकीय: कोरोना काल में बन्द दरवाज़ों के पीछे जन्मता साहित्य
अप्रैल प्रथम अंक में कोविड-19 पर केंद्रित आपकी संपादकीय पढ़ा। इस महामारी का दुनिया, समाज पर कितना व्यापक प्रभाव पड़ रहा है, इसका बहुत सूक्ष्म विश्लेषण आपने किया है।
मानवता पर इसका जितना विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है, वह भयावह है। ऐसी भयावह स्थिति से दुनिया 1918 में आई महामारी स्पेनिश फ़्लू के बाद पहली बार गुज़र रही है, जिसमें पाँच करोड़ लोग अपनी जान गँवा बैठे थे।
आज पूरी दुनिया डरी हुई है, विश्व अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है। लोग बेरोज़गार हो रहे हैं। भुखमरी और बढ़ने जा रही है। जैसी स्थिति बनी हुई है, उसे देखते हुए यह कहना होगा कि, अब इससे उबरने में दुनिया को कम से कम 5 वर्ष लग जाएँगे। अर्थशास्त्री इस मत पर क़रीब-क़रीब एक राय रखते हैं।
आज की चिकित्सीय सुविधाओं, और वैक्सीन के चलते कोविड-19 से भले ही जनहानि स्पेनिश फ़्लू जैसी ना हो, लेकिन भुखमरी से मरने वालों की संख्या यदि जोड़ी जाएगी तो निश्चित ही जनहानि स्पेनिश फ़्लू से हुई जनहानि से बड़ी होगी। यह एक ऐसी क्षति होगी जिसकी पूर्ति शायद सम्भव न हो।
बात तो यह भी है कि यह वायरस अब ख़त्म ही नहीं होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अब हमारे बीच बना रहेगा। हाँ, लगातार ख़ुद को कॉपी करते रहने के कारण यह प्राणघातक तो नहीं होगा, लेकिन एक आम फ़्लू की तरह हमारे बीच बार-बार आता रहेगा।
मैं सोचता हूँ कि वैज्ञानिकों को अब किसी एक वायरस से प्रतिरोधक क्षमता पाने के लिए कोई वैक्सीन बनाने से ज्यादा, एक ऐसी वैक्सीन बनाने के लिए विशेष प्रयास करना चाहिए जो किसी भी वायरस से प्रतिरोधक क्षमता प्रदान कर सके। ऐसा मैंने एक समाचार पढ़ने के बाद सोचा। दुनिया को कोविड-19 का अभिशाप देने वाले चीन में बीते कुछ हफ़्ते पहले चमगादड़ों में सात नए वायरस पाए गए हैं। जिनमें से दो Corona से कई गुना ज़्यादा ख़तरनाक हैं। और चीनी चमगादड़ों को खाना बंद नहीं करेंगे तो ऐसे में आज नहीं तो कल ये वायरस भी इन्सानों में पहुँच सकते हैं।
इधर भारत में पिछले पंद्रह दिनों में Covid ने भयानक रफ़्तार पकड़ ली है।
सरकार द्वारा बार-बार चेतावनी के बाद भी लोगों की लापरवाही ने समस्या को विकराल बना दिया है। मगर फिर भी मैं देख रहा हूँ कि लोगों में पहले जैसा भय नहीं है।
एक बात और कि भारत अनगिनत त्योहारों का देश है, लोग स्वभावतः उत्सव धर्मी हैं। अभी होली में यहाँ जिस ढंग से उत्सव मनाया गया, रंग खेला गया उसे देख कर लगा ही नहीं कि दुनिया महामारी के दौर से गुज़र रही है।
हम शायद उस दौर में पहुँच गए हैं जब दुनिया हर डेढ़ दो दशक में किसी न किसी महामारी का सामना करने को विवश होगी। पहले की तरह सौ डेढ़ सौ वर्ष नहीं।
निःसंदेह यह स्थिति इंसानों द्वारा प्रकृति को जीतने के प्रयास का परिणाम है।
लेखकों द्वारा इस बिंदु पर और ज़ोरदार ढंग से बात कहने का यह सबसे उपयुक्त समय है।
भाई साहब मन का भी क्या कहूँ, इस कठिन समय में भी उपन्यास के शीघ्र प्रकाशित होने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। दूसरी किताब भी बिल्कुल तैयार है, आप जब कहिएगा भेज दूँगा।
अन्य किताबों पर भी कार्य कर रहा हूँ। विशेष रूप से कथा संचयन पर।
शेष कुशल है।
आप सभी लोग अपना विशेष ध्यान रखिएगा। ईश्वर से प्रार्थना है कि सभी स्वस्थ और प्रसन्न रहें।
— धन्यवाद
प्रदीप श्रीवास्तव
लखनऊ, भारत
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