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स्याह शर्त

दोनों के मन में ग़ुस्सा, मायूसी भरी हुई थी। उन्होंने यह सोचा ही नहीं था कि शादी के समय ही घर-बाहर, देश-दुनिया में ऐसी स्थितियाँ बन जाएँगी कि, वह अपनी सपनों की यात्रा पर नहीं जा पाएँगे। हनीमून पर जाने की फ़्लाइट कैंसिल करनी पड़ेगी। क्योंकि सारी दुनिया में वुहान, चीन से निकला कोरोना वायरस कोहराम मचा देगा। 

देखते-देखते इस वायरस से हाहाकार मच गया है, लाखों लोग मर गए हैं, लाखों मौत के शिकंजे में फँसे हुए हैं। इंसान के हाथ में ऐसी कोई चीज़ नहीं है, कि पूरी मानवता के दुश्मन इस अदृश्य दुश्मन से लड़ सके। पूरी पृथ्वी के टुकड़े-टुकड़े कर देने की क्षमता रखने वाले देश तो और भी ज़्यादा हतप्रभ और निःसहाय हैं। 

लाखों की संख्या में मरते अपने लोगों को विवश होकर देख रहे हैं। हाथ-पैर मार रहे हैं। सोच रहे हैं, क्या-क्या, कैसे-कैसे जतन करके अकूत ताक़त, हथियार इकट्ठा किए। मिनटों में पूरी दुनिया समाप्त कर देने की क्षमता रखने वाले परमाणु हथियार बनाए। 

सब निरर्थक साबित हो रहे हैं, वह भी एक ऐसे जीव के सामने जो इतना छोटा है कि उच्च क्षमता के माइक्रोस्कोप के बिना देखा ही नहीं जा सकता। पूरी दुनिया से इस वायरस को इकट्ठा कर लिया जाए तो चाय के एक चम्मच में ही समा जाए। मगर शक्तिशाली इतना है कि, जिस तरह लोग मर रहे हैं, उससे तो लगता है कि, इस पृथ्वी पर अब इंसान नहीं चीन का फैलाया हुआ यह वायरस ही रहेगा। उसी का राज होगा। 

मगर हार न मानने का गुण भी तो इंसान के गुणसूत्र में है। अस्तित्व में आने के बाद से उसने किसी भी के सामने हार कहाँ मानी, ज़िद किए ही रहता है। ब्रह्माण्ड में उपस्थित हर जीव, चीज़ पर आधिपत्य जमाने का सामान्यतः रास्ता निकाल ही लेता है। अपना अस्तित्व बचा कर फिर से आगे बढ़ जाता है। सीना तान कर एक विजेता की तरह। 

भूल जाता है कि पीछे कुछ हुआ भी था। उसे घृणा है ऐसी किसी भी आपदा से कुछ सीखने समझने की बात से ही। वह एक विजेता है, उसका यह घमंड उसे प्रकृति के दोहन के नए-नए तरीक़े खोजने की ऊर्जा और प्रेरणा देता रहता है। 

प्रकृति निर्माता या भगवान के सामने पहुँचने के रास्ते खोजने में लगा हुआ है। ऐसे यान बनाने के प्रयास में लगा हुआ है, जिससे दूसरे ग्रहों पर पहुँच कर वहाँ आधिपत्य जमा सके। इसके लिए अपनी तैयारी में रोज़ एक नया आयाम जोड़ता है। 

ऐसे कामों का परिणाम यह है कि हनीमून फ़्लाइट भी कैंसिल करनी पड़ जाती है। फ़्लाइट कैंसिल होने से ग़ुस्सा यह दोनों ऐसे किसी प्रयास, विचार के बारे में सोचना भी ग़लत मानते हैं। क्योंकि ये, प्रकृति हमारी एक पारिवारिक सदस्य है, इस विचार पर चलते हैं। 

इसीलिए इनका ग़ुस्सा सातवें आसमान पर है कि, कुकृत्य किसी के, और भुगत वो रहे हैं। हनीमून ट्रिप पर जाने का उनका सबसे ख़ूबसूरत सपना, हमेशा के लिए चकनाचूर हो गया है। 

लेकिन दोनों की इस प्रकृतिवादी सोच को बाहर तो बाहर, उनके घर के लोग ही कोई महत्त्व देना तो दूर की बात, उलटे इन पर हँसते हैं। कहते हैं कि, “इंसान अगर तुम्हारी तरह सोचता तो ब्रह्मांड के बारे में आज-तक कुछ न समझ पाता। प्रकृति अवस्था में ही कंद-मूल, फल खाता, जंगलों में भटक रहा होता। डायनासोर आदि तमाम जीवों की तरह किसी भी प्राकृतिक आपदा में अपना अस्तित्व खो चुका होता। 

“अरे प्रकृति को अपना काम करते रहने दो, हमें अपना काम करते रहना चाहिए। जब कई शक्तियाँ कुछ ना कुछ करेंगी तो टकराव तो होगा ही होगा। इंसान के प्रयास ही तो हैं कि, उसने पूरी पृथ्वी पर क़ब्ज़ा कर लिया है। वह हर जगह उपस्थित है। 

“अपनी संख्या उसने अरबों में कर ली है। इस टकराव में अगर दो-चार क्या आठ-दस करोड़ भी मर जाएँ तो भी इंसानों के अस्तित्व पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला। 

“उन्नीस सौ अठारह में स्पेनिश फ़्लू से दुनिया में दो साल के अंदर पाँच करोड़ से ज़्यादा लोग मर गए, कोई फ़र्क़ पड़ा क्या? १६५४-५६ के मध्य प्लेग ने मास्को के आधे से अधिक लोगों को समाप्त कर उसे वीरान कर दिया था, लेकिन वह दुगुनी शक्ति के साथ फिर उठ खड़ा हुआ। यही कहानी १७७१ में भी हुई लेकिन इस बार इंसान ने प्लेग को हमेशा के लिए हरा दिया। हालाँकि हारने से पहले उसने मास्को के एक लाख से ज़्यादा लोगों के प्राण हर लिए थे। 

“तुम्हें अपनी सोच आक्रामक अन्वेषणवादी रखनी चाहिए न कि यथास्थितिवादी या वेद-कालीन लोगों की तरह शांत, प्रकृति के साथ समन्वयवादी।”

अपना उपहास उड़ाती ऐसी बातों का दोनों प्रतिउत्तर ज़रूर देते हैं। कहते हैं, “किस आक्रामक अन्वेषणवादी सोच का गुणगान कर रहे हैं, उस पर इतना घमंड कर रहे हैं। अरे अभी न तो सारी गिरी-कंदराओं की ऊँचाइयों को नाप सके हैं, न ही समुद्र की उथली गहराइयों से नीचे उसकी तलहटी तक पहुँच सके। फ़्लू, कैंसर, एड्स, टी.बी., टोमेटो फ़ीवर आदि जैसी अनगिनत ऐसी बीमारियाँ हैं, जिनके सामने अंततः पस्त नज़र आते हैं। 

“आप लोगों को इतनी सी बात समझ में क्यों नहीं आती कि, यदि आदिकालीन मनुष्य आप की सोच के होते तो क्या दुनिया के चारों वेदों जैसे महानतम आदि ग्रंथों को सृजित कर पाते। उस लोकायत काल में उनके सृजन के बीज कैसे रोपे जाते, जिसमें मनुष्य ने अपने मन में उठने वाले प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने प्रारम्भ किए थे। 

“अनगिनत प्रश्नों के उत्तर, संशयों का समाधान चारों वेदों में कैसे हज़ारों-हज़ार बरस पहले करते। यह बताते कि हमारी आकाशगंगा के सारे ग्रह सूर्य के चारों तरफ़ घूमते हैं, पृथ्वी अपने अक्ष पर झुकी हुई है। संगीत, अर्थ, समाज, राजनीति, दर्शन आदि बातें कहाँ से आतीं? 

“तुम्हारी जैसी असंतुलित, अनियंत्रित सोच होती तो आज तुम्हारा अस्तित्व ही न होता। क्योंकि अब-तक पृथ्वी ही मिट चुकी होती। अपनी सोच का ही परिणाम देखो न, कि मात्र सौ-डेढ़ सौ साल में ही पृथ्वी का वो हाल कर दिया है कि, स्टीफन हॉकिंग जैसे वैज्ञानिक ही बरसों पहले कह गए हैं कि, पृथ्वी मनुष्यों के रहने योग्य सौ साल से ज़्यादा नहीं रह गई है। 

“अब बात पाँच-दस करोड़ के मरने की नहीं, पृथ्वी के अस्तित्व की, बाक़ी नब्बे साल में उसे बचाने की सोचिए। स्वयं तो अभी जी रहे हैं, ज़रा हृदय बड़ा करके आगे की पीढ़ियों के बारे में भी सोचिए।” 

उनकी इन बातों को भी हँसी में उड़ाते हुए सब कहते हैं, “बहुत बड़ा है हृदय हमारा, देख नहीं रहे हो कितनी धूम-धाम से तुम्हारी शादी करके उसका उत्सव मना रहे हैं।”

शादी हुए दो-तीन दिन ही हुए थे, तब भी परिवार के सारे सदस्य हँसी-मज़ाक में भी उन दोनों की खिंचाई करने से बाज़ नहीं आ रहे थे। अपने को, अपने विषयों का विशेषज्ञ मानने वाले उनके प्रोफ़ेसर माँ-बाप भी यह नहीं सोच रहे थे कि, शादी के बाद लड़की को घर आए अभी सप्ताह भर भी नहीं हुआ है। 

हालाँकि शादी से पहले दोनों दो साल से मित्र थे। वह घर भी कुछ-कुछ घंटों के लिए कई बार आ चुकी थी। उनके प्यार भरे संबंधों का भी कई बार मज़ाक उड़ाया गया। लड़के को निशाने पर लेकर कहा गया कि, “चलो कम से कम तुमने अपने मन की लड़की तो ढूँढ़ ली। यह पहल तो की।”

यह सुनकर वह दोनों एक-दूसरे को देखने लगते। सोचते कि इन सभी को अगर यह पता चल जाए कि लड़के ने नहीं, लड़की ने लड़के को ढूँढ़ ही नहीं लिया, बल्कि ऐसे ज़बरदस्त ढंग से उस पर आख़िर तक आँखें गड़ाए हुए कैच किया कि, छूटने की कोशिश करने का भी अवसर लड़के को नहीं दिया। 

एकदम लीजेंड्री इंडियन क्रिकेट फ़ील्डर एकनाथ सोलकर की तरह। वह अपने काम करियर में बिज़ी रहना चाहता था कि, अभी कम से कम दो-तीन साल और शादी के चक्कर में नहीं पड़ना। लेकिन कैसे न पड़ते? लड़की अपना शिकंजा कसती जा रही थी कि, “करियर के लिए के लिए बहुत समय दे चुके हो। यह तो जीवन भर लगा रहेगा। जीवन भर जितना मन हो, उतना समय देते रहना। लेकिन समय के साथ ही जीवन का आनंद न लिया, जो सपने देखे, उसे पूरा नहीं किया तो फिर यह कभी पूरे होने वाले नहीं। 

“क्योंकि समय और शरीर यह दोनों रुकने वाले नहीं। अपने गति से बढ़ते, आगे निकलते चले जाएँगे। युवावस्था का काम दुनिया में किसी ने बुढ़ापे में किया है क्या? जो तुम करोगे।”

और युवावस्था के कई काम इस ज़बरदस्त कैचर ने शादी से पहले ही शुरू कर दिए थे। साफ़-साफ़ कहा कि, “इन कामों के लिए यह आवश्यक नहीं कि पहले शादी का सर्टिफ़िकेट लिया ही जाए। सर्टिफ़िकेट मिलने के बाद ही किया जाए।”

लड़के ने मज़ाक में कुछ कहा, तो उसने हँसते हुए स्पष्ट कहा, “डार्लिंग तुम ही डरते हो, नहीं तो मैं गोद में बच्चे को लेकर मंडप में फेरे लेती।”

उसका लड़के पर इतना प्रभाव था कि, यदि वह चाहती तो यह भी कर गुज़रती। लड़का उसकी इस बात से पूरी तरह से सहमत था। क्योंकि वह उसके सामने अपनी स्थिति बहुत अच्छी तरह समझता था। 

ख़ैर जो भी हो, शादी के बाद वह घर से विदा हो रहे थे। उसकी छुट्टियाँ ख़त्म हो चुकी थीं। ऑफ़िस पहुँचने के लिए उसे गुरुग्राम, हरियाणा पहुँचना था। विदाई के समय माँ-बाप, भाई-बहन, रिश्तेदारों, सभी ने ख़ूब प्रोत्साहित किया कि इनकी मायूसी दूर हो। 

माँ ने समझाया कि, “बेटा ऐसे उदास न हो। यह महामारी जब ख़त्म हो जाए तो हनीमून पर अपनी मन-पसंद जगह, दो हफ़्ते नहीं, दो महीने के लिए चले जाना। तुम्हारी वह यात्रा मैं अरेंज करूँगी।”

दोनों ही जब दिल्ली की फ़्लाइट में बैठे, प्लेन टेक-ऑफ़ कर रहा था, पीछे की तरफ़ काफ़ी झुक चुका था, तब लड़की खिड़की से बाहर नीचे दूर होती जा रही ज़मीन को देखती हुई बोली, “इससे बड़ा दुर्भाग्य शायद ही किसी का रहा हो। टेक-ऑफ़ करना था स्पेन में हनीमून एंजॉय करने के लिए, वहाँ के नेकेड बीच का एक्सपीरियंस लेने के लिए, लेकिन टेक-ऑफ़ हो रहा है घर के लिए। एक खाँटी गृहस्थन बनने के लिए। हे भगवान आपने यह किस जन्म की दुश्मनी निकाली है।”

वह बहुत दुखी और भर्राई आवाज़ में बोली, तो उसके बग़ल में बैठे हस्बैंड ने उसकी हथेली को अपने दोनों हाथों में लेते हुए कहा, “परेशान नहीं हो, सिचुएशन नॉर्मल होते ही चलेंगे। अम्मा जो दो हफ़्ते की जगह, दो महीने की बात कर रही थीं न, तो सच में चलेंगे। नेकेड बीच क्या, 'बोगाटेल' से लेकर 'अलमुनेकर' तक। दो महीने तक सारे बीचेस का एक्सपीरियंस लेंगे।”
लड़की ने बिसूरते हुए कहा, “छोड़िए भी, सही समय, मूड के साथ सब-कुछ अच्छा लगता है। यूँ तो जीवन भर जहाँ चाहें वहाँ जा सकते हैं। लेकिन हनीमून का सारा मज़ा शादी के तुरंत बाद ही मनचाही जगह पर जाने में है। यह नहीं कि बरसों बिता दिया घर गृहस्थी, बच्चे सँभालने में। उसके बाद थके-हारे से विदाउट किसी एक्साइटमेंट के चल दिए।”

दोनों की बहस जब प्लेन अपनी ऊँचाई पा लेने के बाद सीधा हो पूरी गति से चलने लगा, तब भी चलती रही। पूरी तरह समाप्त तब हुई जब दिल्ली एयर-पोर्ट पर लैंड करते समय जहाज़ फिर पीछे की ओर झुक गया। 

जहाज़ से उतरते समय उनका चेहरा पूरी तरह शांत, बुझा हुआ, लटका-लटका सा हो रहा था। रास्ते में दोनों में प्यार-भरी नोक-झोंक भी हो गई थी। वह इस बात पर आख़िर तक अड़ी रही कि यदि वह उसकी बात मान कर शादी साल भर पहले ही कर लेता, तो जीवन के इस सबसे शानदार रोमांचक अनुभव का मज़ा लेने से वंचित नहीं होना पड़ता। अब कुछ भी कर लो, पूरी दुनिया घूम लो, लेकिन वह हनीमून कहाँ होगा? 

पत्नी की इस बात का पति के पास कोई जवाब नहीं था। एयर-पोर्ट से टैक्सी लेकर घर पहुँचने तक दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। अपनी-अपनी जगह बैठे दोनों खिड़की से बाहर देखते रहे। 

जब अपने दस मंज़िलें अपार्टमेंट के सामने रुके तो उनके कई सूटकेस, बैग और बहुत से सामान को लिफ़्ट तक पहुँचाने में सिक्योरिटी गार्ड और टैक्सी ड्राइवर ने भी हेल्प की। ड्राइवर को उसने अलग से टिप दी। गॉर्ड को भी चाय-नाश्ते के पैसे दिए। 

टॉप फ़्लोर, दसवीं मंज़िल पर अपने टू बी.एच.के. फ़्लैट तक लिफ़्ट से सारा सामान अंदर पहुँचाने में उन्हें काफ़ी मेहनत करनी पड़ी। लॉबी में ही सारा सामान रख कर, एसी ऑन कर दोनों बैठ गए। 

थोड़ी देर बाद पत्नी ने ब्लैक कॉफ़ी बनाई। उसके ख़राब मूड को देखते हुए पति स्वयं बनाने उठा था, लेकिन उसने मना कर दिया। कहा, “कह नहीं सकते थे। मैं जाने ही वाली थी।” यह कहते हुए उसने उसके गाल पर किस करते हुए, एक हाथ से उसके बालों को उलझा सा दिया। पति ने राहत महसूस की, कि अब इसका मूड सही हो रहा है। 

घर से लाई खाने की कुछ चीज़ें भी निकाल कर दोनों ने खाईं। काफ़ी देर तक आराम किया। इस बीच घर से सारे लोगों के फ़ोन आ चुके थे। सबने उन्हें हँसाने, उनकी मायूसी दूर करने की पूरी कोशिश की। 

आराम करने के बाद दोनों ने एक-एक सामान सही जगह पर रखा। पति ने कहा भी कि, “एक-दो दिन रुक जाओ, धीरे-धीरे रखा जाएगा।” लेकिन पत्नी नहीं मानी। 

उसके लिए यह फ़्लैट कोई नई जगह नहीं थी। पहले ही बहुत बार कई-कई दिन यहाँ बिता चुकी थी। शादी से कुछ दिन पहले ही आकर अपने हिसाब से सब कुछ अरेंज करवाया था। 

काम करते हुए वह घर लोगों की बातों पर भी कुछ न कुछ बोलती जा रही थी। उसने पति से कहा, “यार मम्मी-पापा से लेकर घर में हर कोई हमें बिल्कुल बच्चा समझ कर एक सुर में कोरोना वायरस से हर हाल में बचने की सलाह, सख़्त हिदायत देना नहीं भूल रहा। मैं कोविड-१९ से ज़्यादा प्रेशर तो इससे बचने की हिदायतों से महसूस कर रही हूँ। टीवी ऑन करो, किसी को कॉल करो, कुछ भी कहो, हर जगह कोरोना वायरस, कोरोना वायरस। पूरी लाइफ़ ही इसी के हवाले हो गई है। दम घुटने लगा है। कब इससे फ़ुरसत मिलेगी भगवान।”

यह कहती हुई वह पति की गोद में सिर रखकर बग़ल में बैठ गई। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। शादी के बाद पहली बार घर आई पत्नी की आँखों में, कुछ घंटे बाद ही आँसू देख कर पति भी भावुक गया। 

उसने उसे बहुत कुछ समझाते हुए कहा कि, “हमें हर स्थिति में ख़ुशी ढूँढ़ने की आदत डालनी चाहिए। जो हो गया, उससे परेशान होते रहना समय की बर्बादी है। स्वयं को अपने हाथों पीटने जैसा है। 

“इस कंडीशन को इस तरह सोचो कि घर से हम यहाँ हनीमून पर आए हैं। यह पूरा फ़्लैट एक शानदार मल्टी-स्टोरी फ़ाइव स्टार होटल का कोई रूम नहीं, पूरा एक सुईट है। जिसमें हम जब-तक चाहें, तब-तक, जैसे चाहें वैसे एन्जॉय कर सकते हैं। बिल बढ़ते रहने का भी कोई टेंशन नहीं है।”

बड़ी देर से सुन रही पत्नी टेंशन की बात सुनते ही बोली, “क्या एन्जॉय करेंगे? सारे टेंशनों की टेंशन कोरोना एवरी टाइम दिमाग़ में है न। इसको निकालने की कोई दवाई है क्या?” 

यह सुनते ही हस्बैंड बोला, “हाँ, दवाई है।”

तो पत्नी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा, “अच्छा! तो बताओ कौन सी दवा है? यह मत कहना कि नींद की गोलियाँ खा कर आराम से रात-भर सोएँगे।”

पति ने कहा, “मैं यह बिल्कुल नहीं कहूँगा। यह दवा है भी नहीं। यह तो नशा है।”

“अच्छा! तो फिर दवा क्या है?” 

पत्नी ने बड़ी उत्सुकता के साथ पूछा। वह अब-तक उठ कर बैठ चुकी थी। पति ने उसे बाँहों में समेटे हुए कहा, “हमारा प्यार। अभी तो शादी के बाद वाला प्यार देखा जाए तो हम शुरू ही नहीं कर पाए हैं। 

“शादी पर अपनी पहली रात पूरी फ़्रीडम के साथ एन्जॉय ही नहीं कर पाए हैं। और अब, अब तो यहाँ पर फ़्रीडम ही फ़्रीडम है। इतना कि और कुछ दिखता ही नहीं। तो अब हम सच में गोल्डन नाइट एन्जॉय करते हैं।” 

गोल्डन नाइट एन्जॉय करने के बाद पति ने कहा, “यार छुट्टियाँ तो सब ख़त्म हो गईं हैं। कल से फिर वही रूटीन लाइफ़, घर से ऑफ़िस, ऑफ़िस से घर।” 

यह सुनते ही पत्नी चिंहुक कर उठ बैठी। आश्चर्य से पूछा, “क्या! कल से ऑफ़िस।” 

“हाँ, छुट्टियाँ ख़त्म हो गईं न।” 

“तो फिर दो हफ़्ते के लिए स्पेन चलने की बात कैसे कह रहे थे?” 

“वो ऐसे कह रहा था कि, मैंने सोचा था, जब चल देंगे तो, मेल कर देंगे कि अचानक प्रोग्राम बनने के बाद हम दो हफ़्ते के लिए स्पेन निकल रहे हैं।” 

“ऐसे लीव ओके नहीं होती तो?” 

“तो क्या, मैंने सोच रखा था कि, नहीं मानेंगे तो न माने। बहुत होगा एल। डब्लू। पी। कर देंगे। इसके लिए हनीमून तो कैंसिल नहीं करूँगा। लेकिन क्या पता था कि बीच में कोरोना इस तरह कूद पड़ेगा कि, ट्रिप कैंसिल करने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं छोड़ेगा।” 

यह सुनते ही पत्नी ने कहा, “ठीक है, जब ऐसा सोच रखा था, तो अभी कल से ऑफ़िस नहीं जाना है। मेल कर दो कि अभी दो दिन और छुट्टी पर रहोगे।” 

“अरे यार ऑफ़िस है। पहले ही एक हफ़्ते की छुट्टी ले चुका हूँ। वह भी तब मिली थी, जब यह कहा कि मेरे यहाँ शादी की कुछ रस्में एक हफ़्ते में पूरी होती हैं। उनको पूरा किए बिना शादी अधूरी, और अपशगुन माना जाता है। नहीं तो दो दिन से ज़्यादा एलाऊ ही नहीं कर रहे थे।” 

छुट्टी बढ़ानी है या नहीं इस बात पर दोनों की बहस लंबी खिंच गई। अंततः पत्नी ने स्पष्ट आदेश दिया कि अगले एक हफ़्ते तक ऑफ़िस नहीं जाना है। जबकि पहले केवल दो दिन के लिए कह रही थी। 

उसने पुरज़ोर ज़िद करते हुए कहा, “जाती है नौकरी, तो जाने दो। तुम भी मेरी तरह ऑन-लाइन शेयर-ट्रेडिंग की फ़ील्ड में आ जाओ। जितनी सैलरी मिलती है, सिस्टमेटिक ढंग से इंट्रा-डे ट्रेडिंग के ज़रिए उससे ज़्यादा हर महीने कमा लोगे। ज़िन्दगी जीने के लिए मिली है न कि सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए।” 

बहस ख़त्म तब हुई जब पति ने एक और हफ़्ते की छुट्टी के लिए मेल कर दिया। दोनों के बीच तय यह भी हो गया कि छुट्टी सैंक्शन हो या न हो ऑफ़िस हफ़्ते भर से पहले जाना ही नहीं है। कोविड-१९ बाहर निकलने से डरा रहा है। तो कम से कम घर पर सुरक्षित लाइफ़ एन्जॉय करें। वैसे भी जीवन भर तो काम ही काम करना है। 

अगले दिन न्यूज़-पेपर में कोरोना वायरस के और तेज़ बढ़ने का समाचार पढ़कर वह काँप उठी। उसने पति से कहा, “सुनो कल से न्यूज़ पेपर लेना बंद कर दो। यह वायरस पेपर पर भी आठ-दस घंटे जीवित रहता है। मान लो कोई न्यूज़ पेपर कर्मचारी संक्रमित हुआ तो?” 

इस पर पति ने समझाते हुए कहा, “यार अब इतना भी नहीं डरो। पेपर बिना कैसे काम चलेगा।” 

पत्नी बोली, “कैसे नहीं चलेगा, पेपर ही तो पढ़ना है न? जब ऑन-लाइन ऑफ़िस का, बाक़ी बहुत सारे काम कर सकते हो, तो अब पेपर भी ऑन-लाइन ही पढ़ लिया करो।” 

पत्नी की आदेशात्मक शैली में यह बात सुनकर, पति उसे कुछ देर तक देखने के बाद बोला, “यार इस तरह तुम क्या-क्या बंद करोगी? रोज़ बाहर से दूध, खाने-पीने की चीज़ें आ रही हैं, वह सब भी तो काग़ज़ के पैकटों, पॉलिथीन में आते हैं। यह सब भी कोई न कोई डिलीवर कर रहा है। मास्क, सेनिटाइज़र सहित जो भी सावधानियाँ बताई जा रही हैं, उन सभी को फ़ॉलो कर रहे हैं। सॉर्स, स्वाइन फ़्लू की तरह यह भी एक फ़्लू है, जल्दी ही ख़त्म हो जाएगा।” 

यह सुनकर पत्नी ने उसे ऐसे देखा मानो उसने दुनिया की सबसे बड़ी मूर्खतापूर्ण बात कह दी हो। एक क्षण चुप हुए बिना बोली, “हाँ, यह भी एक फ़्लू है। लेकिन पहले वालों से हज़ारों गुना ज़्यादा ख़तरनाक है। यह ख़त्म होने से पहले ऐसा न हो कि, करोड़ों लोगों को ख़त्म कर दे। अब-तक लाखों लोगों को तो मार ही चुका है। तुम साइंस वालों की यही सबसे बड़ी समस्या है कि, इतिहास पर नज़र डालते नहीं कि कहाँ कब-कब क्या हो चुका है। ऐसा कुछ जानते ही नहीं। 

“तुमने कितनी आसानी से कह दिया कि, कोविड-१९ कोई सीरियस मैटर है ही नहीं। मैं हंड्रेड परसेंट कॉन्फ़िडेंट हूँ कि, यह इतिहास की अब-तक की सबसे भयानक, सबसे ख़तरनाक बीमारी है। सौ साल पहले स्पेनिश फ़्लू से दुनिया में पाँच करोड़ लोग मर चुके हैं। इनमें से अकेले दो करोड़ लोग तो भारत में मरे थे। यह बातें ध्यान में रहतीं तो ऐसा कुछ न कहते, मेरी बात का सपोर्ट करते।” 

उसकी इन बातों से पति को लगा कि यह कुछ ज़्यादा ही डर रही है, जो इसके लिए ठीक नहीं है। उसने बड़े प्यार से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “देखो अवेयर रहना अच्छी बात है। लेकिन हायपर अवेर्नेस भी अपने आप में एक बीमारी है। कम से कम मैं तो यही मानता हूँ। बीमारी कोई भी हो, उन सब से बचना चाहिए।” 

दोनों के दिन-भर के एन्जॉयमेंट का आधा हिस्सा, इसी विषय पर बहस और न्यूज़ देखने में बीता। देर शाम को बालकनी में बैठे बाहर का नज़ारा ले रहे थे। पत्नी ने पति की बाहर कहीं घूमने चलने की बात सिरे से मना कर दी। 

पति ऊब रहा था। पत्नी का डर दूर करने का उसका हर प्रयास गवर्नमेंट की कोरोना संक्रमण रोकने की तरह बेकार हो रहा था। वह कुर्सी पर बग़ल में ही बैठा था, दोनों पैर बाउंड्री पर टिकाए हुए। छोटी सी टेबल पर प्लेट में भुने हुए काजू और कॉफ़ी रखी थी। दोनों एक-एक पीस मुँह में डालते, कॉफ़ी पीते जा रहे थे। 

   सामने दूसरे अपार्टमेंट, नीचे सड़क पर नज़र डालते जा रहे थे। तभी पत्नी ने कहा, “यार हाई राइज बिल्डिंग के टॉप फ़्लोर पर फ़्लैट कभी नहीं लेना चाहिए। लगता है जैसे आसमान में अटके हुए हैं। नीचे छोटी-छोटी चीज़ें, लोग रेंगते हुए से लग रहे हैं। लगता है जैसे नीचे कोई बौनों की दुनिया है। 

नीचे देखते ही मुझे जॉनेथन स्विफ्ट का उपन्यास 'गुलिवर्स ट्रैवलर्स' याद आ जाता है। जहाज़ डूबने के बाद गुलिवर को जब होश आता है तो स्वयं को ज़मीन पर बहुत से रस्सों से जकड़ा, लेटा हुआ पाता है। छह-छह इंच के बौने उसे घेरे हुए हैं। 

लेटे हुए गुलिवर पर सीढ़ियाँ लगाकर चढ़ते हैं। उसे बड़े-बड़े बैरल से पानी पिलाते हैं, जो उसके लिए इतनी नन्ही गिलास की तरह होते हैं कि उसे चम्मच भर पानी मिलता है।”

यह सुनकर पति ने कहा, “यह तो बहुत ही ज़्यादा इंट्रेस्टिंग नॉवेल लग रहा है।”

“पढ़ा है तुमने।”

“नहीं।”
 “साइंस के अलावा न ज़्यादा, तो थोड़ा बहुत ही सही लिटरेचर पढ़ना चाहिए। इससे लाइफ़ में आदमी ज़्यादा प्रैक्टिकल रहता है। अच्छा एक चीज़ बताओ यह फ़्लैट लेते समय यह सोचा था कि नहीं कि, इतनी ऊँचाई पर रहना ठीक रहेगा या नहीं।”

“देखो उस समय मेरे मन में बस एक ही बात थी कि, रेंटेड हाऊस में नहीं रहूँगा। जैसे भी हो मुझे हाऊस ओनर बनना है। लेकिन मेरा बजट मेरी सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी। इसके लिए भी पाँच साल की सारी सेविंग लगानी पड़ी। पापा से भी हेल्प लेनी पड़ी। और बैंक से लोन भी। जिसकी अगले पंद्रह साल तक इंस्टॉलमेंट देनी है।”

यह सुनते ही पत्नी ने कहा, “इतने समय तक इंस्टॉलमेंट नहीं देनी होगी।”

“क्यों, क्यों नहीं देनी होगी। इसके पहले पेमेंट कर ही नहीं पाऊँगा। सब इंस्टॉलमेंट में दे देंगे तो बाक़ी काम कैसे होंगे।”

“देखो जब तुम अकेले थे, यह तब की सिचुएशन थी। हम दोनों के बाद इनकम डबल हो गई है। अगले कुछ साल तक मिनिमम ख़र्च पर काम चलाएँगे। इंस्टॉलमेंट को डबल नहीं ट्रिपल करके तीन-चार साल में लोन से मुक्ति पा लेंगे। मुझे लोन ही नहीं, यह शब्द ही गले में पड़ा पत्थर सा लगता है। इस पत्थर को निकालने के बाद ही मैं फुल्ली एन्जॉय कर पाऊँगी। मेरी बात से तुम एग्री हो।”

  पति ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “सेंट परसेंट।” 

यह सुनते ही पत्नी ने कहा, “थैंक यूँ डार्लिंग। इसे कहते हैं हस्बैंड वाइफ़ की रियल म्युचुअल अंडरस्टैंडिंग।” 

दोनों की बातें भविष्य के सपने बुनने की ओर बढ़ती जा रही थीं। इसी बीच नगर निगम की गाड़ी नीचे पूरी सोसाइटी को सैनिटाइज़ करने लगी। उनका ध्यान नीचे चला गया। पत्नी नीचे देखती हुई बोली, “हमें एक हाई-क्लास टेलिस्कोप रखना चाहिए। जिससे गुलिवर्स वर्ल्ड को एक्चुअल वर्ल्ड सा देख सकें।” 

पति ने कहा, “ठीक है, ऑनलाइन मँगा लेते हैं।” 

उसकी बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि पत्नी ने बीच में ही जल्दी से कहा, “नहीं-नहीं, टेलिस्कोप बिल्कुल नहीं।” 

“क्यों नहीं?” 

“क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुम नीचे, सामने किसी अपार्टमेंट की विंडो में, कहीं भी, किसी भी जगह, फ़ोकस किए न जाने क्या-क्या देखते रहो? मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि जो नहीं देखना है, तुम वहीं पर फ़ोकस किए रहोगे, ” यह कहकर वह हँस पड़ी। 

पति ने भी हँसते हुए कहा, “यह सब तो तुम भी कर सकती हो।” 

“हाँ, यह भी हो सकता है।” 

पति ने एकबार फिर उसे ध्यान से देखते हुए कहा, “हर चीज़ को लेकर तुम कुछ ज़्यादा ही तो अवेयर नहीं हो गई हो?” 

“जी नहीं। वैसे ज़्यादा अवेर्नेस को भी ग़लत तो नहीं कह सकते। कई इंग्लिश मूवी में ऐसे सीन देखे हैं मैंने। 'अमेरिकन पाई' मूवी में भी ऐसा ही सीन था।” 

रात को खाने के समय दोनों न्यूज़ देख रहे थे। कोविड-१९ की दिन भर की न्यूज़, स्थिति के तेज़ी से भयावाह होते जाने का संकेत दे रहे थे। रिपोर्ट ने उनके खाने का मज़ा ही ख़राब कर दिया था। 

गवर्नमेंट के स्टेटमेंट्स, उसके कामों को देख कर एक्सपर्ट्स, जर्नलिस्ट शीघ्र ही अन्य कई देशों की तरह देश में लॉक-डाउन की प्रबल सम्भावना जता रहे थे। यह सुनकर दोनों के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ उभर आईं। जो पत्नी के चेहरे पर कुछ ज़्यादा ही गाढ़ी थीं। कोविड-१९ से कैसे बचा जाए, इस बिंदु पर दोनों के बीच बहुत सी बातें बाद में भी होती रहीं। 

सुबह दोनों ने एक नहीं ऑन-लाइन कई न्यूज़ पेपर पढ़ डाले। सबमें स्थिति के बिगड़ते जाने की बात से पत्नी इतना घबरा गई कि काँपने लगी। 

तब पति ने उसे सँभाला। कॉफ़ी बनाकर पिलाई। हिम्मत बँधाई। इस हिम्मत के साथ पत्नी ने कोविड-१९ से बचने के लिए शाम होते-होते एक ऐसी विस्तृत योजना बनाई कि पति बड़े पसोपेश में पड़ गया। पत्नी ने उस पर इतना दबाव डाला कि उसे उसकी योजनानुसार काम करने के लिए तैयार होना पड़ा। 

नई-नवेली पत्नी की बातें उसे बहुत डिफ़ेंसिव से ज़्यादा परेशान करने वाली लगीं। लेकिन वह उसे उदास नहीं देखना चाहता था। पत्नी की योजना को उस समय और ज़्यादा बल मिल गया था, जब दोपहर में सास-श्वसुर, देवर, नंदों ने बातचीत के समय कहा कि, 'लॉक-डाउन लगना निश्चित ही समझो। ' साथ ही कम से कम तीन महीने के हिसाब से खाने-पीने की चीज़ें स्टोर कर लेने की सलाह दी। 

इसके बाद पत्नी ने हिदायत के साथ कहा कि, “कल दिन भर में पूरे एक साल तक के लिए सारी चीज़ें हर हाल में इकट्ठा करनी हैं। उसके बाद पूरे एक साल तक घर से बाहर नहीं निकलेंगे।” 

“क्या?” 

“अरे, इसमें चौंकने वाली क्या बात है? वर्ल्ड में जैसी तैयारियाँ चल रही हैं, अपना देश और बाक़ी सभी जो कह रहे हैं, उससे यह तो मान सकते हैं कि, जल्दी ही दवा, वैक्सीन आ जाएगी। लेकिन यह भी निश्चित समझो कि सभी तक पहुँचने में साल भर तो लग ही जाएगा।” 

इस मुद्दे पर बहस में पति ने पत्नी की सारी बातों पर सहमति जता दी। इसके बाद दोनों ने मिलकर साल भर में कौन सा सामान कितना लगेगा उसकी लिस्ट बनाई। कुछ भी न छूटे इसलिए बड़े सिस्टम से काम शुरू किया। 

इसमें यह भी ध्यान रखा गया कि, इस दौरान कब-कब, कौन-कौन से मौसम आएँगे। उसके हिसाब से ही सारी तैयारी होगी। शुरूआत किचन से की। उसके बाद लॉबी, ड्राइंग रूम, बेडरूम, बालकनी, टॉयलेट तक, हर महीने जिस भी सामान की ज़रूरत होती है, उसकी लिस्ट बनाकर हर सामान की मात्रा बारह गुना बढ़ा दी। लिस्ट पूरी होने के बाद पति ने पूछा, “इतना सामान रखा कहाँ जाएगा। ख़राब भी तो हो सकता है।”

पत्नी ने कहा, “सारा सामान पैक लेंगे। जब दुकानों, कंपनियों में सालों पड़ा रहता है, नहीं ख़राब होता तो यहाँ भी रखा रहेगा। फ़्रेश फ्रूट की जगह, ड्राई फ्रूट यूज़ करेंगे। ताज़ी सब्ज़ियाँ नहीं लेंगे। मिल्क पाउडर यूज़ करेंगे। 

“पार्क या गार्डन की फ़्रेश हवा के लिए तुलसी, मीठी नीम, बरगद, पीपल, आम, अमरूद सभी के बोनसाई पेड़ दस-पंद्रह गमले में बालकनी और लॉबी में रखेंगे। नेचुरल ग्रास मैट बालकनी में बिछा देंगे। कंप्लीट फ़र्स्ट एड बॉक्स भी होगा।”

लिस्ट में बारीक़ से बारीक़ बातों पर पत्नी का ध्यान देखकर पति कुछ हैरान हुआ। उसने पत्नी की प्रशंसा करते हुए मज़ाकिया लहजे में कहा, “तुमने जिस गंभीरता से लिस्ट बनाई, उसे देख कर तो मैं अब निश्चिन्त हो गया हूँ कि अब मुझे एक काम को छोड़ कर बाक़ी किसी काम पर ज़्यादा ध्यान देने की कोई ज़रूरत नहीं है।” 

इसके साथ ही उसने कुछ हरकत भी की, तो पत्नी ने उसकी हरकत को रोकते हुए कहा, “रहने भी दो। उस एक काम का ध्यान भी तुमने कब ठीक से रखा। मैं ही रखती आ रही हूँ, शादी के पहले से ही . . . ”

पति को महसूस हुआ कि पत्नी ने तो एकदम से निशाने पर ले लिया है, तो उसने तुरंत ही बात को डायवर्ट करते हुए कहा, “चलो दो घंटे ज़रूर लगे, लेकिन आफ्टर ऑल लिस्ट फ़ाइनल हुई।” 

“जी नहीं, अभी नहीं हुई।”

“क्या! अभी भी कुछ बाक़ी है।”

“हाँ, अभी बहुत कुछ बाक़ी है माय डियर। मैं यही तो देख रही थी कि, तुम्हारा ध्यान इस काम पर कितना है।”

“क्या यार, कैसी बात कर रही हो। दो घंटे से पूरा ध्यान दे रहा हूँ। वैसे बाक़ी क्या रह गया है?” 

“पानी, मान लो एक्वागार्ड ख़राब हो गया तो कम से कम फ़िल्टर का पानी तो मिले। इसलिए दो प्यूरिट वाटर फ़िल्टर, साथ ही उनकी दो एक्सट्रा कॉर्ट्रिज भी। इसी तरह दो लैपटॉप, दो मोबाइल भी।” 

“ओके, अब हो गया।” 

इतना कुछ सुनकर पति उबलने लगा था। लेकिन पत्नी अब भी रुकने को तैयार नहीं थी, वह तपाक से बोली, “अभी बेड-रूम बाक़ी है।”

“बेड-रूम! अरे वह तो पहले ही हो गया।”

“हाँ बेड-रूम, बेड हो गया है, लेकिन बेड पर होने वाले कपल्स अभी बाक़ी हैं।”

यह सुनते ही पति ने आश्चर्य से पूछा, “कपल्स! उनका भी आल्टरनेटिव होगा क्या?” 

“अरे यार बिग बैलून। यह बीमारी जब-तक दुनिया से ख़त्म नहीं होगी, तब-तक हम बच्चे पैदा नहीं करेंगे। हमारे बीच पहले जो प्लान बने थे, वह सब कैंसिल। नई सिचुएशन में नई प्लानिंग होगी। और सुनो, आधे बैलून तुम्हारी पसंद के होंगे, आधे मेरी।”

यह कहते हुए वो खिलखिला कर हँस पड़ी। पति ने कहा, “सब तुम्हारी पसंद के ही ले आऊँगा। लेकिन इन सबका बिल कितना होगा, कुछ अंदाज़ा है?” 

हाँ, क्यों नहीं, अच्छी तरह जानती हूँ, कई लाख रुपए होंगे। तीन लाख से ज़्यादा तो मोबाइल, लैपटॉप के ही हो जाएँगे। लेकिन तुम पैसों की चिंता नहीं करो, मेरे पास हैं। बैंक से काफ़ी समय से कुछ निकाला भी नहीं है। कल अकाउंट से सारा पेमेंट करेंगे। और कम से कम तीन से चार लाख रुपए घर पर रखने के लिए निकाल लेंगे। तुम्हें अपना अकाउंट टच करने की आवश्यकता नहीं है। पैसों की कोई प्रॉब्लम नहीं है।” 

अगले दिन सुबह से लेकर, देर रात-तक दोनों ने सारा सामान लाकर ड्राइंग-रूम में रख दिया। क्योंकि मुख्य दरवाज़े के बाद वही सबसे पहले पड़ता था। लगे हाथ उन्होंने एक नया फ़्रिज भी ले लिया कि, पहले वाला कहीं बीच में ख़राब हो गया तो। 

इसके बाद उन्होंने पूरे सामान क्या, पूरे घर को मुँह में डबल मास्क लगा कर सेनिटाइज़र से सेनिटाइज़ नहीं, बल्कि एक तरह से नहला दिया। सेनिटाइज़र और मॉस्क भी साल भर के लिए स्टोर कर लिए थे। 

यह सब करते-करते दोनों को क़रीब रात के बारह बजे फ़ुर्सत मिली। उसके बाद खाना बनाया। 

इसके पहले फ़्लैट का मुख्य दरवाज़ा लॉक कर दिया। यह सब करके दोनों ने ऐसी राहत महसूस की जैसे कि, कोविड-१९ के ख़तरे से उनकी दुनिया मुक्त हो गई। लेकिन न्यूज़ देखते ही वह फिर से पुरानी मनःस्थिति में पहुँच गए। 

दोनों इतने भयभीत हो गए कि अपने ही फ़्लैट के ड्राइंग-रूम में एक हफ़्ते तक नहीं गए कि, बाहर से लाया गया सारा सामान वहीं रखा है। हो सकता है कोई सामान संक्रमित हो। वायरस क्योंकि कहीं भी दो-तीन दिन से ज़्यादा जीवित नहीं रहता, यह जानते हुए भी उन्होंने अतिरिक्त सावधानी बरती, चार दिन और निकाल दिए। 

इस बीच लॉक-डाउन का सभी का अनुमान सही निकला। उनकी तैयारियों के आठ दिन बाद ही लॉक-डाउन हो गया। सब-कुछ जहाँ था, जैसा था, वहीं ठप्प हो गया। ऑफ़िस, फ़ैक्ट्री, बाज़ार सब बंद हो गए। गलियों-सड़कों पर दूर-दूर तक सन्नाटा पसर गया। देश-दुनिया के बाक़ी लोगों की तरह वे भी जीवन में पहली बार ऐसे अनुभव से गुज़र रहे थे। 

शुरूआती दो-तीन दिन तो उनके बहुत ही ज़्यादा भ्रम और भय में गुज़रे। पत्नी तो दिन-भर में एक-दो बार रो पड़ती थी। पति बार-बार समझाता कि कुछ नहीं होगा। लेकिन वास्तव में भीतर ही भीतर वह भी बहुत ही ज़्यादा डरा हुआ था। 

हालाँकि वह पत्नी को समझाता कि जैसे दुनिया ने इसके पहले तमाम बीमारियों से छुटकारा पाया है, उसी तरह इससे भी मुक्ति मिल जाएगी। तभी उसकी पत्नी बोली कि, “हमने ग़लती की, हम-लोग वहीं घर पर रहते तो ज़्यादा अच्छा था।” 

पति उसको हिम्मत बँधाने के लिए बिहार में माँ-बाप, पूरे परिवार, अपनी ससुराल के सभी लोगों से कई-कई बार वीडियो कॉल पर बात करवाता। 

उसे अब अपनी नौकरी की भी चिंता सताने लगी थी, कि यदि वेस्टर्न कंट्रीज़ की तरह दो-तीन महीने लॉक-डाउन खिंच गया, तो जैसे करोड़ों नौकरियाँ अमरीका, ब्रिटेन, ब्राज़ील, जर्मनी, रूस, चीन आदि जैसे देशों में चली गईं, वैसे ही यहाँ भी जा सकती हैं। 

उसकी कंपनी तो वैसे भी पिछले काफ़ी समय से कर्मचारियों की छटनी के मोड़ में चल रही है। इसका भी काम वीक ही चलेगा। जब शेयर-मार्केट बंद या डाउन चलेगी तो ये कमाएगी क्या? 

हालाँकि वह यह सारी बातें अपने मन में ही रखता। पत्नी को नहीं बताता कि वह और ज़्यादा परेशान होगी, डरेगी। 

उसे तब और ज़्यादा चिंता हुई, जब सरकारी कर्मचारियों के डी। ए।, इंक्रीमेंट आदि रोक दिए गए। उसे चिंता फ़्लैट की किश्तों की भी होने लगी कि यह स्थिति यदि बहुत लंबी खिंच गई या नौकरी चली गई तो फ़्लैट कैसे बचाऊँगा। 

नौकरी के ख़तरे की बात उसने अपने माँ-बाप से भी की, तो उन्होंने समझाया कि, “चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। घर में सब-लोग मिलकर, सब-कुछ सँभाल लेंगे। फ़्लैट की किश्त की भी चिंता नहीं करो। जब-तक हो पाए करना, नहीं तो हम देख लेंगे।” 

वह यह सारी बातें तब करता, जब पत्नी सो रही होती। वह रात-भर सोती नहीं, और दिन में गहरी नींद सो कर अपनी नींद पूरी करती। माँ-बाप दोनों को बार-बार समझाते कि, “अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखो। टाइम से खाना-पीना, योग, ध्यान, प्राणायाम ज़रूर करते रहना, ये स्ट्रॉन्ग बनाए रखेगा। 

“म्यूज़िक सुनो, मूवी देखो, स्टोरीज़ पढ़ो, अपने को व्यस्त रखो। एक्टिव रहो। आलस्य से स्वास्थ्य ख़राब होगा।” मगर इन सबके बावजूद उन दोनों के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ बराबर बनी रहतीं। 

लॉक-डाउन के हफ़्ते-भर बाद एक दिन दोनों बालकनी में बैठे ढलती साँझ में ऊपर से ही नीचे सोसाइटी में हर तरफ़ पसरे सन्नाटे को देख रहे थे, बातें कर रहे थे। उसी समय पति ने कहा, “देखो तुम्हारे और हमारे पास अभी जितनी रक़म है, उससे कम से कम तीन साल तक अपना काम चलता रहेगा, अगर नौकरी चली भी जाती है, तो भी कोई प्रॉब्लम नहीं होगी। 

“कितनी भी वर्स्ट सिचुएशन बने, यह बीमारी कोविड-१९ तीन-चार साल से ज़्यादा नहीं चलेगी। उसके बाद कंपनियाँ खुलेंगी, काम शुरू होगा, एम्प्लॉइज़ की फिर पहले की तरह ज़रूरत होगी, बिना उनके तो काम नहीं चलेगा। सबसे बड़ी बात यह कि कोई कंपनी अपने ट्रेंड एम्प्लॉइज़ से हाथ नहीं धोना चाहेगी। भले ही सैलरी कम कर दे, फ़ैसिलिटीज़ में कटौती कर दे, लेकिन उन्हें हर हाल में जोड़े रखने की कोशिश करेगी।” 

ध्यान से सुन रही पत्नी ने कहा, “मेरा भी काम बंद नहीं हो जाएगा, शेयर-मार्केट भी उछाल मारेगी। मैं वहाँ से और कमाऊँगी। इसलिए घबराने की ज़रूरत नहीं है, बस बदली हुई सिचुएशन में पहले से बने बनाए प्लान को रीस्ट्रक्चर करने की ज़रूरत है।” 

पति ने कहा, “हाँ, यह ठीक कह रही हो। लेकिन एक बात बताओ कि, इस समय तो तुम मुझे ऐसे समझा रही हो, जैसे तुम्हें कोई टेंशन नहीं है, लेकिन बीच-बीच में रोने क्यों लगती हो? तुम्हारे आँसू मेरी टेंशन को जस्ट डबल नहीं, टेट्रा कर देते हैं।” 

यह सुनकर पत्नी ने कहा, “अब नहीं बहाऊँगी आँसूँ। बीते दो दिनों से मैंने आँसू बहाया है क्या? दो दिन पहले ही मम्मी से बातें करते हुए तुम्हें सुन लिया था। तभी मुझे मालूम हुआ कि, तुम मेरे आँसुओं से बहुत परेशान हो जाते हो। इसलिए अब तुम मेरी आँखों में आँसू नहीं देख पाओगे।” 

कहते-कहते उसकी आवाज़ भावुक हो गई। आँखों में आँसू भी आ गए। फिर रोने भी लगी। दो दिन से जिसे दबाए हुए थी, वह बाहर आ गया। बनावटी कंट्रोल ख़त्म हो गया। यह देखकर पति को हँसी आ गई। 

उसने उसका सिर दोनों हाथों से पकड़ कर अपनी गोद में कर लिया। एक हाथ से उसकी पीठ सहलाते हुए कहा, “अरे यार, मेरी जान रो मत, रो मत। एक तरफ़ कहती है कि कभी आँसू नहीं देख पाओगे और आँसू क्या रोए ही चली जा रही हो। टेंशन भी बढ़ाती जा रही हो।” 

एक-एक दिन कर लॉक-डाउन के दिन गुजरने लगे। दोनों को हर दिन चौबीस घंटे के बजाय चौवालीस घंटे का लगने लगा। दो-चार दिन में ही टीवी पर पिक्चर, सीरियल देख-देख कर ऊब गए। दोनों पसंद में बुनियादी फ़र्क़ होने के कारण एक ही पिक्चर देख नहीं पाते। 

पति, पत्नी को टीवी पर उसकी पसंद की हॉलीवुड मूवी देखने देता। स्वयं मोबाइल पर 'नेशनल ज्योग्राफिक', 'एनिमल प्लेनेट', 'डिस्कवरी' चैनल देखता। इस बीच दोनों में एक ही सामंजस्य रहता, कि पत्नी कभी पति के ऊपर ही पसर जाती, उसके साथ कुछ न कुछ खिलवाड़ करती रहती, तो कभी पति उसके ऊपर। 

इसी समय दोनों एक दूसरे का वेट भी बताने लगते। पत्नी शर्त लगाने लगती कि, “तुम मेरा वेट कर लो, तुमसे कम से कम टेन केजी ज़्यादा ही निकलेगा। मैंने तीन महीने पहले चेक किया था, तब मेरा वेट छियासठ केजी निकला था। बीते तीन महीनों में और वेट गेन किया है। मुझे लगता है कि मैं पिचहत्तर से कम नहीं हूँ, और तुम पैंसठ से ज़्यादा नहीं।” 

यह सुनकर पति ने प्यार से उसके हिप्स पर घूँसे मारते हुए कहा, “ओके, अगर पिचहत्तर केजी है, तो ओवरवेट हो। कम से कम टेन केजी कम करो। जानती हो ओवरवेट होना बीमारी को इनवाइट करना है।” 

“कह तो सही रहे हो, लेकिन मैं तुम्हारी तरह खाने पर कंट्रोल नहीं कर पाती। शादी से पहले मैंने कई बार अपनी टमी, थाई, हिप्स को देखा था। ज़्यादा फ़ैटी देखकर वेट कम करने की कोशिश की। मगर कोई भी एक्सरसाइज़ रेगुलरली कर ही नहीं पाई।” 

“इसके लिए बहुत पेशेंस चाहिए माय डियर।” 

“मुझ में नहीं है क्या?” 

“अगर होता डियर तो रेगुलरली एक्सरसाइज़ करती न।” 

“सही कह रहे हो। ऐसा है इस लॉक-डाउन का टास्क वेट कम करना है। तुम्हारा वेट नॉर्मल है। इसलिए तुम पुश-अप वग़ैरह करके बायसेप्स बनाओ। बिल्कुल एक्टर्स की तरह, ” दोनों सच में इस टास्क को पूरा करने में लग गए। 

जल्दी ही लॉक-डाउन का वह दिन आ गया, जब कोरोना वॉरियर्स को प्रोत्साहित करने, उनका मनोबल बनाए रखने के लिए देश के पीएम ने शाम को पाँच मिनट अपने घर के दरवाज़े, बालकनी, छत पर खड़े होकर थाली, गिलास, शंख आदि बजाने का आह्वान किया। 

यह सुनकर पत्नी बोली, “हमें कोरोना वॉरियर्स को मॉरल सपोर्ट देने के लिए यह करना ही चाहिए। हमें तो आश्चर्य है कि, यह बात हम आम लोगों में से किसी के दिमाग़ में क्यों नहीं आई। हज़ारों डॉक्टर्स, नर्सेस, अन्य मेडिकल, स्वीपर स्टॉफ़ दूसरों का ट्रीटमेंट करते-करते कोरोना संक्रमित होकर अपनी जान गँवा चुके हैं। 

“हम-लोग डर के मारे घर के दरवाज़े पर नहीं जा रहे हैं, और ये लोग लोगों की जान बचाने के लिए तीन-तीन, चार-चार दिन लगातार ड्यूटी कर रहे हैं। हफ़्तों घर नहीं जा रहे हैं, हॉस्पिटल में ही ज़मीन, बेंच, स्टूल आदि पर झपकी ले-ले कर जी रहे हैं। 

“हमेशा पी। पी। ई। किट पहने रहने के कारण स्किन ख़राब हो रही है। सफ़ेद होकर उखड़ जा रही है। ये लोग बॉर्डर पर देश की रक्षा के लिए प्राणों की बाज़ी लगाने वाले वीर सैनिकों से कम नहीं हैं। इनके लिए हमें कुछ भी करना ही चाहिए।” 

वह दोनों ही ठीक टाइम पर थालियाँ, चम्मच लेकर बालकनी में पहुँचे। उन्होंने देखा पूरी सोसाइटी के हर दरवाज़े, बालकनी पर पूरा परिवार खड़ा है। यह देख कर दोनों ही आश्चर्य में पड़ गए। 

पति ने कहा, “मैं तो सोच रहा था कि कुछ ही लोग नज़र आएँगे, लेकिन यहाँ तो सेंट-परसेंट प्रेजेंस है। इतने सालों से यहाँ रह रहा हूँ, लेकिन ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि एक साथ पूरी सोसाइटी दिखाई दी हो। 

“आज ऐसा लग रहा है जैसे कि यहाँ लोग रहते हैं। एक जीवंत सोसाइटी है। पहले सब अपने-अपने घरों में क़ैद रहते थे। इक्का-दुक्का लोग ही नज़र आते थे। जैसे यह बताते हुए कि सोसाइटी में लोग रहते भी हैं।” 

उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि, घन्न-घन्न, टन्न-टन्न की आवाज़ें शुरू हो गईं। वह दोनों भी थालियाँ बजाने लगे। बहुत से लोग तालियाँ बजा रहे थे, शंख बजा रहे थे। कोई सात-आठ मिनट तक यह ध्वनि गूँजती रही। इसके बाद लोगों ने हाथ हिला-हिला कर एक दूसरे को शुभकामनाएँ देना शुरू कर दिया। 

दोनों ने जब देखा कि उनके ठीक सामने वाले दो-तीन फ़्लैट से लोग हाथ हिला रहे हैं, तो उन दोनों ने भी ज़ोर-ज़ोर से हाथ हिला कर उन्हें जवाब दिया। पति ने कहा, “रियली इंट्रेस्टिंग यार। इतने सालों में पहली बार इतनी फ़ैमलीस एक-दूसरे को जानने के लिए उत्सुकता दिखा रही हैं। सोसाइटी में आज-तक मैं किसी को नहीं जानता। पड़ोस में कौन है, यह भी नहीं जानता।” 

यह सुनकर पत्नी बोली, “तुमने भी तो कांटेक्ट नहीं किया होगा।” 

“कैसी बात करती हो, जब कोई पहल नहीं करेगा, तो मैं कैसे कर सकता हूँ। अब इन लोगों ने की है, तो सिचुएशन नॉर्मल होने पर चलना साथ, मिलेंगे इनसे। मुझे लगता है कि यह लोग पहले मुझे भी कभी-कभार अकेले ही देखते थे। इधर कई दिनों से तुम्हें भी बराबर देख रहे हैं, इसलिए पहल की। मतलब कि छड़ों (अविवाहितों) की कोई वैल्यू ही नहीं। पत्नी है तो वैल्यू, वरना शून्य।” 

उसके यह कहते ही पत्नी खिलखिलाकर हँस पड़ी। देश-भर में क्या स्थिति रही प्रधानमंत्री के इस आह्वान की, यह जानने के लिए दोनों न्यूज़ देखने लगे। वो आश्चर्य में पड़ गए कि देश के कोने-कोने में लोगों ने इस अभियान में ऐसे सक्रिय भागीदारी की, जैसे कि सभी किसी त्यौहार को मना रहे हों। 

वह दोनों स्वयं भी कई दिनों तक बड़ा नैतिक बल महसूस करते रहे। कुछ दिनों बाद ही उन्होंने दुनिया के अन्य कई देशों में कोरोना वॉरियर्स के लिए यही सब-कुछ होते देखा, तो उन्हें और भी ज़्यादा उत्साह मिला। 

देश में कोरोना-वॉरियर्स पर हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा, एक दिन, एक साथ शाम को दीया जलाने या मोबाइल की फ़्लैश लाइट ऑन करने को भी देख कर सब की तरह उन्होंने राहत की साँस महसूस की। 

लेकिन जल्दी ही कोविड-१९ की तरह उनकी मायूसी, भय बढ़ता चला गया। लॉक-डाउन भी फ़र्स्ट, सेकेण्ड, थर्ड, फोर्थ फेज़ करके बढ़ता चला गया। सोसाइटी में जल्दी ही एक-एक करके पैंतीस-चालीस घरों को बल्लियों या रिबन से घेर दिया गया। जो देखने वालों को भयभीत कर रहे थे कि वहाँ कोविड-१९ के मरीज़ मौत से संघर्ष कर रहे हैं। नगर-निगम उन घरों को रोज़ सेनिटाइज़ कर रहा था। बहुतों की हालत ख़राब हुई तो एम्बुलेंस आ-आ कर उन्हें हॉस्पिटल लेती गई। 

जिनमें से अधिकांश लौट कर नहीं आए। हॉस्पिटल से ही सीधे अंतिम संस्कार को भेज दिए गए। ग्राउंड फ़्लोर के एक फ़्लैट में तो जो ताला हॉस्पिटल के लोग लगा कर गए थे, वह लगा ही रह गया। क्योंकि चार सदस्यों के उस परिवार में कोई भी लौट कर नहीं आया

माहौल पूरी तरह से श्मशान घाट की रातों सा हो रहा था। डर भी ऐसा कि हर फ़्लैट के दरवाज़े खुलते ही नहीं। लोग खिड़कियों से झाँकते नज़र आते। यह दोनों भी बोनसाई पेड़ों, घास से सजी अपनी बॉलकनी में डरते काँपते कुछ-कुछ देर को निकलते। दिन भर में कई-कई बार एक-दूसरे का ऑक्सीजन लेवल, टेम्प्रेचर चेक करते। गले में ज़रा सी ख़राश होती तो उनके प्राण सूख जाते कि कहीं कोविड ने हमला तो नहीं कर दिया। 

एक दिन सवेरे-सवेरे जब वह बॉलकनी में पहुँचे तो देखा दूर ठीक सामने वाली बॉलकनी में भी रिबन फँसा दिख रहा है। दोनों के प्राण भी मानों हलक़ में आ फँसे। पत्नी को चक्कर आ गया। उसे पति ने अंदर बेड पर बैठाया। उसका बीपी वग़ैरह सब चेक कर डाला। बाक़ी सब-कुछ तो ठीक था, लेकिन धड़कन बहुत बढ़ी हुई थी। पति ने ग्लूकोस वग़ैरह पिलाया। बड़ी देर बाद वह सामान्य हुई। 

उनका भय इस बात ने और बढ़ा दिया कि कोरोना दसवीं मंज़िल तक पहुँच गया है। वह घबराई हुई पति से बोली, “किसी तरह इन लोगों से बात हो सकती, तो पूछा जाए कि परिवार में किसी एक को हुआ है या पूरे परिवार को।” 

पति ने कहा, “जब घर से निकल ही नहीं सकते तो कैसे कुछ मालूम हो सकता है। दूरी भी इतनी है कि यहाँ से पूरी आवाज़ में भी बुलाऊँ तो भी वो लोग सुन नहीं पाएँगे। और ऐसा करना ठीक भी नहीं है।” 

यह सुन कर पत्नी के चेहरे पर कुछ तनाव आ गया। लेकिन कुछ देर सोचने के बाद उसने बाहर निकले बिना संपर्क करने का जो तरीक़ा बताया उसे सुनकर पति मुस्कुराते हुए उसे देखने लगा। 

थोड़ी देर में ही दोनों ने मिल कर नए रेफ्रिज़रेटर, अन्य सामानों के कार्टन को काट कर पूरी बालकनी के बराबर एक पट्टी तैयार की। इस दो फ़ीट चौड़ी और पंद्रह फ़िट लम्बी पट्टी पर पति-पत्नी ने कई लिपस्टिक से बड़े अक्षरों में लिखा मुझे कॉल करें। उसके नीचे मोबाईल नंबर लिख कर पट्टी बालकनी में लगा दी। लिखावट दूर से पढ़ी जा सके इसके लिए उन्होंने पेन की जगह लिपस्टिक प्रयोग की। 

उनके इस प्रयोग का घंटे भर बाद ही परिणाम आ गया। सामने के तीन फ़्लैट्स से कॉल आईं। तीनों परिवारों से परिचय हुआ। बातें हुईं। दो परिवार उनकी ही तरह जहाँ भयभीत लगे, वहीं तीसरा परिवार अपने दो बच्चों के साथ फ़ुल मस्ती में था। लॉक डाउन से मिली इस छुट्टी को एन्जॉय करने की बात कर रहा था। बोला, “डरना क्या जी, जो होगा देखा जाएगा।” मगर यह तीनों परिवार अपने ही फ़्लोर के रिबन वाले परिवार का कोई हाल-चाल नहीं बता सके। 

रिबन वाले परिवार की कॉल प्रतीक्षा में उनके अड़तालीस घंटे बीत गए। तीसरे दिन उन्हें दोपहर में पी। पी। ई। किट पहने कुछ लोग दिखे। फिर थोड़ी देर बाद नीचे दो अंतिम यात्रा वाहन में उन्होंने दो शवों को कर्मचारियों द्वारा रखे जाते देखा। उन्होंने तीनों परिवारों को फ़ोन किया तो एक से पता चला कि रिबन वाले परिवार के फ़्लैट में ताला लग गया है। पति-पत्नी साल भर पहले ही रहने आए थे। 

यह सुन कर दोनों स्तब्ध रह गए। पत्नी रोने लगी तो पति ने उसे बाँहों में समेटते हुए कहा, “शांत रहो। जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा।” 

हर बीतते दिन के साथ कोविड-१९ से बचने के उनके प्रयास बढ़ते जा रहे थे। वे गवर्नमेंट की सलाह पर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग करने लगे। 

तीन टाइम लौंग, काली-मिर्च, गुड़ आदि का गरम-गरम काढ़ा पीते। दिन-भर में छह-सात बार पानी में नमक, हल्दी उबालकर उससे गरारा करते। जिससे यदि वायरस ने हमला कर दिया हो तो वह गले में ही ख़त्म हो जाए। 

इस बीच पत्नी को एक और टेंशन होने लगी। कहाँ तो वह अपना वेट कम करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह कम होने की बजाए बढ़ने लगा। वह भी कोविड-१९ की गति से। इतना ही नहीं, साथ में उसके हस्बैंड का भी। दोनों हर हफ़्ते टमी का नाप लेते। वह हर बार बढ़ा हुआ ही मिलता। 

एक दिन पति ने उसे छेड़ते हुए कहा, “एक तो तुम पहले ही गदरीली थी, अब और भी ज़्यादा होती जा रही हो। कंट्रोल करो यार, नहीं तो रोज़ जो बालकनी से उठाकर तुम्हें बेड पर ले जाता हूँ, वह नहीं कर पाऊँगा। इतनी दूर तक तुम्हें पैदल ही चलना पड़ेगा।” 

यह सुनकर पत्नी बोली, “वेट बढ़ तो तुम्हारा भी रहा है।” 

पति ने हँसते हुए कहा, “हाँ, लेकिन तुम मुझे उठा कर तो नहीं ले जाती न।” 

यह सुनते ही पत्नी चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए कुछ देर बड़े प्यार से उसे देखने के बाद बोली, “आज मैं तुम्हें उठा कर ले चलूँगी।” 

शाम को हुई इस हँसी-ठिठोली को, बालकनी से रात बारह बजे उठते हुए पत्नी ने सच करने का प्रयास किया। पति उसे मना करता रहा, लेकिन वह अति उत्साह में नहीं मानी और दोनों ही उस घसियाली बालकनी में धड़ाम से गिर पड़े। चोट दोनों को आई। लेकिन पत्नी को ज़्यादा। क्योंकि पति उसी के ऊपर गिरा था। 

क़रीब दो महीने में घास और बढ़ आई थी। उसने एक नरम मुलायम कालीन का काम किया। अंततः पति को ही, पत्नी को उठाकर ले जाना पड़ा बेड पर। दोनों डर गए थे। बेड पर पहुँचते ही उन्होंने यह प्रॉमिस किया एक-दूसरे से कि, अब ऐसा मज़ाक कभी नहीं करेंगे। इससे बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। 

इस समय पत्नी की सलाह पर लिया गया दवाओं से भरा फ़र्स्ट एड बॉक्स बहुत काम आया। पति ने पत्नी के तीन-चार जगह पेन किलर क्रीम लगा कर हल्की मालिश भी की। साथ ही मज़ाक भी करता रहा कि इस ट्रीटमेंट की फ़ीस अभी ही देनी होगी। 

हालाँकि पत्नी ने उससे कई बार कहा कि, “ऐसी कोई ज़्यादा चोट नहीं लगी है। फ़ीस ही वसूलनी है, तो ऐसे ही वसूल लो। बिना ट्रीटमेंट के ही। यह ज़बरदस्ती ट्रीटमेंट देने, बटरिंग करने की ज़रूरत नहीं है।” 

फिर उसने रोज़ से एकदम अलग ही शैली में पति को फ़ीस चुकाई। वह अपने प्रति पति के अतिशय प्यार लगाव को देखकर भाव-विभोर थी। अब दोनों एक दूसरे को गदरीला, गदरीली कहकर चिढ़ाते और इसी नाम से बुलाते थे। 

रोज़-रोज़ जिन चीज़ों की ज़रूरत पड़ती और वह सब घर में ही मिलती तो पति कहता, “तुमने अच्छा किया जो एक-एक चीज़ की लिस्ट बनाकर सारा सामान मँगवाया, नहीं तो बहुत ही ज़्यादा मुश्किल होती।” 

वह लैप-टॉप पर एक चार्ट भी मेंटेन कर रही थी, कि रोज़ कोविड-१९ के कितने पेशेंट मिले, कितने ठीक हुए। वह रोज़ विश्लेषण करती कि पेशेंट मिलने की स्पीड ज़्यादा है या कि ठीक होने वालों की। उसे बड़ी निराशा होती कि हालात धीरे-धीरे ही सही बिगड़ते जा रहे हैं। हालाँकि उसकी सोसाइटी में स्थितियाँ कुछ नियंत्रण में आती दिख रही थीं। 

मगर यह सोच कर वह घबरा जाती कि, समय रहते यहाँ लॉक-डाउन न लगाया गया होता तो स्पेन, इटली, अमेरिका, ब्राज़ील, रूस की तरह अब-तक यहाँ भी लाशों का अंबार लग जाता। 

वह ऐसे समाचार देख, पढ़ कर विचलित हो जाती कि वेनेज़ुएला, स्पेन जैसे तमाम ऐसे देश हैं, जहाँ हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि, पार्थिव शरीर कई-कई दिनों तक सड़कों पर ही पड़े रह जा रहे हैं। अंतिम संस्कार तक की व्यवस्था ध्वस्त हो गई है। 

एक दिन वह पति के पैरों पर सिर रखे मोबाइल पर न्यूज़ पढ़ रही थी। पति लैपटॉप पर कुछ काम करने में व्यस्त था। तभी वह ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी। हँसती ही चली गई। पति ने पूछा, “कौन सा जोक पढ़ लिया है?” 

पत्नी ने कहा, “जोक नहीं, जोकर की जोकरी पर हँस रही हूँ।” 

पति ने पूछा, “कौन जोकर?” 

“वही डब्ल्यू। एच। ओ। चीफ़। मुझे आज की डेट में दुनिया में उससे बड़ा जोकर और कोई नहीं दिखता। इस चीनी एजेंट जोकर ने शुरू से ही दुनिया को कोविड-१९ के बारे में हर दिन भ्रामक जानकारियाँ दीं। जिससे दुनिया में हालात इतने ज़्यादा बिगड़े। 

“चीन के षड्यंत्र को छिपाए रखने के लिए, उसके इशारे पर जानकारियाँ बदलता रहता है। जोकर के पास करने के लिए कुछ नहीं बचा है, तो दुनिया के लोगों के बेडरूम में झाँक रहा है कि, लॉक-डाउन पीरियड में, अपने घरों में चौबीसों घंटे बंद लोग ख़ासतौर से आदमी-औरत क्या कर रहे हैं। 

“इस जोकर के हिसाब से, घरों में बंद सारे लोग, सारे समय सेक्स कर रहे हैं। जिससे अगले कुछ महीनों में कम से कम बहत्तर से पिचहतर लाख अनचाहे गर्भ सामने आएँगे। बहुत अच्छा हुआ जो अमेरिका ने इस जोकर डब्ल्यू। एच। ओ। की फ़ंडिंग बंद कर दी है। अपने देश को भी बंद कर देनी चाहिए, वह सारा पैसा देश के मेडिकल इंफ़्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने में लगा देना चाहिए।” 

यह सुनकर पति बोला, “ऐसे काम नहीं चलता गदरीली जी। जैसे देश की, वैसे ही पूरी दुनिया की व्यवस्था बनाए रखने के लिए कोई ऐसी ही संस्था होनी ही चाहिए। एक बार चाइना के दबाव या साज़िश में आकर उसने ग़लती कर दी तो इसका मतलब यह तो नहीं कि इसे बंद कर दिया जाए। 

“इसने सॉर्स, ज़ीका, इबोला वायरसों के प्रकोप के समय, कुल मिलाकर ठीक-ठाक काम किया था। इसलिए उसकी इस अनचाहे गर्भ वाली बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता। तुम्हीं ने तो कुछ दिन पहले नाइजीरिया की एक न्यूज़ बताई थी कि, पत्नी लॉक-डाउन को तोड़कर पुलिस स्टेशन पहुँची कि, लॉक-डाउन के कारण उसका पति न कोई समय देखता है, न घर का कोई कोना, किचन से लेकर बाथरूम तक बस सेक्स ही सेक्स करता रहता है। 

“उसकी क़िस्म-क़िस्म की सेक्स हरकतों के कारण ज़िन्दगी नर्क हो गई है, ख़तरे में पड़ गई है। इसलिए उसके हस्बैंड को ऑफ़िस बुला लिया जाए। उसका यह वीडियो कितना वायरल हुआ था।” 

पत्नी ने कहा, “अरे यार इक्का-दुक्का केस का मतलब यह थोड़ी न है कि उसी के आधार पर पूरी एक रिपोर्ट जारी कर दी जाए।” 

यह सुनकर पति ने अपना लैपटॉप एक किनारे रख दिया। झुक कर उसे चूमते हुए कहा, “अरे मेरी गदरीली मैडम, इक्का-दुक्का नहीं, ऐसी कई न्यूज़ मैं भी देख चुका हूँ। फिर अपना ही देखो ना, हम-दोनों जितने अटेम्प्ट करते हैं, क्या ऑफ़िस, सब-कुछ ओपन रहने पर इतना छोड़ो इसका आधा भी हो पाता। 

“और अपनी उस फ़्रेंड की भी तो बात करो ना, जो कहती है, 'मेरे यह तो बच्चों तक का ध्यान नहीं रखते। समय, जगह की तो बात ही छोड़ दो। यह तो कहो बच्चे छोटे हैं, इसलिए स्थिति मैनेज हो जाती है। ' कितना इठला कर पूछ रही थी कि, 'तुम्हारी भी सिचुएशन यही है क्या? ' तो रिपोर्ट ग़लत नहीं है।” 

पत्नी ने कहा कि, “मैं इसके औचित्य की बात कर रही हूँ। औचित्य यह कि इतनी बड़ी संख्या में पैदा होने वाले बच्चों के पालन-पोषण की तरफ़ भी ध्यान दे। इसमें कोई इफ़-बट की बात नहीं है कि ऐसे बच्चों में नब्बे परसेंट ग़रीब परिवारों में होंगे। फ़ाइनेंशियली स्ट्रोंग लोग तो सब-कुछ मैनेज किए रहते हैं। 

“चलो एक बार मान भी लूँ कि, जोकर ने बड़ा अच्छा काम किया है। लेकिन मैं अभी यही मानती हूँ कि जोकर की कोई इंपॉर्टेंस नहीं रह गई है। उसकी बातों को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। मैं फिर कहती हूँ कि इसे बंद कर देना चाहिए।” 

पति ने उससे असहमति जताते हुए कहा, “नहीं इसकी इम्पॉर्टेंस है, क्योंकि हर कोई तुम्हारी तरह के विज़न का नहीं है कि, बैलून जैसी चीज़ का भी साल भर का स्टॉक रख ले।” 

यह कहते हुए पति ने उसे छेड़ दिया तो वह बोली, “अगर स्टॉक नहीं रखती, तो तुमने तो अब-तक मुझे प्रेग्नेंट बनाने में कोई कोर-कसर बाक़ी नहीं रखी है। ज़रा गंभीरता से सोचो लॉक-डाउन में हॉस्पिटल्स की जो हालत है, ऐसे में प्रेग्नेंसी, रोज़-रोज़ कहाँ चेकअप कराने जाते। कौन डॉक्टर मिलता, बच्चे की जान से ज़्यादा तो हम-दोनों की जान ख़तरे में पड़ जाती।” 

यह सुनकर पति ने फिर कहा, “डार्लिंग मैंने तो पहले ही कहा कि, तुम वाक़ई बहुत इंटेलिजेंट हो, इसलिए दुगना स्टॉक ले आया। वह भी आधा नहीं पूरा का पूरा तुम्हारी पसंद का। केमिस्ट ने जब लिस्ट देखी तो तुमने ध्यान नहीं दिया कि, वह किस तरह कनखियों से हम-दोनों को देख रहा था। जैसे भीतर ही भीतर कह रहा हो, वाह भाई इतना जोश, आप दोनों तो लाजवाब हैं।” 

पत्नी ने हँसते हुए कहा, “इसमें कोई शक है क्या? हम दोनों ही लाजवाब हैं।” 

दोनों रोमांटिक हो रहे थे कि, तभी पति के छोटे भाई का फ़ोन आ गया कि, 'अम्मा की तबीयत कई दिन से ख़राब चल रही थी, बड़ी मुश्किल से डॉक्टर तक पहुँच पाए। उनको डाउट होने पर चेक कराया गया तो वह कोविड-१९ पॉज़िटिव निकलीं। सभी को घर में ही क़्वारंटाइन कर दिया गया है। सभी की जाँच हो रही है। कॉलोनी पहले से ही सील थी। अब और भी ज़्यादा सख़्ती कर दी गई है। '

भाई की बात पूरी होते ही उसके चेहरे पर पसीना आ गया। पत्नी भी घबरा उठी। फ़ोन स्पीकर पर था। सारी बातें उसने सुनी थीं। 

पति ने नाराज़ होते हुए भाई से कहा, “जब इतने दिनों से अम्मा की तबीयत ख़राब थी तो बताया क्यों नहीं।” 

आख़िर वीडियो कॉल कर पूरे परिवार को देखा गया। परिवार का हर सदस्य अपने-अपने कमरे में अकेला बहुत ही भयभीत दिख रहा था। 

फ़ादर ने साफ-साफ़ कहा, “बेटा परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। फ़्लू ही है, ठीक हो जाएगा। तुम लोग घर से बाहर नहीं निकलना। यहाँ आने के बारे में सोचना भी नहीं। एक तो लॉक-डाउन है, दूसरे लाइफ़ का बहुत रिस्क है।” उन्होंने अपनी बहू को भी यही हिदायत दी। 

दोनों ने देखा कि, फ़ादर कह तो रहे थे कि फ़्लू ही है, ठीक हो जाएगा, लेकिन बेहद डरे हुए थे। स्वयं वह दोनों भी। फ़ैन चलने के बावजूद दोनों का पसीना सूखा नहीं था। 

अगले दिन सवेरे ही उनकी धड़कन यह न्यूज़ पढ़कर और बढ़ गई कि, दिल्ली में तबलीगी जमात के लोग लॉक-डाउन के सारे नियम-क़ानून को ताक़ पर रखकर हज़ारों की संख्या में एक ही जगह एकत्र हुए। प्रदेश सरकार आँखें मूँदे रही। 

इस मूर्खता का परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में लोग कोविड-१९ पॉज़िटिव हो गए। इतना ही नहीं जमात के सारे सदस्य न जाने किस धर्मांधता के चलते जगह-जगह थूकते हुए, देश के कोने-कोने में जा रहे हैं। 

अपना कोविड-१९ चेकअप नहीं करा रहे। पुलिस स्टाफ़, मेडिकल कर्मियों पर थूक रहे हैं। जगह-जगह उन पर पत्थरबाज़ी कर रहे हैं। बीमारी को देश के कोने-कोने तक में फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। 

पत्नी ने न्यूज़ पढ़ कर कहा, “दुनिया में मूर्खता, धर्मांधता, गँवारपन का शायद ही ऐसा कोई दूसरा उदाहरण मिले। अभी थूक रहे हैं, पत्थर मार रहे हैं, जब मरने लगेंगे तो पैरों पर नाक रगड़ेंगे कि बचा लो। यह सब तो एक तरह से अपने देश पर, मानवता के दुश्मन चीन के जैविक हमले के सिपाही बने हुए हैं।” 

यह जमाती अगले दसियों दिन तक, पूरे देश की तरह उन दोनों की भी टेंशन बढ़ाते रहे। पेपर ओपन करते ही उन्हें जमातियों की ही न्यूज़ दिखाई देती। वह कहती कि, “ये तो गोरिल्ला की तरह देश के कोने-कोने में बीमारी फैला रहे हैं। आख़िर ये कभी अपनी क़बीलाई संस्कृति से बाहर आएँगे। इनको अपने खोल से बाहर नहीं आना है, तो ना आएँ। लेकिन दुनिया के बाक़ी लोगों के लिए सिर-दर्द क्यों बने हुए हैं।” 

उसे अंदाज़ा नहीं था कि, अभी तो सिर-दर्द और बढ़ने वाला है। ससुराल में अभी हालत ठीक भी नहीं हो पाई थी कि, मायके से आए फ़ोन ने पसीना-पसीना कर दिया। हालत इतनी ख़राब हुई कि फ़ुल स्विंग में एसी चलाना पड़ा। 

मायके में परिवार के सभी सदस्य कोविड-१९ पॉज़िटिव निकल आए थे। डॉक्टर ने माँ-बाप की हालत को चिंताजनक बताया था। डायबिटीज़, बीपी के पेशेंट होने के कारण वह दोनों लोग हाई-रिस्क पर थे। पत्नी मायके जाने के लिए ज़िद करने लगी। 

उसने पति से कहा कि, “किसी भी तरह से गवर्नमेंट से परमिशन लो। टैक्सी बुक करके चलो। पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो बंद है।” 

पति ने समझाया कि, “देखो मेरे यहाँ भी सभी बीमार हैं। पापा ने सभी को मना कर दिया, कि आना नहीं है। पहली बात तो किसी भी तरह से जर्नी की परमिशन नहीं मिल रही। जो जहाँ है, वहीं पर लॉक है।” 

मगर पत्नी के न आँसू रुक रहे थे और न मायके जाने की ज़िद। आख़िर ऊब कर पति ने फिर से ससुराल फ़ोन मिलाया। सारी बातें बताईं तो उन्हीं लोगों, ख़ासतौर से सास ने समझाया कि, “आना तो छोड़ो, इस समय, इस बारे में सोचना भी नहीं। तुम्हें अपना और अपने बच्चे का बहुत ध्यान रखना है। शुरूआती महीनों में ज़्यादा चलो नहीं, आराम करो। हम लोग ठीक हो जाएँगे।” 

हसबैंड सास की यह बात सुनकर अवाक्‌ सा पत्नी को देखने लगा, कि पत्नी ने ऐसा शुभ समाचार उससे छिपाया। जबकि पत्नी भी उसे आश्चर्य-मिश्रित भाव से देखती रही। इस बीच सास ने पति को तमाम तरह की सावधानियाँ बरतने के लिए कहा। 

पत्नी को अब हँसी आने लगी। पति ने राहत महसूस की, कि चलो कम से कम आँसुओं का प्रेशर तो कम हुआ। वीडियो कॉल ख़त्म होते ही पति ने मोबाइल को सोफ़े पर एक तरफ़ फेंका और पत्नी को गोद में उठा कर नाचने लगा। साथ ही बोलता जा रहा था, “धोखेबाज़, चीटर इतनी बड़ी गुड न्यूज़ छुपाई।”

और भी तमाम बातें कहता जा रहा था। और पत्नी हँसते-हँसते लोट-पोट होती जा रही थी। पति की गोद से उतरने के बड़ी देर बाद जब उसकी हँसी रुकी तो उसने कहा, “यार ऐसा कुछ है ही नहीं। मैं ख़ुद ही शॉक्ड थी कि मम्मी को हो क्या गया है? 

“उन्हें जब मैंने बार-बार अपने पेट की तरफ़ देखते पाया, तब मेरी समझ में आया कि, आजकल मेरा पेट ज़्यादा निकल आया है। उसे ही देखकर इन्हें डाउट हो रहा है। मैं तो यह सोच रही हूँ कि, तुम्हारी तरह मम्मी ने यह क्यों नहीं कहा, 'अरे! तुमने मुझसे यह बात छुपाई।'

पति के चेहरे पर कुछ क्षण पहले तक जो एक ख़ास तरह की ख़ुशी चमक रही थी, वह अब-तक ग़ायब हो चुकी थी। उसने पूछा, “क्या वाक़ई ऐसी कोई बात नहीं है।”

पत्नी ने हँसते हुए कहा, “तुम भी यार कैसी अनाड़ियों सी बात कर रहे हो। अभी चार दिन पहले ही पीरियड ख़त्म हुए हैं। रात में अलमारी से नैपकिन भी तुम्हीं उठा कर ले आए थे। इतना भी नहीं समझते। मम्मी तो ज़्यादा निकल आए पेट को देखकर अनुमान लगा रही थीं, वीडियो कॉल में ठीक से समझ नहीं पाई होगी।”

पति ने कहा, “चलो ठीक है, इसी बहाने हँसी तो आई। आँसुओं की घनघोर बारिश से पूरा घर भरे दे रही थी।”

पत्नी ने कहा, “अरे यार इतनी सीरियस बात है, मायके, ससुराल दोनों जगह सब की जान ख़तरे में पड़ी हुई है। तुम अपनी बताओ क्या तुम परेशान नहीं हो?” 

“हाँ हूँ, बहुत ज़्यादा परेशान हूँ। लेकिन रोने से तो काम नहीं चलेगा न। न ही वहाँ जाने की सोचने से। देख नहीं रही हो कि, लोगों के परिवार के सदस्य मर जा रहे हैं, वीडियो कॉल के ज़रिए लोग अंतिम संस्कार में शामिल हो रहे हैं। 

“वह न्यूज़ भूल गई जिसे देखकर तुम रो पड़ी थी। मेरा भी गला भर आया था। आइसोलेशन में होने के कारण माँ-बाप कोविड-१९ की वजह से स्वर्गवासी हुए अपने दो महीने के बच्चे को आख़िर समय में छू भी नहीं सके थे। सरकारी कर्मचारी बच्चे का अंतिम संस्कार कर रहे थे। और माँ-बाप बिलखते, आँसू बहाते हुए वीडियो कॉल से अपने कलेजे के टुकड़े को देखते रहे। 

“सोचो उन पर क्या बीती होगी, कैसे बर्दाश्त किया होगा अपने बच्चे का यह हाल। हम बाहरी होकर आँसू नहीं रोक सके थे। वह तो . . . ”

पत्नी की आँखों में भर आए आँसू छलकने ही वाले थे कि पति उसे पोंछने लगा। तभी उसने सिसकते हुए कहा, “सही कह रहे हो। लेकिन मन इमोशन भी तो कोई चीज़ है ना।”

“हाँ बिल्कुल है, लेकिन हर चीज़ को कंट्रोल में करना भी तो बताया गया है। ज़रा सोचो न, हम तुम क्या पूरी दुनिया में कोई भी, कभी इस तरह घरों में क़ैद हुआ था? कुछ घंटा बीता नहीं कि चलो कहीं घूम कर आते हैं मगर आज . . . ”

दोनों बातों में बात निकाल-निकाल कर थक गए। रात दो बजे तक बालकनी में ही बैठे मोबाइल में कुछ न कुछ देखते हुए टाइम पास करते रहे। फिर अंदर सोने पहुँचे तो कुछ ही देर में पत्नी बोली कि उसे उलझन, बेचैनी, शरीर में अज़ीब सी सनसनाहट हो रही है। 

पति ने जब देखा कि उसे पसीना भी हो रहा है, तो उसने एक गिलास पानी में दो चम्मच ऐनरजॉल घोल कर उसे पिलाया। जब उसकी तबियत कुछ सम्भली तो उसे समझया कि, “बेवजह की टेंशन लेकर तबीयत ख़राब करने से क्या फ़ायदा? वह भी ऐसी स्थिति में।” 

अगले दिन सुबह उसने पत्नी को न्यूज़ पढ़ने, देखने से मना कर दिया। कहा, “यह सब देख कर अपनी तबीयत ख़राब करने की आवश्यकता नहीं।”

क़रीब ग्यारह बजे देवर का फ़ोन आया। देवर-भाभी में ख़ूब हँसी-मजाक हुआ। देवर ने दिल्ली, ऐन.सी.आर. में फिर से आए भूकंप की बात की। 

भाभी ने अनभिज्ञता प्रकट की तो वह बोला, “आश्चर्य है, आपको पता ही नहीं। कल भूकंप आया था। आप लोग बहुत ऊँचाई पर हैं। ध्यान रखियेगा। इधर बीच एवरेज डेढ़ दो हफ़्ते के अंतराल पर आ रहा है। एक्सपर्ट कह रहे हैं, यह आने वाले बड़े भूकंप का संकेत भी हो सकता है।” 

यह सुनकर पत्नी फिर से टेंशन में आ गई। वह स्वयं भी कई बार पढ़ चुकी थी। दिन भर उसकी बातचीत में भूकंप ही बना रहा। वह पति से बोली, “फ़्लैट ख़रीदते समय इन सारी बातों को ध्यान में रखना चाहिए था। इस समय तो यह भी नहीं हो सकता कि, कहीं और किराए पर, ग्राउंड फ़्लोर पर रहें, और अपना फ़्लैट किराए पर दे दें।” 

यह मुद्दा अगले कई दिन तक उनकी बहस में बना रहा। कई बार उसकी तबीयत ख़राब हुई तो पति ने उसे और स्वयं को भी व्यस्त रखने के उद्देश्य से अपना एक यूट्यूब चैनल बनाया। 

कुकिंग के अन्य चैनलों की तरह नहीं, बल्कि एकदम नए तड़के के साथ। किचन में शूट करते हुए पहले दिखाते कि वह अपने खाने के लिए क्या बना रहे हैं, फिर किसी रेसिपी की डिटेल जानकारी देते। जिससे शरीर की इम्यूनिटी बढ़े। कोविड-१९ से बचाव आसान हो सके। 

रेसिपी में प्रयोग होने वाली एक-एक सामग्री की विशेषता, उसके फ़ायदे, सभी कुछ वैज्ञानिक आधार पर बताते। चैनल को रिस्पांस भी अच्छा मिलने लगा। इसके साथ ही दोनों बालकनी में रखे पेड़-पौधों की देखभाल में भी समय बिताते। 

लेकिन फिर भी उनके पास समय ही समय रहता। इसी बीच उन्हें राहत भरी ख़बर मिली कि पति के माँ की कोविड-१९ रिपोर्ट निगेटिव आ गई है। लेकिन यह राहत भरी ख़बर चौबीस घंटे से ज़्यादा नहीं रही। 

अगले दिन सवेरे ही पत्नी की माँ के वेंटिलेटर पर पहुँच जाने का समाचार आ गया। पत्नी बार-बार रोती। फ़ादर, भाई-बहन से वीडियो कॉल कर-कर के बात करती। फिर से मायके जाने का कोई रास्ता ढूँढ़ने की बात कहती, लेकिन कोई रास्ता निकले, उसके पहले ही माँ के कोविड-१९ की लड़ाई हार जाने की ख़बर आ गई। 

रोते-रोते उसका और उसे समझाते-समझाते पति का बुरा हाल हो गया। इसी बीच घर से फ़ादर, भाइयों का फ़ोन आ गया कि, 'भूलकर भी घर से बाहर नहीं निकलना। अंतिम संस्कार के लिए भी पुलिस ने केवल पाँच लोगों को ही परमिशन दी है, सरकारी कर्मचारियों के दिशा-निर्देश पर ही सब कुछ होगा।' यह सब सुनने के बाद ही वह मानी। 

मगर इसके बाद भी कई दिन तक बार-बार रोते रहने के कारण उसकी आँखों में बहुत सूजन आ गई। पति ने ठंडे पानी में कॉटन भिगो-भिगो कर कई बार आँखों पर रखा। तब जाकर सूजन कम हुई। 

पत्नी को नॉर्मल करने की पति की तमाम कोशिशें धीरे-धीरे सफल होती गईं, लेकिन फिर एक घटना ने तनाव बढ़ा दिया। पूर्ण लॉक-डाउन के समय ही प्रवासियों को उनके घर भेजने के लिए फ़लाँ-फ़लाँ जगह गाड़ियाँ लगी हैं, अराजक तत्वों ने यह अफ़वाह उड़ा कर दिल्ली सहित ऐन.सी.आर. में भी लाखों लोगों को सड़क पर ला दिया। 

न्यूज़ में आई बातों से यह साफ़ हो गया कि लॉक-डाउन को फ़ेल करने के लिए एक पार्टी का यह षड्यंत्र था। जो नई तरह की राजनीति के दावे के साथ राजनीति करने आई है। पत्नी ग़ुस्से से ज़्यादा घबरा गई कि अब तो संक्रमण और भी तेज़ी से फैलेगा। 

पहले तबलीगियों ने और अब इस गंदी राजनीति ने। सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ तक में रोज़ ऐसे ढेरों कारण मिलते जो उसकी घबराहट चिंता को और बढ़ाते जा रहे थे। वह तरह-तरह की बातें करती। ऐसी बातें कि पहली बार सुनने वाला उसे मेंटली डिस्टर्ब समझ ले। इसके चलते पति दोहरी मार महसूस कर रहा था। 

उसने सोचा था कि लॉक-डाउन होने पर समस्याएँ कम होगी, लेकिन हुआ उसका उल्टा। गवर्नमेंट ने सोचा कि लॉक-डाउन ज़्यादा लंबा हुआ तो कहीं अर्थ-व्यवस्था ध्वस्त न हो जाए, कोरोना वायरस के साथ-साथ कहीं लोग बेकारी, भुखमरी से न मरने लगें, तो उसने स्टेप बाय स्टेप तमाम सुरक्षात्मक शर्तों के साथ अनलॉक करना शुरू कर दिया। 

लेकिन पत्नी ने फ़्लैट का डोर अनलॉक नहीं करने दिया। पति ने कहा, “इतने दिनों से बंद हैं, चलो कम से कम पार्क में ही टहलते हैं।” 

पत्नी बोली, “नहीं यार, ऐसा बिल्कुल नहीं करना। कितना पैसा ख़र्च करके बालकनी में ही पार्क बना लिया गया है, तो नीचे जाकर रिस्क लेने की क्या आवश्यकता है। नीचे पता नहीं कौन सी जगह इनफ़ेक्टेड हो। देख नहीं रहे हो, कैसे-कैसे वीडियो अभी भी आ रहे हैं। जाहिल गंवार लोग अब भी जगह-जगह थूक रहे हैं, खाने-पीने की चीज़ों सहित अन्य सामानों पर भी थूक-थूक कर भेज रहे हैं। 

“जब प्रयागराज विश्व-विद्यालय का एक प्रोफ़ेसर ऐसे जाहिलों की भीड़ का हिस्सा हो सकता है, उन्हें लीड कर सकता है, तो अकारण रिस्क क्यों लेना। क्या पता अपनी इस सोसाइटी में ही ऐसी ही गंदी सोच के कुछ नमूने हों।” 

पत्नी की यह बातें सुनकर वह दोनों हाथों से सिर पकड़ कर, कुछ देर तक उसे देखता ही रहा। साथ ही साथ मुस्कुराता भी रहा। तो पत्नी बोली, “अरे मैं कोई जोक नहीं सुना रही हूँ, जो तुम्हें हँसी आ रही है।” 

तो पति बोला, “मैं तुम्हारी बात को जोक समझने की भूल कर भी नहीं सकता। तुम्हारी इस हद दर्जे की सावधानी, उसे कहने के तरीक़े, तुम्हारी मासूमियत से मुझे हँसी आ रही है। समझना मुश्किल हो रहा है कि, तुम्हारी बातों को समझदारी कहूँ या कि नादानी। या अत्यधिक भय के कारण अपना . . . 

पति ने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया और घड़ी के पेंडुलम की तरह सिर हिलाने लगा। पत्नी बोली, “बोलो-बोलो। पूरी बात बोलो न, कि मैं अपना सेंस मिस कर गई हूँ।” 

पति ने वैसे ही मुस्कुराते हुए कहा, “ऐसी ब्रिलिएंट, एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी पत्नी का पति ऐसी मूर्खता करने की सोच ही नहीं सकता। कोई प्रश्न ही नहीं उठता।”

पति के इस व्यंग्य पर हुई बहस आगे चलकर ऑफ़िस जाने की बात पर तीखी हो गई। पति चाहता कि, जैसे भी हो नौकरी बची रहे। इतने दिनों बाद ऑफ़िस खुलने पर भी नहीं गया तो नौकरी जानी तय है। स्थितियाँ ऐसी हैं कि, अगले कई सालों तक नौकरी का टोटा आम बात होगी। 

लेकिन पत्नी अपनी शुरूआती बात और योजना पर अडिग रही कि, “इंडिया हो गया अनलॉक तो हो जाने दो, लेकिन अपना फ़्लैट अनलॉक नहीं होगा। जब अम्मा और सास को देखने नहीं जा सके, तो अब बाहर निकलना कोई बुद्धिमानी नहीं है।” 

उसने ज़िद करके ऑफ़िस मेल करवा दी कि पत्नी ठीक नहीं है। घर से ही काम करने की अनुमति दीजिए। मैं चौबीस घंटे ऑनलाइन रहूँगा। ऑफ़िस में रहकर जितना काम करूँगा, घर से उसका दुगना करूँगा। 

लेकिन कंपनी तैयार नहीं हो रही थी कि, नियम-क़ानून सभी के लिए एक समान हैं। कोई रास्ता न देख उसने कंपनी को ही लालच दे दिया कि, चाहें तो ग्रॉस सैलरी में से कटौती कर लें। 

कंपनी उससे भी आगे निकली, बोल दिया कि, फ़िफ़्टी परसेंट कटौती तो सभी कर्मचारियों की सैलरी में पहले ही की जा चुकी है। बड़े विचित्र ढंग से उसने तीस परसेंट पर काम करने के लिए फ़ाइनल ऑफ़र दिया। 

पति ने कहा, “यह तो सीधे-सीधे मेरी इंसल्ट है। ब्रेन की इंसल्ट करने के कारण ही अपना देश ब्रेनड्रेन का शिकार है।” 

पति को ज़्यादा परेशान देख कर पत्नी ने उसे दूसरी तरह से समझाया। उसने कहा, “कंपनी ने इंसल्ट नहीं की है। सारे एम्प्लॉयी से अलग तुम्हारे लिए स्पेशल व्यवस्था की है। वो फ़िफ़्टी परसेंट कटौती तो सभी की सैलरी में पहले ही कर चुके हैं। तुम्हारी बीस परसेंट जो और कम की है, वह तो न जाने से ही कवर हो रही है। कन्वेंस एक्सपेंसेज़, टाइम दोनों तो बचेंगे ही न। सबसे बड़ी बात कि इन्फ़ेक्शन से बचे रहेंगे।” 

पति ने बहुत ही आहत मन से अंततः पत्नी, कंपनी के सामने सरेन्डर कर दिया। कंपनी की शर्तों को सिर-आँखों पर रखकर काम शुरू कर दिया। पहले दिन से ही इतना काम कि उसे चौदह-पंद्रह घंटे का समय देना पड़ता। 

इसके लिए वह बार-बार पत्नी को दोष देता तो पत्नी तमाम तर्कों के साथ न सिर्फ़ इसे अपने पक्ष में हुआ एग्रीमेंट कहती, बल्कि उसकी सेवा भी ख़ूब करती, उसे किचन के सभी कामों से छुट्टी दे दी। किचन में घुसने तक न देती। 

रात को सोने से पहले उसकी पीठ, हाथों की मालिश भी करती। कई बार उसकी यह मालिश दोनों के बीच बहुत ही ख़ुशनुमा माहौल पैदा कर देती। ऐसा कि पति की सारी थकान पता नहीं कहाँ चली जाती। जितनी मालिश उनकी होती, उस से कहीं ज़्यादा वह पत्नी की ही कर डालते। 

ऑफ़िस का काम शुरू होने से जहाँ दोनों के बीच बोरियत कम हुई, वहीं कुकिंग चैनल वग़ैरह का सारा काम ठप्प हो गया। 

शाम के बाद का ज़्यादा समय बालकनी में लैपटॉप पर काम करते हुए बीतता। अब न्यूज़ पढ़, देख कर भी दोनों की टेंशन पहले की तरह नहीं बढ़ती थी। जबकि कोविड-१९ दुगुनी रफ़्तार से बढ़ रहा था। यह जैसे-जैसे बढ़ रहा था, वैसे-वैसे पत्नी का काढ़ा, गरारा, व्यायाम पर ध्यान ज़्यादा होता जा रहा था। 

काम कितना भी ज़्यादा हो, पति को लेकर सुबह-सुबह बालकनी में, धूप में आधे घंटे तक ज़रूर बैठती। जिससे कोविड-१९ से बचाव में सहायक विटामिन सी, डी आदि उसे प्राकृतिक रूप से मिल सके। 

पति उससे कहता कि, “अब यह सब कम करो, नीचे सेनिटाइज़ेशन इतना हो रहा है कि इतनी ऊँचाई पर कोरोना वायरस ज़्यादा नहीं आ सकता।” तो वह उसकी ऐसी कोई बात सुनती ही नहीं। बल्कि तुरंत ही भूकंप पर प्रश्न करती हुई बोलती, “लेकिन भूकंप तो बराबर आ रहा है। यह तो ऊँचाई पर ही ज़्यादा डैमेज करता है।” 

वह आगे कुछ बोले, कि पति ने उसके पहले ही उसके निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच में कसकर दबा लिया, और उस पर दबाव बढ़ाता ही गया। पत्नी दोनों हाथ ऊपर किए, आँखें बड़ी-बड़ी निकाले आऊँ उँ उँ करती रही। बड़ी देर तक दबाए रखने के बाद, उसने दाँतों के बीच से छोड़ कर, उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबा लिया। अब प्यार में मदहोश कर देने वाला दबाव था। और पत्नी ने छूटने का प्रयास बहुत हल्का कर दिया था। 

आख़िर पति ने ही बड़ी देर बाद छोड़ा तो उसने आह करके ज़बान से अपने निचले होंठ के उस हिस्से को सहलाना शुरू किया, जहाँ पर दाँतों का दबाव ज़्यादा था। फिर पति की आँखों में देखते हुए कहा, “क्या यार छुट्टी का दिन है, सब अपनी-अपनी बालकनी में बैठे हैं। देख कर क्या कहेंगे।” 

पति ने लम्बी गहरी साँस लेते हुए कहा कि, “सभी अपने-अपने पतियों से कहेंगी कि इसे कहते हैं पति-पत्नी, तुमने कभी इस तरह प्यार किया है।”

पत्नी बोली, “और जो बच्चे देख रहे होंगे वो?” 

“वो कहेंगे मम्मा-मम्मा, देखो अंकल-आंटी लवी-लवी कर रहे हैं। क्योंकि टीवी में लिप-लॉक किस देख-देखकर इतना तो सारे बच्चे जानते हैं कि, यह प्यार हो रहा है। कोई दाँत कटौअल नहीं हो रहा है।”

“वह तो ठीक है, लेकिन आज प्यार करने का यह टाइम, यही जगह क्यों सूझी, देखो कितनी तेज़ काटा है कि दाँतों के निशान बन गए लगते हैं।”

उसने अपने होंठ आगे फैलाते हुए कहा, तो पति ने देखा वहाँ पर वाक़ई गहरे लाल निशान पड़े हुए थे। उन्हें देखकर वह मसखरी करते हुए बोला, “डार्लिंग इसे प्यार का दंत-छत कहते हैं।”

“मालूम है, मालूम है। इसके आगे साहित्य को खींचने की आवश्यकता नहीं है। यह केवल प्यार नहीं, ग़ुस्से वाले प्यार का दंत-छत है। जिसमें पहले ग़ुस्सा ज़्यादा था। बाद में प्यार ही प्यार था। कुछ और नहीं। बात क्या है, सच बताओ न। टालो नहीं।” 

पत्नी ने बेहद प्यार से मनुहार किया, तो पति बोला, “एक शर्त पर बताऊँगा।”

पत्नी आश्चर्य व्यक्त करती हुई बोली, “शर्त पर!”

“हाँ शर्त पर।”

“अच्छा, तो शर्त क्या है वह बताओ।”

“वह नहीं बताऊँगा।”

पत्नी कुछ सेकेण्ड सोच कर बोली, “ठीक है, जो भी शर्त है, वह मुझे स्वीकार है। अब तो बोलो।”

पति ने कुछ देर तक उसे ग़ौर से देखने के बाद कहा, “तुमसे यह नहीं पूछूँगा कि तुम्हें मालूम है कि तुम क्या कर रही हो? जो भी कर रही हो, यह समझ कर कर रही हो कि तुम सब-कुछ सही कर रही हो। लेकिन मैं जो देख रहा हूँ, वह सब मुझे ग़लत दिख रहा है। 

“तुम अगर अपनी प्रेजेंट कंडीशन से तुरंत बाहर नहीं आई, तो किसी भयानक मानसिक समस्या को निरर्थक ही मोल ले लोगी। माना बड़ी गंभीर स्थिति है। लेकिन हर कोई सावधानियों के साथ काम तो कर ही रहा है। ठीक चल रहा है। 

“ख़तरा उन्हीं लोगों को ज़्यादा है, जो लापरवाही कर रहे हैं। लेकिन तुम जो कर रही हो वह कोविड-१९ के प्रति लापरवाही से भी ज़्यादा बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। तुम्हारी अति सावधानी ही तुम्हारी सबसे बड़ी समस्या बन गई है। 

“तुम जो कर रही हो उसे जानकर लोग हँसेंगे नहीं, बल्कि तुम्हें मेंटल बोलने लगेंगे। इतना ज़्यादा डर कि, पिछले दो महीने से तुम बिना डबल बैलून के तैयार नहीं होती कि, कहीं एक डैमेज हुआ तो तो दूसरा वर्क करेगा। मैं इस कंडीशन में प्रेग्नेंसी को लेकर एक परसेंट भी रिस्क नहीं लूँगी। अरे ऐसा रेयर ही होता है। 

“जैसे इतना ही काफ़ी नहीं था, अब तुम बॉर्डर पर चाइना की अतिक्रमण की कोशिश पर बोलती हो कि उससे एटॉमिक वार हो जाएगी। इसी चिंता में परेशान हो रही हो। अरे अब अपना देश भी उन्नीस सौ बासठ वाला लुँज-पुँज, पंगु देश नहीं है। भूसा भर देंगे चाइना के। 

“फिर आजकल युद्ध हथियारों से कम व्यापार से ज़्यादा लड़े जाते हैं। आज हथियार से युद्ध लड़ना मूर्खता कहलाती है। और कोई भी देश यह मूर्खता नहीं करना चाहता। हाँ रेअर मामलों की बात अलग है। 

“हम जो कर रहे हैं, इस बारे में मीडिया को एक पत्र चला जाए तो वो चार दिन इसी पर शोर मचाएँगे कि हम महीनों से घर से बाहर क़दम नहीं रख रहे हैं। 

“ऐसे ही कुछ दिन और रहे तो यह निश्चित मान लो कि, शरीर में जॉइंट्स की प्रॉब्लम पैदा हो सकती है। इस उम्र में ही आर्थ्राइटिस हो सकती है। अपंग हो सकते हैं। कम से कम नेचर को ही देखो। सीखो उससे। 

“लॉक-डाउन में जैसे ही प्रदूषण कम हुआ, उसने अपने को मज़बूत बना लिया। ओज़ोन लेयर के डैमेज सुधर गए। नदियाँ अपने आप साफ़ हो गईं। छह सौ किलोमीटर दूर से हिमालय की चोटियाँ दिखने लगी हैं। 

“पहले कभी इतना साफ़ चमकदार नीला आसमान देखा था, जितना अब देख रही हो। अरे लिटरेट ही नहीं एजुकेटेड भी हो। परिस्थितियों से डरना नहीं, सामना करना सीखो। लाइफ़ में नॉर्मल होना, जीना सीखो। 

“लोगों को देखो कि, अपनी चिंता न करके सब की मदद कर रहे हैं। खाना-पीना सब दे रहे हैं। दुनिया रुकने वालों के लिए नहीं है। देख नहीं रही हो, जो लोग डर कर अपने घरों को भागे थे, वो फिर हज़ारों की संख्या में औद्योगिक शहरों की ओर भाग रहे हैं। 

“मुंबई, जहाँ इस समय स्थिति बेहद भयानक है, वहाँ भी भारी संख्या में लोग वापस पहुँच रहे हैं। और यह अच्छी तरह समझ लो कि अगर हमें ज़िंदा रहना है, तो आसमान के नीचे, ज़मीन पर क़दम रखना ही होगा। हम ज़मीन पर रहकर ही ज़िंदा रह सकते हैं। अन्यथा नहीं। 

“इसलिए आज शाम से ही हम-दोनों टाइम नीचे टहलने चलेंगे। कोई सामान नहीं खरीदेंगे। साल-भर का सामान रखा है। लेकिन हरी सब्ज़ियाँ लेंगे। सारी सावधानियाँ भी बरतेंगे। बोलो तैयार हो कि नहीं।”

पत्नी अब-तक पति की आँखों में आँखें डाले, उसे ग़ौर से देखे और सुने जा रही थी। उसके चेहरे पर भावुकता दिख रही थी। वह बोली, “तुम सच कह रहे हो। मैं वाक़ई बहुत ग़लत कर रही हूँ। मैं यह सोच भी नहीं पाई थी कि, तुम मेरा इतना ध्यान रख रहे हो। इतनी माईन्यूटली मेरी केयर करते हो। यह तो एक हस्बैंड से बढ़कर फ़ादर जैसी केयर है। 

“सच में, मैं बहुत ग़लत डायरेक्शन में जा रही थी। परसों मंगल है। हम दोनों अपने सनातन देश की, सनातन संस्कृति के आस्था के प्रतीक, भगवान हनुमान की मूर्ति अमेरिका में स्थापित किए जाने को सेलिब्रेट करेंगे। 

“वह मूर्ति इस कोरोना वायरस काल में कर्नाटक से बनकर वहाँ गई है। उस दिन हम दिन-भर ग़रीबों में खाना बांटेंगे। इतना सारा सामान भरा पड़ा है। कम नहीं पड़ेगा। क्यों ठीक रहेगा न?” 

पत्नी ने पति की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो वह ध्यान से उसके होंठों को ही देखता रहा। इस पर उसने कुछ संशयात्मक भाव के साथ पूछा, “ऐसे क्या देख रहे हो?” 

पति ने बड़े अर्थ-भरे लहजे में कहा, “मेरी शर्त . . . शर्त पूरा करने का समय आ गया है।”

उसकी इतनी बात से पत्नी समझ गई कि, अब वह क्या करने वाला है। इसलिए बड़ी तेज़ी से हँसती हुई अंदर बेड-रूम की ओर भागी यह कहती हुई, “यहाँ नहीं, यहाँ नहीं . . . “

पति ने पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसके हाथ में कुर्ते का कोना आकर फ़िसल गया। वह बेड-रूम में उसके पीछे पहुँचा ही था कि, मोबाईल में रिंग होने लगी। दोनों की हँसी रुक गई। कॉल पति के बड़े भाई की थी। उसने रिसीव की। उधर की बातें सुनते ही वह कटे वृक्ष सा बेड पर धम्म से गिर गया। 

पत्नी भी यह सुनकर फफक कर रो पड़ी कि, उसके सबसे हँसमुख, सबसे छोटे देवर, अपनी कोविड-१९ रिपोर्ट पॉज़िटिव सुनकर इतना सदमे में आ गए कि, उनका हार्ट फ़ेल हो गया। उसको भूकंप सहित हर रिपोर्ट देने, हँसाने वाला प्यारा देवर दूर, बहुत दूर सितारों के बीच ग़ुम हो गया . . . 

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टिप्पणियाँ

Sarojini Pandey 2022/05/17 11:51 AM

कुछ पत्रिकाओं में 'रिपोर्ताज' शीर्षक से एक स्तंभ निकलता था। अभी पत्रिकाओं में होता है या नहीं मालूम नहीं। यह रचना मुझे कहानी से अधिक रिपोर्ताज की श्रेणी की लगती है।

shaily 2022/05/17 09:19 AM

कोरोना काल का सांगोपांग, जीवन्त चित्रण किया है। जानकारी बढ़ाती अच्छी कहानी.

मधु 2022/05/16 12:31 AM

साधुवाद। मुझे ख़ुद पर विशवास नहीं हो रहा कि लम्बी कहानी देखते ही...चाहे पुस्तक हो या इंटरनैट...उनका पन्ना झट से बदलने वाली मैं आज बिन रूके यह कहानी पढ़ती गई। लेखक बधाई के पात्र हैं, क्योंकि जो भी मेहनत और सचाई सहित रिसर्च कर लिखा गया, वह पूरी कहानी में स्पष्ट दिख रहा है। ऐसे-ऐसे मुद्दों को इस कहानी द्वारा पेश किया है कि इसे पढ़ते हुए दूर-दराज देशों में बैठे सैंकड़ों मुझ जैसे लोगों की आँखें ज़रूर फटी की फटी रह गई होंगी। सुमन जी का आभार जो उन्होंने अपने सम्पादकीय में इसका उल्लेख किया। काश, इस पर फ़िल्म बनाई जाए ताकि लॉकडाउन के सभी तथ्य/अफ़वाहें एक जगह पर एकत्रित रह कर आने वाली जैनरेशन के लिए ऐतिहासिक तौर पर मूल्यवान साबित हों।

Rajnandan Singh 2022/05/15 02:28 PM

अति रोचक कहानी। बधाई

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