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सन्नाटे में शनाख़्त

 

 

उसने अचानक ही उस पर घूँसे-लात बरसा कर, उसे बेड से नीचे धकेल दिया। टाइल्स लगे फ़र्श पर अकस्मात्‌ गिरने से उसके सिर में गहरी चोट आ गई है। ख़ून के धब्बे पड़ने लगे हैं। उसने पेट पर लात इतनी तेज़ मारी है कि वह दर्द से दोहरी हो गई है, दोनों घुटने पेट से जा लगे हैं, जिन्हें दोनों हाथों से जकड़े हुए वह कराहने लगी है। 

अभी तो क्या, बीते कई दिनों से कोई झगड़ा भी नहीं हुआ है, फिर उसने अचानक ही इस बुरी तरह क्यों पीटा, वह अचरज में पड़ गई है। उसकी समझ में नहीं आ रहा है कि अभी तक तो इतने प्यार से प्यार कर रहा था, प्यार पूरा होते ही अचानक इस पर कौन सा जिन्नात सवार हो गया। इस तरह मारा-पीटा तो बार-बार है, मगर बिस्तर पर प्यार ख़त्म होते ही, पहली बार ऐसा किया है। 

भद्दी-भद्दी गालियाँ देते हुए कह रहा है, “लोगों को अपना शजरा तो पता नहीं होता और तू मुझे रोज़-रोज़ पूरी क़ौम का शजरा बताती रहती है। यह सुनते-सुनते कान पक गए हैं, कि ख़ान मुस्लिमों का सरनेम नहीं है। 

“मंगोलिया के चंगेज ख़ान और उसके पोते कुबलई ख़ान, हलाकू ख़ान मुसलमान नहीं, तेंग्रे धर्म को मानने वाले थे। जो कि सनातन धर्म या उसी परिवार का हिस्सा है, हलाकू की बेगम ईसाई थी, उसने ता-उम्र कोशिश की, कि वह भी ईसाई बन जाए लेकिन वह मरते दम-तक नहीं बदला। 

“ये इतने शक्तिशाली थे कि दुनिया के तीस फीसद से ज़्यादा हिस्से पर हुकूमत करते थे, इन्होंने तब के इस्लामी ताक़त के सेंटर ईरान, ईराक़ को देखते-देखते इस क़द्र तबाह कर दिया था कि जिनके पास भी क़ूवत थी वे भाग-भाग कर भारत आ गए। चीन के भी बहुतेरे हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया था। 

“जब देखो, तब एक ही बात कि ये लोग जिस तेंग्रे धर्म को मानते थे, वह तंत्र या तांत्रिक का अपभ्रंश है, इसके भगवान शिव हैं, इन्हें ही सारे तेंग्री अपना भगवान मानते हैं। इसीलिए आज भी इनके मक़बरों, मंदिरों के आगे त्रिशूल और श्रृंगी ज़रूर बना रहता है। चंगेज़ ख़ान के मक़बरे पर भी बना हुआ है। 

“तेरी इन वाहियात बातों को सही मानूँ तो तौबा करता हूँ कि इतने बरसों से मैं कहने को तो मुसलमान लेकिन मन से एक क़ाफ़िर के साथ रह रहा हूँ, उसे अपनी बेगम बनाए हुए हूँ, जो हलाकू की ईसाई बेगम की तरह मुझे अपने मज़हब को बदलने के लिए ज़हनी तौर पर तैयार कर रही है। हर समय मेरे दिलो-दिमाग़ में एक ही बात भर-भर कर, मुझे भी अपना ही पानी चढ़ा कर, अपनी तरह क़ाफ़िर बनाने पर तुली हुई है। 

“मैं तेरी इन वाहियात बातों को इतने दिन सुनता रहा, यह भी मेरे लिए एक गुनाह है, लेकिन मेरा यह सारा गुनाह मु'आफ़ हो जाएगा, जब बात इस पैमाने पर तौली जाएगी कि मैंने एक क़ाफ़िर को इतने दिनों तक अपनी लौंडी बना कर अपने पैरों तले रखा, जब जैसे चाहा, वैसे रौंदा।” 

भयानक दर्द के बावजूद तबरेज़ की बातें वाज़िदा के तन-बदन में बबूल के भयंकर काँटों की तरह चुभती चली गई हैं। आँखों के सामने अँधेरा-सा छा गया है। तबरेज़ उसे लगातार गालियाँ देने, गंदी-गंदी बातें कहने के बाद दाँत पीसते हुए कह रहा है, “मैं तेरी जैसी क़ाफ़िर को अब और अपने साथ नहीं रख सकता, क्योंकि तेरा शैतानी दिमाग़ मुझे मज़हब से भटका सकता है, इसलिए मैं अभी इसी वक़्त तुझे तलाक़ देता हूँ, ‘तलाक़ तलाक़ तलाक़’।” 

यह शब्द तीनों बार उसके कानों में गर्म सलाख़ों की तरह भीतर तक घुसते चले गए हैं, उनकी भयानक तपिश ने उसके पूरे दिमाग़ को जलाकर ख़ाक कर दिया है। वह बेहोश हो गई है। 

अप्रैल महीने का पहला हफ़्ता है, आसमान सितारों से भरा है, फिर भी अँधेरे की ही चादर हर तरफ़ तनी हुई है, टेम्प्रेचर अब भी तीस-बत्तीस डिग्री बना हुआ है, दिन-भर चालीस-बयालीस डिग्री टेम्प्रेचर में तपी कंक्रीट फ़र्श पर वह बिना कपड़ों के ही पड़ी हुई थी। उसके ऊपर, उसके कपड़े ऐसे पड़े थे, जैसे किसी ने उन्हें फेंक कर, उसे मारा हो। गर्म हवा, तपती फ़र्श उसकी नाज़ुक नर्म चमड़ी को बराबर झुलसाए जा रही थी, जिससे आख़िर उसे होश आ गया। 

वह बाहर बालकनी में बिना कपड़ों के बेपर्दा ही पड़ी है, यह अहसास होते ही उसने जल्दी-जल्दी बैठे-बैठे ही कपड़े पहनते हुए चारों तरफ़ नज़र डाली कि कहीं से कोई देख तो नहीं रहा है। हर तरफ़ अँधेरा, सन्नाटा देख कर वह इस ओर से थोड़ा मुतमईन हुई कि इस स्याह रात में शायद ही उसे कोई देख पाया होगा। 

फिर भी उसके में मन चोर बैठा हुआ है, घबराहट हो रही है कि एक सलवार-कुर्ता तक उसके तन पर नहीं था, आजकल जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगे रहते हैं, जब इस गंदे इंसान ने मुझे बाहर ऐसे बिना कपड़ों के फेंका, तब किसी ने देख तो नहीं लिया, मैं किसी सीसीटीवी कैमरे में बेपर्दा हालत में रिकॉर्ड तो नहीं हो गई। 

उसने कहीं वह विडिओ क्लिप वॉयरल कर दिया तो मैं कहीं मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहूँगी। लोग कहेंगे कितनी बेशर्म बे-ग़ैरत औरत है, ऐसे तो हिजाब पहनकर चलती है, गर्मीं की तपिश ज़रा बढ़ी क्या, बेहया खुले में कैसी नंगी पड़ी हुई है, ज़रूर शराब-वराब पी रखी होगी। 

गर्मीं के मारे उसका बदन पसीना-पसीना हो रहा है, जहाँ पड़ी थी वहाँ का फ़र्श पर उसके हाथों को नम-सा महसूस हुआ, हलक़ बुरी तरह सूख रहा है।’तलाक़’ शब्द उसके कानों में अब भी किसी देशी बम की तरह विस्फोट पर विस्फोट किए जा रहे हैं, पूरे बदन में काँटों की तरह अब और ज़्यादा चुभ रहे हैं। 

इन काँटों ने उसे पहले वाले ख़ाविंद और वहाँ कई-कई बार हुए हलाला, ज़ुल्मो-सितम की याद दिला दी है। और मन में यह ख़ौफ़ धड़कनें बढ़ा रहा है कि अब अगर इसे छोड़ना नहीं चाहा तो इससे मिन्नतें करनी पड़ेंगी, फिर से मुझे दौर-ए-हलाला से गुज़रना होगा, अपनी आबरू किसी ग़ैर मर्द से रौंदवानी होगी। कहने को शर्म-गाह, और शौहर छूट न पाए या वही फिर से अपनाना चाहे, तो इसके लिए इंतज़ाम ऐसा कि उसे कितनों के सामने नुमाया करना पड़े, इसका कुछ पता ही नहीं। 

वह कुछ समझ नहीं पा रही है कि अब क्या करे, कहाँ जाए, किसके पास जाए, इस बेगाने शहर में कौन है जो उसका मददगार होगा। सोच यह भी रही है कि कल ऑफ़िस कैसे जाएगी, चेहरे पर भी इतना मारा है, सिर, होंठ फट गए हैं, आँखें सूज गई हैं। कई दिन तो ठीक होने में लग जाएँगे। 

इन सबसे पहले तो यह कि रहूँगी कहाँ, अभी तो इस बालकनी में हूँ, सवेरे तो यह जाहिल आदमी यहाँ भी नहीं रुकने देगा। और क्या अभी रात-भर मैं यूँ ही बाहर ही पड़ी रहूँगी, अभी तो तक़रीबन पूरी ही रात बाक़ी है। गर्मीं इतनी बेदर्द हुई जा रही है, इस प्यास, पसीने का क्या करूँ, सवेरे तक बिना पानी के तो डिहाइड्रेशन हो जाएगा, तबियत और बदतरीन हो जाएगी। सबसे अहम मसला तो यह कि सिर्फ़ इन दो कपड़ों में इस तरह बाहर कैसे रह सकती हूँ? 

घर भी इस वीराने में ले रखा है, एक अपार्टमेंट यहाँ तो दूसरा कहीं और, अस्सी परसेंट से ज़्यादा ख़ाली पड़े हैं। न किसी को कोई जानने वाला न कोई किसी से मिलने वाला कि किसी से मदद माँगूँ। सड़क के नाम पर टूटा-फूटा इंटरलॉकिंग ईंटों का खड़ंजा। मकान लेते समय बार-बार कह रही थी कि ‘जब इतना पैसा लग रहा है तो दूर वीराने में बनी उजाड़ सी सोसाइटी में क्यों ले रहे हो।’

मेरे इतने सारे कपड़े, सारा सामान सब तो अंदर ही बंद हैं। जाहिल ने इतना भी नहीं समझा कि औरतों को भी ऊपरी कपड़ों के अंदर भी कुछ और पहनना ज़रूरी होता है। 

वह बालकनी की रेलिंग पकड़ कर खड़ी हुई, किसी आस में नज़रें इधर-उधर दौड़ाईं, लेकिन उसे नीचे सड़क या किसी भी फ़्लैट में कोई हलचल नहीं दिखी। 

वह सोच रही है कि उस पर भी न जाने कैसे शैतान सवार हो गया था, जो पहले एक जाहिल मरदूद के चंगुल से निकलने के बाद, फिर वैसे ही इस दूसरे जाहिल के चंगुल में फँस गई। पहले वाले के साथ कैसे-कैसे तजुर्बे होने के बाद भी क्या हो गया था मुझे जो मैं इस रँगे सियार, इसके घर वालों के रँगे चेहरे पहचान नहीं पाई। 

सड़कों, फ़्लैटों में भले ही कोई हलचल नहीं है लेकिन उसके दिमाग़ में बवंडर ज़ोर पकड़ता जा रहा है। मन ही मन कह रही है, मगर करती भी तो क्या, पहले वाले को तो पहचान लिया था, अब्बू-अम्मी से मना किया था कि मुझे इसके हवाले मत करो। मगर सब के सब सिर पर सवार हो गए थे कि नहीं, नेक परिवार है, वो नेक बंदा है। 

निकाह करते-करते मैंने कहा था, ‘अम्मी न जाने क्यों, मेरा दिल कहता है कि यह आदमी नेक बंदा नहीं है। हमारा निकाह ज़्यादा दिन टिकेगा नहीं, अगर टिकेगा भी तो तब, जब मैं इन सब की लौंडी बनकर रहूँगी और तुम यह भी समझ लो कि यह आदमी मेरी दो-तीन सौतनें भी ले आएगा, मुझसे उनकी भी ग़ुलामी करवाएगा, नहीं करूँगी तो तलाक़ देकर घर से बाहर निकाल देगा।’

मगर अम्मी-अब्बू क्या, सारे भाई-बहनों और निकाह कराने वाले ख़ालू पर जैसे उसी से मेरा निकाह कराने का शैतान सवार था। मेरी सारी बातें तो सही नहीं निकलीं, मेरे रहते तो वह सौतन लेकर नहीं आया, मुझे अड़ंगा समझता रहा, आख़िर सौतन लेकर आ सके, इसके लिए मुझे तीसरी बार तलाक़ देकर हमेशा के लिए रास्ता ख़ूब साफ़ कर लिया। 

मैं भी तब उसे हमेशा के लिए थूक कर चल दी कि अब ये रखना भी चाहेगा तो भी नहीं रुकूँगी, अब मैं तीसरी बार हलाला के लिए अपना बदन, अपनी शर्मगाह किसी गैर-मर्द के सामने नहीं उघाड़ूँगी। मुझे यह एकदम सही फ़ैसला घरवालों की ज़िद भी ठुकरा कर पहले तलाक़ पर ही लेना चाहिए था, आबरू अपनी किसी के हवाले करने के लिए किसी भी सूरत में तैयार नहीं होना चाहिए था। 

चोटों के कारण वह ज़्यादा देर खड़ी नहीं रह पाई और ज़मीन पर ही बैठ गई है, लेकिन बवंडर जस का तस चल रहा है। वह क़रीब-क़रीब बुदबुदाई, मुझे एक बेगम का दर्जा तो उसने पहली रात को ही नहीं दिया था। कहने को सुहागरात थी, लेकिन शैतान रात-भर ऐसे जानवरों की तरह नोचता-खसोटता रहा, जैसे कोई वहशी दरिंदा किसी का ज़िना कर रहा हो, ज़िना कर-कर के ही उसकी हत्या करना चाहता हो। 

कितनी बुरी तरह चोटिल हो गई थी, सवेरा होते-होते जब मेरी जान पर बन आई तो शैतान को लगा कि कहीं मर-मरा गई तो जेल जाना पड़ेगा, इसलिए घरवालों से कहा कि यह ग़ुस्लख़ाने में फिसल कर गिर गई, वहाँ रखा कोई सामान इसको ज़ख़्मी कर गया। 

और जाहिलों का पूरा कुनबा सब-कुछ जानते हुए भी मुझ पर ही टूट पड़ा। एक औरत, ऊपर से सास, जो असल में दोनों ही के नाम पर कलंक थी, अपने साहबज़ादे के कुकर्म, वहशीपन को कुछ कहने की बजाय बेग़ैरतों की तरह मेरी ही जाँच कर डाली। मुझको ही शर्मों-हया की दुश्मन कहते हुए कौन-कौन सी गालियाँ नहीं दीं, क्या-क्या नहीं कहा। अभी भी गूँजती है कानों उसकी बेशर्मी भरी यह बात कि ‘आग लगे तेरी ऐसी शर्मगाह को।’

जब बेहोश हो गई, तो उसको भी पुलिस का डर सताने लगा, तब जाकर मेरा इलाज कराया। जब-तक मैं ठीक नहीं हो गई, मुझे अब्बू-अम्मी से या तो बात ही नहीं करने देती थी, या बग़ल में ऐसे बैठी रहती थी जैसे गर्दन पर छूरी रखे हो, जिससे मैं एक लफ़्ज़ सच न बोल पाऊँ। 

और मेरे घर वाले भी! अल्लाह ता'ला से यही दुआ है कि सभी वालिदैन को अपनी बेटियों की भी बात सुनने-समझने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाएँ। जब कई दिन बाद आए तो मेरे चेहरे की उदासी, रोज़-रोज़ के ज़ख़्मों से बदली-बदली सी मेरी चाल का अंदाज़ा तक नहीं लगा पाए या फिर यह सोच कर अनजान बने रहे कि निकाह कर दिया, अब ये जाने, इसका मुक़द्दर जाने, हमें क्या लेना-देना। 

निकाह से पहले मैं कितना कह रही थी कि इतनी जल्दबाज़ी न करो, मुझे नौकरी कर लेने दो, आख़िर तुम लोगों ने इतना पढ़ाया है, मैं पूरी तैयारी करके नौकरी के लिए बार-बार एग्ज़ाम दे रही हूँ, आज नहीं तो कल, कहीं न कहीं मिल ही जाएगी। लेकिन कभी अल्लाह की मर्ज़ी बताते, तो कभी कहते कि ‘कौम में बदनामी हो रही है कि इतनी उम्र हो गई, निकाह क्यों नहीं हो रहा है। एक तो सारे रीति-रिवाज़ों को दरकिनार कर तुझे इतना पढ़ा रही हूँ, उम्र निकली जा रही है फिर भी निकाह नहीं कर रही हूँ।’

मेरी एक सुनने को कौन कहे, हर साँस पर दबाव डालते रहे कि ‘बस बहुत हो गई पढ़ाई, नौकरी की तैयारी। अब पहले निकाह, उसके बाद जो तेरा शौहर चाहे, तो करती रहना नौकरी।’ आख़िर मुझे जहन्नुम में भेजकर ही माने। जिस औरत का शौहर उससे पहली रात से ही जानवरों के जैसा व्यवहार करे, वह पढ़ाई-लिखाई, नौकरी की बात करता? ऐसी जगह जहन्नुम नहीं तो और क्या होगी? 

जहन्नुम ही थी तभी तो तीन महीने बाद ही तलाक़ दे दिया, घर से निकाल दिया। जिस मायके को अपना घर समझकर पहुँची कि चलो जहन्नुम से फ़ुर्सत मिली, अब अब्बू-अम्मी भाई-बहनों सब के साथ रहूँगी, नौकरी करूँगी। अब किसी के साथ निकाह नहीं करूँगी। दुनिया में बहुत सी औरतें हैं जो अकेले जीवन बिता रही हैं, मैं भी अकेली रह लूँगी। 

इतनी क़ाबिल तो हूँ ही कि आज नहीं तो कल नौकरी भी मिल ही जाएगी। घर वालों पर भी कोई बोझ नहीं रहूँगी बल्कि घर के बाक़ी ख़र्चों को भी उठाऊँगी। जब पैसा मिलेगा तो घर के सारे लोग भी और ज़्यादा ख़ुश रहेंगे। लेकिन जब सिर पर शैतान सवार हो तो सही बात भी ग़लत ही नहीं, ज़हर भी लगती है। तो आख़िर वो समझते कैसे? मुक़द्दर में तो जहन्नुम में फिर लौटना लिखा था। 

उसका हलक़ सूखता ही जा रहा है, तपता फ़र्श पैरों, नितम्बों को झुलसा रहा है, फिर भी बवंडर थम नहीं रहा, वह ग़ुस्से से भरती हुई सोच रही है, जब तलाक़ के बाद मेहर वापसी की बात आयी तो ससुराल के नाम पर कलंक बदनुमा धब्बे चले आए कि तैश में ग़लती हो गई, इसे घर ले जाने के लिए तैयार हैं। उन कुछ दिनों में ही जो जहन्नुम वहाँ देखा, जिया था उसके बाद वहाँ जाना ही नहीं चाहती थी, लेकिन घरवाले उनके आने भर से सजदे में ऐसे झुक गए कि ज़बरदस्ती ही नहीं, एक तरह से धक्के मार कर मुझे फिर उस ज़ालिम के पास भेज दिया। 

और उन ज़ालिमों के घर में किसी को भी तक़रीबन मेरी आधी उम्र के देवर से हलाला कराने में शर्म नहीं आई कि कम से कम उम्र का ही फ़ासला देख लेते, या कि वह अभी एक लड़का ही है, मैं कहाँ अठाइस-उन्तीस बरस की औरत और वो एक सत्रह बरस का लड़का। 

लेकिन शैतानों के ख़ानदान में तो बच्चा हो या बूढ़ा, लड़का हो या जवान, लड़की हो या औरत, होंगे तो सब शैतान ही न, तो उस सत्रह साला शैतान ने भी पहली रात वाली तकलीफ़ से कहीं कम तकलीफ़ नहीं दी थी। और मैं भी मूर्ख जाहिल तब भी मन ही मन ख़ुद को तसल्ली दे रही थी कि अब इस शौहर को अक़्ल आ जाएगी कि जिसको वह हलाला के बाद फिर अपनी बेगम बनाएगा वो एक और मर्द के सामने बेपर्दा हो चुकी है, उसके बदन, शर्म-गाह को कोई और भी रौंद चुका है। ना-समझी में भटक कर तलाक़ दिया होगा, अब अपने शौहर होने का मुकम्मल फ़र्ज़ निभाएगा . . . बवंडर थमने का नाम नहीं ले रहा है और उसकी आँखों से गिर रहे आँसू उस पसीने निकालती गर्मीं में भी उसे गालों पर गुनगुने से लग रहे हैं। 

उसे रह-रहकर पछतावा हो रहा है कि वह उस जहन्नुम से निकलने के बाद नौकरी करते हुए भी, उससे बड़े इस दूसरे जल्लाद के चक्कर में कैसे पड़ गई, उसकी आँखें एक और शैतान को पहचानने में धोखा कैसे खा गईं। 

बढ़ती रात के साथ उसे गर्मीं कम होने की बजाय और बढ़ती महसूस हो रही है। उस अँधेरे में भी उसे अहसास हो रहा है कि सिर से ख़ून अब भी रिस रहा है। जब गर्मीं, प्यास, चोट से हो रही पीड़ा बर्दाश्त करनी मुश्किल हो गई, ग़ुस्सा बहुत भर गया तो वह उठ कर दरवाज़े पर दस्तक दे रही है। 

सोचा उससे कहे कि कम से कम मुझे पूरे कपड़े पहनने दो, पानी लेने दो, ख़ून बह रहा है कुछ मरहम-पट्टी कर लेने दो, और यह भी ध्यान दो कि बालकनी में कोई वॉश-रूम नहीं है। बस इतना कर दो तो मैं रात बालकनी में ही बिता लूँगी, बाक़ी बातों का हिसाब सवेरे करूँगी, आख़िर इस फ़्लैट में मेरा भी हिस्सा है। ख़रीदते समय मैंने अपनी पाँच साल की पूरी कमाई लगा दी थी। सोचा यह भी कि जब इसने तलाक़ दे ही दिया है, तो मेरा पैसा भी वापस करे और मेहर भी। 

उसने दरवाज़े पर कई बार दस्तक दी लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला। दरवाज़ा नहीं खुला। इससे ज़िद में आकर उसने बार-बार कॉल-बेल बजानी शुरू कर दी तो आख़िर वह अचानक ही गालियाँ देते हुए दरवाज़ा खोल कर सामने आया और उसके बाल पकड़ कर खींचते हुए कहा, “अभी तक तू यहाँ क्यों बनी हुई है? अब तेरा यहाँ कुछ नहीं है, जहाँ मरना है जाकर मर, तुरंत चली जा यहाँ से नहीं तो अभी उठाकर नीचे फेंक दूँगा।”

दुर्योग से चोट वाली जगह के ही बाल खिंचने से, दर्द से वह बिलबिला उठी है। उसका भी ख़ून खौल उठा है, उसने भी मन ही मन कहा, ताक़त में तुमसे कम मैं भी नहीं हूँ, नीचे फेंकोगे तो अकेले नहीं गिरूँगी, साथ में तुझको भी लेकर गिरूँगी। अपनी चोटों की परवाह किए बिना वह तुरंत ही मुक़ाबला करती हुई कह रही है, “तुमने मुझे तलाक़ दे दिया है, अब मैं तुम्हारी बेगम नहीं हूँ कि तुम मुझ पर हाथ उठाओगे और मैं चुप रहूँगी। 

इस मकान में पैसा मेरा भी लगा है, अंदर आधा से ज़्यादा सामान मेरा है, मेरी पर्सनल चीज़ें हैं। उस पर पूरा हक़ मेरा है, और मुझे अब अपना हक़ लेना आ गया है। मैं अपना हक़ लिए बिना यहाँ से जाने वाली नहीं। तुम इस बालकनी की बात कर रहे हो, मैं इस मकान के अंदर रहूँगी, देखती हूँ तुम मुझे कैसे रोकते हो।”

उसकी बातों, जबर्दस्त प्रतिरोध से तबरेज़ हक्का-बक्का हो गया, उसका ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया है। उसने ख़्वाबों में भी नहीं सोचा था कि उसकी हिम्मत इस क़द्र बढ़ जाएगी, वह कभी इतना बोलेगी ही नहीं बल्कि हाथ भी उठाएगी। उसने तुरंत सोचा कि इससे पहले कि ‘यह खोपड़ी पर सवार हो, यही समय अच्छा है कि इसे अंदर ले चल कर, इतनी क़ायदे से कुटाई कर दूँ कि इसकी रूह भी काँप उठे, और जो पैसों, सामान का हिसाब माँग रही है, उसे भूल कर अपनी जान बचाकर इसी समय भाग जाए।’

यह सोचते ही उसने उसे अंदर आने का रास्ता देते हुए कहा, “ठीक है, आओ इसी समय क़ायदे से हिसाब कर ही लेते हैं।”

अंदर पहुँचते ही उसने दरवाज़ा बंद कर दिया। उसे लेकर फ़्लैट के भीतर वाले कमरे में पहुँच कर वहाँ भी दरवाज़ा बंद कर दिया। वाज़िदा मना करती रही, लेकिन उसने उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। वह अंदर ही अंदर घबरा रही है कि इस कमरे में यह हमेशा एक तमंचा और चॉपर भी रखता है, कहीं यह यहाँ मेरी हत्या करने के इरादे से तो लेकर नहीं आया है। 

लेकिन फिर तुरंत ही हिम्मत कर सोच रही है कि ‘इतनी आसानी से तो अब यह मुझ पर हाथ नहीं उठा पाएगा।’ उसने तुरंत ही आसपास पड़ी उन चीज़ों पर एक नज़र दौड़ाई, जिन्हें वह ख़ुद पर हमला होने पर, अपने बचाव के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल कर सके।

इसके आगे वह कुछ सोच-समझ पाती कि तबरेज़ उस पर टूट पड़ा, लेकिन वह तो पहले से ही तैयार थी इसलिए तबरेज़ का हमला सफल नहीं हुआ, बल्कि वाज़िदा ने जिस स्टील के जग पर पहले से ही अपनी सुरक्षा के लिए निगाह रखी हुई थी, उसी से उसके सिर पर ताबड़-तोड़ हमला कर दिया है। 

वह ऐसा भी कर सकती है, यह तबरेज़ के ख़्वाब में भी नहीं था, इसलिए वह थोड़ा लापरवाह था, और सिर, नाक पर बुरी तरह चोट खा गया है, ख़ून बहने लगा है। मगर बड़ी जल्दी ही उसने ख़ुद को सँभाल लिया है, और बेड पर पड़ा तकिया उठाकर ढाल की तरह इस्तेमाल करते हुए, उसको पकड़ने के लिए, उसकी तरफ़ बढ़ रहा है, लेकिन वह भी पीछे हटती हुई, जो भी सामान हाथ लग रहा है, उसे फेंक-फेंक कर मार रही है। 

अंततः तबरेज़ ने उसे दबोच ही लिया है, और दोनों गुत्थम-गुत्था हो गए हैं, उठा-पटक, लात-घूँसे, दाँत काटने से लेकर बाल खींचने तक पूरे ज़ोरों से चल रहा है, बड़ी बात यह कि वह तबरेज़ से कमज़ोर नहीं पड़ रही है। 

एकाएक बदले उसके इस रूप से हक्का-बक्का तबरेज़ को कई गहरी चोटें लग गई हैं। वह मज़बूत होने के बावजूद वाज़िदा के अति उत्साह, भयानक ग़ुस्से, आक्रामकता के आगे बीस नहीं उन्नीस पड़ने लगा है। 

फिर भी वाज़िदा ने सोचा कि इस तरह मार-पीट करते-करते या तो यह मर जाएगा या मैं ही मर जाऊँगी। यहाँ चीखने-चिल्लाने से भी कोई फ़ायदा नहीं है, दूर-दूर तक कोई सुनने वाला नहीं है। 

यह सोचकर उसने मौक़ा मिलते ही जान-बूझकर उसकी नाक पर ही इतना तेज़ मारा है कि वह दोनों हाथों से चेहरा पकड़ कर बैठ गया है, और इसी बीच उसने चार्जिंग में लगे तबरेज़ के मोबाइल से ही पुलिस को फोन कर दिया है। 

चीख-चीख कर रिक्वेस्ट कर रही है कि ‘जल्दी आइये, नहीं तो मेरा एक्स हस्बेंड मुझे मार डालेगा।’ उसने फोन काटा नहीं है, ऐड्रेस बताती हुई अपनी बात दोहराती जा रही है। पुलिस का नाम सुनते ही तबरेज़ सन्नाटे में आ गया है। वह तुरंत उठकर उसकी ओर लपका, लेकिन वह फोन लेकर बेड के चारों तरफ़ इधर से उधर भाग रही है, चिल्ला रही है, पुलिस वालों को जल्दी आने को कह रही है, फोन का स्पीकर भी ऑन किया हुआ है जिससे तबरेज़ भी सुने। उधर से पुलिस की आवाज़ आ रही है कि हम जल्दी ही पहुँच रहे हैं, आप घबराइए नहीं . . .

ख़ून से लथपथ तबरेज़ को अब कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करे, यहाँ से भाग निकले या फिर . . . उसके शातिर दिमाग़ में वाज़िदा को ही फँसाने की एक तरकीब उभरने लगी है कि ख़ून से लथपथ तो मैं भी हूँ। पुलिस को बताऊँगा कि यह मेरी हत्या करना चाहती थी, मैंने अपने को बचाने की कोशिश की, उसी कोशिश में यह चोट खा गई है।

दिमाग़ में इसी तरकीब को और माँजता हुआ वह एकदम पस्त हो बेड पर बैठ गया है, भागने की नहीं सोच रहा है। उसकी नाक पर चोट ज़्यादा गहरी लगी है। ख़ून बहना बंद ही नहीं हो रहा है। वह अब भी हैरान है कि इसके पास इतनी ताक़त और हिम्मत कहाँ से आ गई। 

वाज़िदा का भी ग़ुस्सा उसकी बातों को सोच-सोच कर अब भी सातवें आसमान पर ही है। उसका मन कर रहा है कि उसके उन हाथ-पैरों को तोड़ डाले जिससे उसने जानवरों की तरह उसे मार कर बेड से नीचे धकेल दिया था। उसकी उस ज़ुबान को काट ले जिससे गंदी-गंदी गालियाँ दीं, लौंडी कहा। 

लेकिन वह ख़ुद भी बहुत चोटें खा चुकी है, इसलिए उसे और पीटने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। मन में उसे तमाम अपशब्द कहती हुई सोच रही है कि ‘अब मैं इसे जेल भिजवाए बिना नहीं रहूँगी। इसने मुझे अपनी ज़िन्दगी से निकाला और इस फ़्लैट से बेदख़ल करने की कोशिश की है, जिसमें पैसा मेरा भी लगा हुआ है।’ 

इसके काले जहरबुझे दिल में मेरे लिए इतनी गहरी नफ़रत है, मुझे यह ज़रा भी मालूम होता तो मैं ख़ुद ही, इसे ‘खुला’ (तलाक़) देकर ठोकर मार देती। इसको भी अपने जीवन से वैसे ही निकाल फेंकती जैसे मछली खाते समय काँटों को निकाल फेंकती हूँ। 

दोनों ही बेड के एक-एक कोने पर सावधानी से, एक दूसरे पर नज़र रखते हुए पुलिस के आने का इंतज़ार कर रहे हैं। पुलिस बराबर फोन पर बात कर रही है, कह रही है कि ‘हम पहुँच रहे हैं . . .’ और उसके आते ही वाज़िदा ने लपक कर दरवाज़ा खोल दिया है। पता नहीं उसे ख़्याल नहीं रहा या कि उसने जानबूझकर पुलिस को यह दिखाने के लिए कि उसे किस बुरी तरह मारा-पीटा गया है, अपने तार-तार हो गए कपड़ों की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया। 

उसे डर यह भी रहा होगा कि अगर वह फटे कपड़े उतारकर दूसरे पहनने लगेगी तो इस बीच तबरेज़ कहीं तमंचा निकालकर उसे गोली न मार दे। लेकिन पुलिस को देखते ही पहले से ही एकदम पस्त हो चुका तबरेज़ ऐसा ड्रामा करने लगा है, जैसे कि वह बेहोश हो गया है। 

दोनों को ख़ून से लथपथ देखकर पुलिस समझ गई है कि घर में बराबर के लड़ाकों के बीच में ख़ूब जम के संघर्ष हुआ है। वह दोनों को लेकर थाने चल दी। इसके पहले वाज़िदा को तार-तार हो रहे सलवार कुर्ता को बदल कर दूसरा पहनने का समय दे दिया। 

बड़ी दूर की सोच कर उसने जान-लेवा संघर्ष की गाथा कहते ख़ून से सने उस सलवार कुर्ते को पॉलिथीन में करके अलमारी में बंद कर दिया। यहाँ तक कि घर के बाहर ताला लगा कर उसकी चाबी अपने ही पास रख ली, तबरेज़ उससे लेना चाहता था लेकिन उसने नहीं दिया। 

पुलिस के होने के कारण तबरेज़ कुछ बोल नहीं सका। बिना हिज़ाब के ही, उसे बाहर चलते देख कर भी, उसे आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि उसकी बग़ावत किसी भी सीमा तक पहुँच सकती है, इसका अंदाज़ा उसे उसके हमलों से बख़ूबी हो गया है। उसने मन ही मन यह ज़रूर कहा, काफ़िर कहीं की, तू काफ़िर न होती तो बिना हिज़ाब के ऐसे न चलती। 

पुलिस उन्हें लेकर थाने पहुँची तो वहाँ तबरेज़ आश्चर्यजनक ढंग से एकदम शांत हो गया और मियाँ-बीवी के बीच का झगड़ा बताते हुए उनसे मामले को ख़त्म करने के लिए रिक्वेस्ट की, लेकिन वाज़िदा तुरंत पूरा विरोध करती हुई कह रही है, “यह झूठ बोल रहा है, यहाँ से निकलते ही ये मुझे मार डालेगा। मैं इसके साथ इसलिए भी नहीं जा सकती क्योंकि ये मुझे तलाक़ दे चुका है। अब मेरा हलाला कराए बिना यह मुझे अपना ही नहीं सकता। यह कहेगा भी, तो भी मैं नहीं जाऊँगी क्योंकि मज़हब इसे इसकी इजाज़त ही नहीं देता, आप इसी से पूछ लीजिए, यह मेरा हलाला कराए बिना मुझे अपना लेगा?” 

पुलिस के पूछने पर तबरेज़ ने जो कहा उससे वाज़िदा की आँखें आश्चर्य से फैल गईं हैं। वह अचरजभरी नज़रों से उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर रही है। उसे ऐसे अचरज में पड़ा देखकर पुलिस ने उससे पूछा, “बताइए आपका क्या कहना है? ये अपनी ग़लतियों की माफ़ी माँगते हुए आपको अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हैं।” 

यह सुनते ही वह जैसे नींद से जागती हुई कह रही, “मुझे इसकी एक भी बात पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है। यह एक शातिर कट्टर मज़हबी आदमी है। मज़हब के उसूलों की आड़ लेकर, तीन तलाक़ क़ानून में सख़्ती से मनाही के बावजूद जिस बीवी को तलाक़-ए-बिद्दत दे चुका है, उसका हलाला कराए बिना उसे कैसे अपना लेगा? इसके पीछे मुझे इसकी कोई गहरी साज़िश नज़र आ रही है।”

यह सुनते ही तबरेज़ कह रहा है, “अगर तुम कहोगी तो हलाला भी करवा देंगे, लेकिन अब यह सब बंद करो, घर चलो।” 

वाज़िदा को उसकी बात पर ज़र्रा भर भी यक़ीन नहीं हुआ। उसके दिमाग़ में वह तमंचा और चॉपर फिर आ गए जो तबरेज़ ने घर में छुपा रखा है। वह सोच रही है कि यह इतनी आसानी से सारी बातों के लिए हाँ-हाँ किए जा रहा है, ज़रूर इसके मन में गहरी साज़िश है, यह घर पहुँचते ही मुझे गोली मार देगा और अगर ऐसा नहीं भी हो तो भी अब मैं एक पल को भी इसके साथ नहीं रहूँगी। 

जिसके मन में मेरे लिए यह ज़हर भरा हुआ है कि मैं एक काफ़िर हूँ और इसने मुझे अब-तक अपनी लौंडी बनाकर रखा, यह कर के सवाब का काम किया है, काफ़िर को मारना फ़र्ज़ है, ऐसी सोच से भरा आदमी मुझे अब मौक़ा मिलते ही एक मिनट को भी ज़िन्दा कहाँ छोड़ेगा। 

उसने तुरंत ही कहा, “नहीं, तुम्हारे साथ बिलकुल नहीं चलूँगी।”

पूरी सख़्ती से तबरेज़ को मना करने के बाद वह पुलिस ऑफ़िसर से मुख़ातिब हो कह रही है, “सर यह सरासर सफ़ेद झूठ बोल रहा है, आप लोग इसकी साज़िश को समझने की कोशिश कीजिए। यह किसी भी तरह से एक बार घर ले चलना चाहता है, यह घर पहुँचते ही निश्चित ही मुझे गोली मार देगा, मेरा सिर तन से जुदा कर देगा। घर में तमंचा और बड़ा सा चॉपर छुपा कर रखा हुआ है।” यह सुनते ही ऑफ़िसर के कान खड़े हो गए हैं। 

तबरेज़ एकदम हक्का-बक्का उसे देखने लगा है। उसे यक़ीन हो गया है कि अब बचना मुमकिन नहीं। उसके चेहरे का रंग एकदम उड़ गया है। वाज़िदा पूरा ज़ोर देकर पुलिस ऑफ़िसर से कह रही है, “मुझे इसके ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखवानी है। पहली तो यह कि तलाक़-ए-बिद्दत देना, क़ानून तोड़ना है, इसने क़ानून तोड़ते हुए मुझे पल भर में तीन तलाक़ दिया है। 

“दूसरा इसने मेरी हत्या करने की कोशिश की, अगर आप लोग समय रहते नहीं आ जाते तो जैसे मज़हबी दरिंदों ने अपनी बीवी, लिव इन पार्टनर को काफ़िर मानते हुए दिल्ली में पैंतीस और झारखंड में पचास टुकड़े कर दिए थे, उनकी खाल भी उतार ली थी, यह भी मेरी वैसी ही हालत करता। तीसरा यह मुझे डरा-धमका कर, मेरी इच्छा के ख़िलाफ़, बार-बार मना करने के बावजूद, अननैचुरल रिश्ते बनाता आ रहा है, ज़्यादा विरोध करने पर बुरी तरह पीटता है 

“मैं पक्के तौर पर कह रही हूँ कि इसका भी पूरा मंसूबा यही है, इसी लिए बकरा काटने वाला चॉपर और तमंचा ला कर रखा हुआ है। अगर आपको मेरी बातों पर यक़ीन नहीं है, तो अभी मेरे साथ घर चलिए। आपको दोनों हथियार दिखाती हूँ। 

“इसने मुझे मारना शुरू करने से पहले काफ़िर ही कहा था, चीख-चीख कर कहा कि मुझे काफ़िर मानते हुए ही अपनी लौंडी बनाकर रखा हुआ था, मेरी इज़्ज़त लूट-लूट कर सवाब कमा रहा था, कमा कर अपने जन्नत जाने का रास्ता साफ़ कर रहा था।”

पुलिस ने उसकी इस बात के बावजूद एक कोशिश की कि पति-पत्नी आपसी सुलह से मामले को सुल्टा लें, रिश्ता टूटे नहीं, लेकिन वाज़िदा रिपोर्ट लिखाने की ज़िद पर अड़ गई इसलिए पुलिस ने उसकी रिपोर्ट लिखकर तबरेज़ को गिरफ़्तार कर लिया। 

इस पर तबरेज़ कह रहा है, “मुझे भी रिपोर्ट लिखानी है, ये सब झूठ बोल रही है, मैं इसे नहीं मारना चाहता, मैंने ऐसा कभी सोचा भी नहीं। सच बात तो यह है कि इसके किसी और से अफ़ेयर हैं, मैं उसी के लिए मना करता हूँ तो यह मुझसे झगड़ा करती है। 

“आज भी शाम को इसे ऑफ़िस से लेने गया तो यह बहुत देर से आई, वजह पूछते ही एकदम भड़क गई। रास्ते भर झगड़ती रही, घर पहुँचकर एकदम बिफ़र उठी, हमेशा की तरह मार-पीट पर उतारू हो गई। मैं चुप रहा तब ये शांत हुई। रात को खाने के बाद भी झगड़ा हुआ था। उसके बाद मैं सो गया था। 

“अचानक मुझे लगा जैसे कोई मेरी गर्दन कस रहा है, मेरी आँखें खुलीं तो देखा यह अपने दुपट्टे से मेरा गला कस रही थी। मैं किसी तरह ख़ुद को छुड़ा पाया। अपने को बचाने के चक्कर में ही इतनी चोट-चपेट लगी है। अगर घर में तमंचा और चॉपर है तो वह इसी का होगा। मुझे मारने के लिए ही अपने लवर से लेकर आई होगी।” 

उसकी बातें पूरी होते-होते वाज़िदा की आँखें आश्चर्य से फैल गई हैं, वह अचरज भरी आवाज़ में कह रही है, “तुम्हारी ऐसी झूठी कहानियों से सच्चाई बदल नहीं जाएगी।” फिर तुरंत ही पुलिस ऑफ़िसर से मुख़ातिब हो कह रही है, “सर यह सरासर झूठ बोल रहा है, मनगढ़ंत कहानी बता रहा है। अगर मेरा कोई लवर है तो ये उसका नाम बताए, वह कौन है? कहाँ रहता है? मैं उससे कहाँ मिलती हूँ? इसने मुझे कब देखा? 

“अगर मेरा कोई लवर होगा तो मैं उससे मोबाइल पर भी तो बातें करती होऊँगी, उसकी कॉल डिटेल्स तो मेरे मोबाइल में होंगी, जितने भी नंबरों पर मैं बात करती हूँ, उन सभी नंबरों की कॉल-डिटेल्स निकाल कर आप चेक करवा लीजिए। मेरे ऑफ़िस में भी लोगों से पूछ लीजिए, अगर कहीं कोई बात होगी तो सब सामने आ जाएगी। 

“यह केवल अपने गुनाह छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलता जा रहा है, मुझे कैरेक्टरलेस बता रहा है, जबकि सच यह है कि यह मेरे बार-बार विरोध के बावजूद भी हर महीने कम से कम चार-पाँच बार सेक्स-वर्कर्स के पास भी जाता है।” 

दोनों की बातें किसी रोचक क़िस्से की तरह सुन रहे पुलिस ऑफ़िसर को समझ में आ गया है कि मामला थोड़ा जटिल है। अगर घर से हथियार बरामद भी कर लिए जाएँ तो भी गुत्थी आसानी से सुलझती दिखती नहीं है। क्योंकि दोनों ही हथियार एक दूसरे का बता रहे हैं। यह मक्कार आदमी कुछ ज़्यादा ही शातिर लग रहा है। इसकी रिपोर्ट लिखने से पहले इसके झूठ के पीछे का सच जान लेना ज़्यादा ज़रूरी है। यह सोच कर उसने दोनों को ले जाकर तमंचा और चॉपर बरामद भी कर लिया। 

वाज़िदा ने पुलिस को कई और ऐसे प्रमाण दिखाए कि पुलिस को उसकी बातें सच लगीं। तबरेज़ ऐसा कुछ भी नहीं दिखा सका, लेकिन वह जिस तरह से बराबर तर्क दे रहा था, उससे पुलिस ऑफ़िसर ने वापस-आकर दोनों से विस्तार से पूछ-ताछ शुरू कर दी कि दोनों के बीच ऐसी कौन सी बात हुई कि हसबैंड-वाइफ़ होते हुए भी एक दूसरे की हत्या करने पर तुले हुए हैं। 

वाज़िदा ने उन्हें जो कुछ बताया उससे पुलिस स्टॉफ़ को आश्चर्य हो रहा है कि, कैसे-कैसे लोग हैं दुनिया में। क्या धर्मांधता इतनी ताक़तवर है कि वह सच को भी स्वीकार करने से न सिर्फ़ रोक देती है, बल्कि मनुष्य से हिंसक पशु भी बना देती है। 

वाज़िदा ने उन्हें बता रही है कि, “ऑफ़िस से आने के बाद घर पर खाने-पीने से लेकर सोने तक हम-दोनों के बीच बातें होती रहती थीं। यह अपने ऑफ़िस की बताते थे और मैं अपने ऑफ़िस की। एक दिन ऑफ़िस में लंच के दौरान हमारे एक साथी ने मुस्लिमों के सरनेम ख़ान के बारे में बताना शुरू किया। उसके तर्क, उसकी बातें इतनी दिलचस्प होती हैं कि, सभी लोग उसे बड़ी तवज्जोह देकर सुनते हैं, उस दिन भी सुन रहे थे, मैं भी सुनने लगी। 

“उसके हिसाब से मुसलमानों ने मंगोलिया के चंगेज ख़ान से अपने को जोड़ते हुए ख़ान सरनेम लगाना शुरू किया। चंगेज ख़ान को मुसलमान समझने की भूल किए बैठे हुए हैं, जबकि वह मुसलमान था ही नहीं। उसके समय में तो पूरा मंगोलिया, वह ख़ुद तेंग्रे धर्म को मानता था और तेंग्रे मूलतः सनातन धर्म है, जिसे हम लोग आज हिंदू कहते हैं। तेंग्रे धर्म के मानने वाले आकाश, पृथ्वी, देवी देवताओं की पूजा करते हैं।”

वाज़िदा तफ़सील से बताती हुई यह भी कह रही है कि, “उसने चंगेज ख़ान के मक़बरे की फोटो भी गूगल पर दिखाई, जिसमें सच में त्रिशूल और श्रृंगी दोनों ही थे। उसने किसी किताब के कुछ पन्नों और कई कटिंग की फोटो भी अपने मोबाइल में दिखाई। उन लाइनों को पढ़ कर बताया जिसमें यह कहा गया था कि, तेंग्रे सनातन धर्म है और जिसमें आकाश, पृथ्वी, अग्नि की पूजा की जाती है। कज़ाख़िस्तान ने उसी से प्रभावित होकर बड़े सम्मान के साथ अपने राष्ट्रीय ध्वज का रंग आकाशीय नीला रखा है। 

साथ ही यह भी कहा कि समाज को एक एजेंडे के तहत तमाम बातें बताई ही नहीं गईं, सच बताया ही नहीं गया। और इस सनातन देश, समाज से दुराग्रह रखने वाले झूठे इतिहासकारों ने यह झूठ स्थापित कर दिया कि चंगेज ख़ान मुस्लिम था, उसने भारत पर भी हमला कर क़त्लेआम किया था। इसी के चलते ग़लतफ़हमी में अधिकांश लोगों ने उसे इस्लामी हमलावर मान लिया, लोगों ने उसका सरनेम अपना लिया, जबकि यह पूरी तरह से ग़लत है। 

ख़ान मतलब तेंग्रे यानी सनातन धर्म इसलिए जो लोग भी केवल इसी बात को ध्यान में रखकर ख़ान सरनेम अपनाते चले आ रहे हैं, उन्हें इन तथ्यों पर ध्यान देना चाहिए और क्योंकि तथ्य अकाट्य हैं तो वह ख़ान सरनेम बदल दें, नहीं तो उन्हें भी सनातनी ही समझा जाएगा।’ 

“उसकी बातों से मैं बहुत इंप्रेस हो गई। उससे मैंने तमाम कटिंग्स व्हाट्सएप पर माँग लीं, उनको पढ़ा। क्रॉस चेक करने के लिए विकिपीडिया पर भी पढ़ा। उसकी बातें सही थीं। मैंने यह सारी बातें इससे की, तो पहले तो यह चुप रहे, लेकिन बाद में बुरा मानने लगे। 

“बात केवल इतनी ही नहीं है। इन्हें सबसे ज़्यादा बुरा मेरी इस बात से लगा कि, इस बार भी रामनवमी के जुलूस पर पिछली कई बार की तरह देश में कई जगहों पर कुछ कट्टर मुस्लिम मज़हबी लोगों ने हमला किया, दंगा, लूटपाट, हत्याएँ आगजनी की। 

“इस बारे में एक समाचार पढ़ कर मैंने इससे कहा कि, ‘यह सब नहीं होना चाहिए, ग़लत है। आज-तक तो ऐसा कभी नहीं सुनाई दिया कि हिंदुओं ने देश-दुनिया में कभी हमारे किसी त्योहार पर मोहर्रम के किसी जुलूस पर हमला किया हो, आगजनी लूट-पाट, हत्याएँ की हों। 

‘हम लोग यह सब करके दुनिया में अपनी ही इमेज ख़राब करते हैं, ख़ुद को बदनाम करते हैं। सभी को अपना-अपना धर्म मानने, पूजा-पाठ करने देना चाहिए। ऐसा नहीं करना चाहिए कि मंदिर महफ़ूज़ रहे इसके लिए सिक्योरिटी फ़ोर्स लगानी पड़े और मस्जिद बिना फ़ोर्स के ही सुरक्षित रहे’। 

“मैंने यह भी कहा कि किसी भी मुसलमान को यह नहीं भूलना चाहिए कि हम भले ही आज मुसलमान हैं, लेकिन इस सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ सकते कि, हमारे पूर्वज भी सनातनी थे, भगवान राम, कृष्ण जैसे सनातनियों के हैं वैसे ही हम मुस्लिमों के भी पूर्वज हैं। 

“इंडोनेशिया को देखो न, दुनिया में सबसे ज़्यादा मुसलमान वहीं पर हैं। वह भी एक सनातनी देश था। वहाँ के लोग आज भी राम को अपना पूर्वज मानते हैं। वहाँ पूरे साल रामलीला का मंचन होता रहता है। वहाँ की करेंसी पर गणेश जी की फोटो होती है। 

“भले ही हमारे पूर्वजों ने तलवार के डर से, या फिर पैसों के लालच में आकर सनातन धर्म छोड़कर इस्लाम मज़हब अपना लिया, लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए, पूर्वज तो बदल ही नहीं सकते। राम ही, सनातनी ही मुस्लिमों के पूर्वज थे, हैं, वही रहेंगे। 

“रामनवमी के जुलूस पर या राम, कृष्ण को ना मानना, पूजा-पाठ, जुलूस पर दंगे करना, वैसा ही है, जैसे अपने अब्बू-अम्मी को तो माना जाए लेकिन उनके अब्बू-अम्मी, अपने पूर्वजों को अपमानित किया जाए, उनसे नफ़रत की जाए। मेरी इन बातों को यह चुपचाप सुनते थे, तो मैं बोलती रहती थी। यह कभी भी खुलकर कोई बात नहीं करते थे। 

“इससे मैं यह अंदाज़ा ही नहीं लगा पाई कि मेरी यह बातें इनको बहुत बुरी लग रही हैं, चुप-चाप ये सिर्फ़ इसलिए सुन रहे हैं, जिससे कि मेरे मन की सारी बातों को यह अच्छी तरह जान समझ सकें कि मेरे मन में क्या है, मैं ऐसी बातें किस हद तक कर सकती हूँ। मैं समझ ही नहीं पाई कि, इसके मन में मेरे लिए ग़ुस्सा, नफ़रत का लावा इकट्ठा होता जा रहा। 

“एक दिन मैंने जब यह कहा कि, ‘देखो यदि पहले किसी भी वजह से कुछ ग़लत होता चला आया है, तो इसका मतलब यह तो नहीं है कि सच जानने के बाद भी उसे सुधारा न जाए।’ इसका मतलब इन्होंने यह निकाल लिया कि मैं इनसे सरनेम और मज़हब बदलने की वकालत कर रही हूँ। 

“मैं इसे एक तरक्की-पसंद इंसान समझती थी। पहले यह दाढ़ी, टोपी कुछ भी नहीं रखते, पहनते थे। मज़हबी दंगे-फ़सादों पर ग़ुस्सा होते थे, बोलते थे मज़हब का मतलब यह सब थोड़ी न होता है। लेकिन जब से यह एक मज़हबी तंजीम से जुड़े, तब से यह दिन पर दिन बदलते ही चले गए, इतना ज़्यादा और इतनी तेज़ी से बदल गए कि मैं समझ ही नहीं पाई कि मेरी बातों के कारण अब यह मुझे काफ़िर मानने लगे हैं, और काफ़िरों की हत्या करना अपना मज़हबी फ़र्ज़। और मुझ काफ़िर को आज बेइज्जत कर, मार कर आज अपना फ़र्ज़ पूरा करने जा रहे थे। 

“वह तो शुक्र है ऊपर वाले का कि आप लोग टाइम पर आ गए, और मैं आपके सामने बैठी, अपने ऊपर हुए ज़ुल्म के बारे में बता रही हूँ। ख़्वाबों में भी नहीं सोचा था कि, एक पढ़ा-लिखा आदमी, एक अनपढ़ से भी ज़्यादा कट्टर मज़हबी बन सकता है . . .” 

वाज़िदा की बातें बड़ी लंबी होती चली गईं, तबरेज़ ने उसे कई बार बीच में टोकने की कोशिश की। उसको देख कर लगता कि जैसे वह बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है और पुलिस न होती तो वह उसके टुकड़े कर डालता। वाज़िदा की बातों, प्रमाणों का उसके पास कोई जवाब नहीं था, लेकिन उसकी भी तमाम बातों को पुलिस ने सुना और उसकी भी रिपोर्ट लिख ली। दोनों को लॉक-अप में बंद कर दिया। इसके पहले उनकी मरहम-पट्टी भी करवा दी थी, क्योंकि दोनों के कुछ ज़ख़्म ज़्यादा गहरे थे। 

रात अपना सफ़र पूरा कर विदा लेने को तैयार है। हवालात के गर्म फ़र्श पर बैठी वाज़िदा सोच रही है कि, यह तो निश्चित ही कई साल के लिए जेल जाएगा, लेकिन मुझे भी कई साल जेल काटनी पड़ेगी। अटेम्प्ट-टू-मर्डर की रिपोर्ट इसने भी लिखवाई है, सारे सुबूत सामने हैं। मेडिकल रिपोर्ट में इसके भी सारे ज़ख़्मों का ब्योरा दर्ज़ होगा। दोनों रिपोर्ट दर्ज़ करा चुके हैं, अब मामला वापस भी नहीं ले सकते। 

एक ही रास्ता है कि कोई क़ायदे का वकील करूँ, वही मुझे बचा पाएगा कि मैं हमलावर नहीं थी। मैंने अपनी जान बचाने की कोशिश की, उसी से यह भी चोटिल हुआ होगा। तमंचा, चॉपर यही ले आया था, यह तो जब इसकी कारगुज़ारियों की पुलिस जाँच करेगी, एक-एक बात खंगालेगी तो यह उस तंज़ीम के कहने पर और जो काले-कारनामे करता आ रहा है, वह भी सामने आएँगे, इसकी मुश्किलों को और बढ़ाएँगे। 

और मेरी भी मुश्किलें कुछ कम होगी क्या? पैंतालीस की उम्र में मर्द से मार-पीट की, खून-खच्चर हुआ, रात हवालात में कटी, अगले कई साल जेल में बीतेंगे, नौकरी चली जाएगी, जेल से छूटूँगी तो एक सजायाफ़्ता के चलते दूसरी नौकरी भी नहीं मिलेगी, सच जानने के बाद तो कोई घर में नौकरानी भी नहीं रखेगा। 

उसे इंस्टाग्राम पर बार-बार देखी एक रील भी याद आ रही है, जिसमें पुलिस एक सनातनी महिला सामाजिक कार्यकर्ता को पकड़ कर सिर्फ़ इसलिए जेल में डाल देती है, क्योंकि उसने अपनी स्पीच में मुस्लिम महिलाओं की बदतरीन हालत के मुताल्लिक़ बोल दिया था कि, “वे सनातनी लड़कों से शादी करके तीन-तीन सौतनों, बच्चे पैदा करने की मशीन बनने, तलाक़, बुर्क़े की क़ैद, पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी आदि तमाम मुश्किलों से मुक्त हो सुन्दर सुखी जीवन जी सकती हैं। मर्द की खेती नहीं उसकी अर्द्धांगनी, देवी बनकर रह सकती हैं।” 

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टिप्पणियाँ

प्रदीप श्रीवास्तव 2023/05/03 09:28 PM

धन्यवाद शैली जी ।

shaily 2023/04/21 12:09 AM

खान का नया अर्थ पता चला। बहुत सही और सटीक कहानी। जानकारी बढ़ी और मनोरंजन भी हुआ। धन्यवाद आपकी लेखनी को

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