बंटी
कथा साहित्य | लघुकथा प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'15 Feb 2021
"तू समझ क्यों नहीं रही नेहा, ऐसे मौक़े ज़िन्दगी में बार-बार नहीं आते . . . दस साल हो चुके हैं तुझे, और कितना अपमान सहेगी . . . भइया तुझसे सच्चा प्रेम करते हैं, तुझे वो सब देना चाहते हैं जिनकी तू हक़दार है . . . तुम दोनों अपने-अपने जीवन की कड़वाहट भुलाकर, अमेरिका में एक नया जीवन शुरू कर सकते हो . . .।" नेहा से कोई प्रतिक्रिया न पाकर, सीमा का अनुरोध मानो दम तोड़ रहा था।
कुछ देर की चुप्पी के बाद, नेहा ने सीमा के दोनों हाथ अपने हाथ में लिए और गम्भीर मगर स्पष्ट शब्दों में धीमे से बोली, "तू सब जानती है सीमा, सारा बचपन तेरे साथ बीता है, पर तू शायद यह नहीं समझ पा रही कि बंटी को, उसके पिता से अधिक प्रेम और कोई नहीं दे सकता . . .।"
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