अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

एकता का बंधन

हिन्दी सहज है, सुन्दर और सरस है,
भारत की राज भाषा है,
पर हिन्दी का महत्व
मात्र हिन्दी-दिवस पर नज़र आता है
बाक़ी के दिन, देश में अंग्रेज़ी घूमती है 
अंग्रेज़ी खण्डहर में, ग़ुलामी गूँजती है 
अँग्रेज़ तो चले गए, पर अंग्रेज़ी यहीं रही 
मन से अँग्रेजों की ग़ुलामी नहीं गई 
अंग्रेज़ी बोल कर क़द बढ़ जाता है 
हिन्दी बोलने वाला मूर्ख कहा जाता है 
हमें अपने आप पर शक क्यों है? 
हिन्दी बोलने में शर्म क्यों है? 
लाख अंग्रेज़ियत ओढ़ लें, 
अँग्रेज़ तो नहीं बनेंगे 
न तीतर बनेंगे न बटेर रहेंगे 
इसलिये अपनी स्वदेशी पहचान बनायें 
कोट-पैंट, टाई पहन कर, अंग्रेज़ी मत गिटपिटायें
हिन्दी को अपनी भाषा, अपना अभिमान बनायें, 
स्वयं बोलें, दूसरों को भी सिखायें... 
हिन्दी भारत के बहुसंख्यक की भाषा है, 
संस्कृत और संस्कृति से पुराना नाता है, 
देश यदि शरीर तो हिन्दी आत्मा है... 
यही वह सूत्र है, जो देश जोड़ सकता है, 
बहु-भाषा का मंत्र, देश तोड़ सकता है 
हिन्दी ही देश की एकता का बंधन है, 
भारत का मान और माथे का चंदन है।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

दिनेश द्विवेदी 2021/09/14 04:05 PM

बहुत सुंदर निज भाषा का नहीं गर्व जिसे, क्या प्यार देश से होगा उसे, वही वीर देश का प्यारा है, हिंदी ही जिसका नारा है।

जयंती नयन 2021/08/25 02:26 PM

हिन्दुस्तान में हिन्दी की वास्तविक स्थिति और एक हिन्दुस्तानी की हार्दिक अभिलाषा

नीलमम 2021/08/24 11:40 PM

सुन्दर अति सुन्दर......

नीलमम 2021/08/23 09:24 PM

सुन्दर अति सुन्दर......

रंजना 2021/08/23 07:49 PM

सुन्दर रचना

संतोष मिश्रा 2021/08/23 03:16 PM

बेहद सरलता से आपने मातृभाषा को परिभाषित किया है, थोड़ा काल खंड में ही नयी पीढ़ी हिन्दी की उपयोगिता और सार्थकता को आत्मसात कर लेगी आपको साधुवाद वंदे मातरम जय हिन्द

Sarojini Pandey 2021/08/23 03:13 PM

बहुत सही कहा है काश ऐसा सब सोचें

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य कविता

कविता

किशोर साहित्य कविता

कविता-ताँका

सिनेमा चर्चा

सामाजिक आलेख

ललित निबन्ध

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं