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अपना एक घर

बहुत आलीशान न भी हो, 
मामूली-सी छत के नीचे हो
चाहे साधारण सा एक कमरा, 
घांस-फूस से बनी झोंपड़ी हो
अथवा हो पॉलिथीन से बना
एक अस्थायी टेंट ही, 
जिसमें इंतज़ार कर रहे हों
माता-पिता, भाई-बहन एवं
बीवी बच्चों में से कोई
या फिर इंतज़ार करती हों
उनकी यादें ही, 
तो काम के बाद 
इंसान घर लौटता है ज़रूर
अपने अस्तित्व को महसूस करने। 
 
जिसके पास नहीं कोई कारण
घर लौटने का
वो बंजारा हो जाता है भटकता दर-बदर, 
बहुत ज़रूरी है इंसान के लिए
होना अपना एक घर। 

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