कितना मुश्किल है गाँधी बनना
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Feb 2022 (अंक: 198, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
कितना आसान है!
किसी से नाराज़ होने पर
उसके अहित की कामना करना,
किसी से अपना मत भिन्न होने पर
उससे सम्बन्ध-विच्छेद करना,
किसी का रहन-सहन, तौर-तरीक्रे,
जीवन-पद्धति पसंद न आने पर
उसे अपनी तरह बनाने की
पुरज़ोर कोशिश करना,
अपने ही मत को सर्वोपरि मानकर
दूसरों को जीवन के अधिकार से भी
वंचित करना,
विरोध में अपने चार पोस्टर देखकर
अपनी जान की सलामती की
दुआ करना,
और कितना मुश्किल है!
अन्याय का विरोध
अत्याचारियों से नफ़रत एवं घृणा
किए बग़ैर करना,
असहमति को भी ज़रूरी मान
धैर्यपूर्वक सबकी ज़रूरतों एवं माँगों पर
विचार करना,
इंसानियत को सर्वोपरि मान
मनुष्य सहित सब जीवों के
जीवन-अधिकार का सम्मान करना,
अपने हत्यारे को भी
क्षमा करने का हृदय रखना,
कितना आसान है!
एक हत्यारा बनना,
और कितना मुश्किल है!
एक महात्मा गाँधी बनना।
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