तुमसे मुलाक़ात...
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
तुमसे मुलाक़ात
चाहे पल दो पल की ही हो
भर देती है मुझे
प्रेम से लबालब,
छलकता रहता है वो फिर
अगले कई दिनों तक
मेरे व्यवहार से
स्नेह का रूप बदलकर।
तुमसे मुलाक़ात
चाहे पल दो पल की ही हो
भर देती है मुझे
आशा से लबालब,
झलकती रहती है वो फिर
अगले कई दिनों तक
मेरी सोच से
उम्मीद का रूप बदलकर।
तुमसे मुलाक़ात
चाहे पल दो पल की ही हो
भर देती है मुझे
स्फूर्ति से लबालब,
दमकती रहती है वो फिर
अगले कई दिनों तक
मेरे काम में
उमंग का रूप बदलकर।
सच कहता हूँ कि
तुमसे मुलाक़ात
चाहे पल दो पल की ही हो
कर देती है मुझे रिचार्ज
हँसी-ख़ुशी, उमंग-उत्साह से
और बना देती है
दुनिया का एक बहुत
ख़ुशनसीब इंसान।
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