मेरे ख़्याल तेरे गुलाम
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Aug 2021 (अंक: 186, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
मेरे ख़्याल मँडराते रहते
मधुमक्खियों की तरह
आस-पास तेरे हर बार,
सम्मोहित हुए से झूमते
तेरे इश्क़ की ख़ुशबू में,
पीछे आते तेरे बार-बार,
अदाओं पर तेरी रीझते
हुए, हर नज़र पर तेरी
ख़ुद को करते निसार,
हँसते देख तुझे खिलते
हुए, देख उदासी तेरी
सुबकने को होते बेज़ार,
साँसों से तेरी महकते
हुए, ज़ुल्फ़ें सँवारने को
कभी तेरी होते बेक़रार,
क़दमों में तेरे बिछते
हुए, तेरी राहों के काँटे
ख़ुद पर लेने को तैयार,
तेरे समय को तरसते
हुए, रूठते हुए कभी
मनाने का करते इसरार,
मेरे ख़्याल ग़ुलामी करते
तेरी और फिर भी जताते
उसके लिए तेरा आभार।
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