अपने हिस्से का नरक
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो खो देता है
अपने बच्चों को अपनी आँखों के सामने ही,
या फिर त्याग दिया जाता है बुढ़ापे में
ख़ुद के बच्चों द्वारा ही,
नारकीय-यन्त्रणा में गुज़ारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो ख़ुद ही देता रहता है
अपनी मौत को आमंत्रण।
अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो फँसा होता है
ज़ंजीरों में किसी बेहद ख़राब रिश्ते की,
या फिर अभिशप्त हो जीवन
अकेलेपन में गुज़ारने को ही,
मानसिक-यन्त्रणा में गुज़ारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो ख़ुद ही देता रहता है
अपनी मौत को आमंत्रण।
अपने हिस्से का नरक भोग लेता है
इस धरती पर ही
हर वो इंसान जो बिता देता है
अपनी पूरी ज़िंदगी
धर्म के आक़ाओं द्वारा शारीरिक-मानसिक
रूप से शोषित होते हुए ही,
नारकीय-यंत्रणा में गुज़ारते हुए हर दिन
कामना करते हुए मुक्ति की
वो ख़ुद ही देता रहता है
अपनी मौत को आमंत्रण।
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