चुनाव जब आते हैं
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
चुनाव जब आते हैं तो
होड़ मच जाती है नेताओं में
मंदिर-मंदिर चक्कर लगाने की,
इक-दूजे से बढ़-चढ़कर
भक्त प्रचारित हो जाने की
और इसी भक्ति की आड़ में
अपने सारे पाप छिपाने की।
चुनाव जब आते हैं तो
होड़ मच जाती है नेताओं में
ग़रीबों के दर पर
झटपट से पहुँच जाने की,
इक-दूजे से बढ़-चढ़कर
उनका मसीहा प्रचारित हो जाने की
और इसी छवि की आड़ में
लहू उनका पीते जाने की।
चुनाव जब आते हैं तो
होड़ मच जाती है नेताओं में
तरक़्क़ी और ख़ुशहाली के सपने
जनता को दिखलाने की,
इक-दूजे से बढ़-चढ़कर
उनका सेवक प्रचारित हो जाने की
और इसी सेवा की आड़ में
हर बार उनको लूटते जाने की।
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