करवा चौथ का अनुपम त्यौहार
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
जिन पति–पत्नी ने
बनाकर रखा है अपने मन में यह भ्रम
कि उनके साथी ने
जवानी से लेकर बुढ़ापे तक उसके अलावा
और किसी का साथ कभी भी चाहा नहीं,
उत्तेजक कोई दृश्य अथवा चलचित्र देख
ख़ुद को उन कलाकारों की जगह रखकर
मन ही मन रस लेने का ख़्याल भी
जिनके मन मस्तिष्क में कभी घुस पाया नहीं,
तनाव के क्षण आए जब उनके रिश्ते में
तो ग़ुस्से में आकर
एक–दूसरे की ग़लतियों को गिना-गिनाकर
जिन लोगों ने राई का पहाड़ कभी भी बनाया नहीं,
ज़्यादती की हो उनके साथी ने
चाहे कितनी ही ज़्यादा उनके ऊपर
लेकिन बावजूद उसके एक पल के लिए
अपने साथी का अहित चाहने का ख़्याल भी
जिन लोगों के मन में कभी भी आया नहीं,
हैं अगर ऐसे भी विरले लोग दुनिया में
तो उनके लिए शायद
फलदायी सिद्ध हो सकता है सात जन्मों तक
बंधन पक्का करने का दावा करने वाला
करवा चौथ का यह अनुपम त्यौहार,
बाक़ियों के लिए तो है एक दूसरे के मन को
भरमाने के लिए
हर साल खेला जाने वाला नाटक ही है
जिसका फ़ायदा दुकानदारों के अलावा
और किसी ने आज तक कमाया भी नहीं।
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