तोड़ा क्यों जाए?
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'15 Feb 2022 (अंक: 199, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
गुलाब!
तुम सलामत रहना
अपनी पत्तियों, टहनियों, जड़ों,
परिवेश और वुजूद के साथ,
तुम्हारी महक और ख़ूबसूरती
का इस्तेमाल नहीं करना है मुझे
अपने स्वार्थ के लिए,
तुम्हें तुम्हारी बग़िया में
फलते-फूलते देखकर कर लूँगा मैं तुष्टि
अपने सौंदर्य बोध की,
तुम कुछ दिन बाद मुरझाकर
मर भी जाओगे
तो मुझे तसल्ली रहेगी कि
आख़िरी समय में तुम
अपनों के साथ थे,
कि मेरी नज़र में गुनाह है
किसी को भी अपनी जड़ों से
दूर करना,
उसके परिवेश से दूर
उसे तिल-तिल मरने पर
मजबूर करना।
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