नसीब का लिखा
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
इस दुनिया में
जन्म लेकर
आँखें जो खोली पहली बार
तो देखा उसने
माँ को ही
चूल्हे-चौके का सारा काम
करते हुए हमेशा,
वो मासूम अब
खिलौनों में किचन सेट से
ज़्यादातर खेलना पसंद करती है।
इस दुनिया में
जन्म लेकर
आँखें जो खोली पहली बार
तो देखा उसने
माँ को ही
घूँघट बड़ों और परायों से
करते हुए हमेशा,
वो मासूम अब
जींस-टॉप डालते हुए भी
दुपट्टा लेने की ज़िद करती है।
इस दुनिया में
जन्म लेकर
आँखें जो खोली पहली बार
तो देखा उसने
माँ को ही
उसे सँवारने-सँभालने में
लगे हुए हमेशा,
वो मासूम अब
अपनी गुड़िया को सँवारने-सँभालने
में ज़्यादातर लगी रहती है।
सिर्फ़ नसीब में ही नहीं,
बेटियों के अचेतन मन में भी हमनें
घर-गृहस्थी और बच्चों की
देखभाल भर रखी है।
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