हमेशा के लिए कुछ भी नहीं
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
न यह जीत आख़िरी है
और न यह हार आख़िरी है,
रोज़ाना का संघर्ष है जीवन
चलेगा यह ऐसे ही
जब तक हमारी साँस आख़िरी है।
जीत से अहंकार न हो
और हार से न टूटे हौसला,
सफलता का यह विचार
आख़िरी है,
उम्मीद का सूरज उगा
हर नये दिन के साथ,
हार कर मत बैठ
कि अँधेरे की यह रात आख़िरी है।
छूट जाएगा वो सब कुछ यहीं
जीत से जो हासिल किया,
वो सब कुछ भी तो पाया था यहीं
हार कर जो गँवा दिया,
हमेशा के लिए कुछ भी नहीं
मन की संतुष्टि के लिए
यह आधार आख़िरी है,
परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लें
या फिर उनके हिसाब से
ख़ुद को लें ढाल,
सुखी जीवन के लिए यह सिद्धांत
आख़िरी है।
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