तुम्हारा असर है इस क़द्र
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 May 2022 (अंक: 204, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
प्रफुल्लित मन मदमस्त होकर
बादलों के रथ पर सवार
आकाश चूमता है,
सुकून की शीतल हवाएँ
अन्तर्मन के उद्वेग को
शान्त कर जाती हैं,
हर्षोल्लास की नन्ही बूँदों से
हृदय का प्यासा समंदर
भर जाता है,
ताज़गी भरे प्यारे से अहसास
मेरे वुजूद को हौले से
सहला जाते है,
देख लो!
इक तेरे मिलने और बात करने से
चमत्कार कितने सारे
मेरी ज़िन्दगी में हुए जाते हैं।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अंत में सब बराबर
- अतिवाद का रंग लाल
- अनमोल नियामतें
- अपना एक घर
- अपने हिस्से का नरक
- अल्फ़ाज़
- आपसी सहयोग
- आभासी बेड़ियाँ
- इंसान का दिमाग़ी विलास
- ईश्वर क्या है?
- उनका आना और जाना
- एक अज़ीम उपलब्धि
- करवा चौथ का अनुपम त्यौहार
- कितना मुश्किल है गाँधी बनना
- किस मुग़ालते में हो?
- कुछ व्यवहारिक बातें
- कैसे एतबार करें किसी का
- कोरोना के चलते
- कौन है अच्छा इंसान?
- क्या हमने पा लिया है?
- गहराई में उतरे बिना
- चिरयुवा
- चुनाव जब आते हैं
- चुनौती से कम नहीं
- जो कम लोग देख पाते हैं
- जो सबसे ज़रूरी है
- जो हम कहते नहीं
- तुमसे मुलाक़ात...
- तुम्हारा असर है इस क़द्र
- तोड़ा क्यों जाए?
- दुनियादारी
- दुनियादारी की बात
- दोगला व्यवहार
- नसीब का लिखा
- परोपकार का मूल्य
- पुराना वक़्त लौट आए तो अच्छा है
- प्रेम पथिक
- प्रेम रहेगा हमेशा
- प्रेम हमेशा रहेगा
- बदनसीब लोग
- भविष्य की नाहक़ चिन्ता
- मेरा प्यार आया है
- मेरे ख़्याल तेरे गुलाम
- मौत की विजय
- विचारधारा की रेल
- विरोध के स्वप्न और इंसानी कायरता
- शिक्षा का हाल
- सच्चाई से पलायन
- सबसे ख़तरनाक ज़हर
- सभ्यता का कलंक
- समाज की चुप्पी
- सुनो स्त्री . . .
- सोच कर देखो
- हमेशा के लिए कुछ भी नहीं
- हर बार की तरह
- होगी मेरी ख़ुशनसीबी
- ख़ामोशियाँ बोलती हैं
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं