विचारधारा की रेल
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'15 Dec 2020 (अंक: 171, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
वोट तन्त्र में जनता के
विचारों की रेल
कुछ को पहुँचाती है
राजगद्दी पर
और कुछ को पहुँचा
देती है सीधा जेल
इसीलिए तो . . .
उसकी दशा-दिशा बनाने
बिगाड़ने में लगे रहते हैं
रात-दिन चौबीस घंटा
राजनीतिक दलों के मीडिया,
सोशल मीडिया सेल
बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों के साथ
मिलीभगत से चलता है विरोध
और समर्थन का यह खेल
बार-बार हज़ार बार झूठ को
जनता के आगे पेल-पेल
यह शातिर
हो जाते हैं कामयाब
लोगों की अपने ढंग से
सोचने विचारने की शक्ति को
करने में फ़ेल।
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