समाज की चुप्पी
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
चुप रहना चुन लेना
तुम बेशक
जब होती हो कहीं पर
बलात्कार, हत्या या और किसी
क़िस्म की जघन्यतम घटना
कोई
किसी स्वार्थ या डर के चलते,
मगर चुप रहना तब भी
ख़ुद पर बीते जब ऐसा,
जायज़ ठहरा लेना अपने साथ
हुए कृत्य को भी
उन तर्कों से
जो देते हो तुम दूसरों के मामले में,
वैसे भी
संवेदनाएँ मर चुकी हों जिनकी
उन लाशों के साथ
कोई कुछ भी करे
किसी को क्या फ़र्क़ पड़ता है?
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