चुनौती से कम नहीं
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Nov 2021 (अंक: 192, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
वक़्त बीतता जाता है
जैसे-जैसे
कुंद पड़ती जाती है
दांपत्य में धार नयेपन की,
जिन नज़रों के मिलने से
दिल धड़क जाते थे दोनों के
जोरों से
वो 'नॉर्मल' हो जाती हैं।
जिनकी नाराज़गी के डर से
सिहरन दौड़ जाती थी जिस्म में
बहुत बार
वो 'इग्नोर' हो जाती हैं।
जिन आँखों में आँसू आने से
दिल बैठ जाता था फ़िक्र से
होकर परेशान
वो 'रूटीन' हो जाते हैं।
घर-परिवार की ज़िम्मेदारी
निभाते हुए दांपत्य में
'चार्म' बनाए रखना भी
किसी चुनौती से कम नहीं।
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