अतिवाद का रंग लाल
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सब संस्कृतियों और
धर्मों का जन्म रहा हो
भले ही मानव मात्र की
सेवा और उत्थान के निमित्त,
मगर अपने धर्म को
उत्कृष्ट व दूसरे को निकृष्ट
बताने का चलन दुनिया में
हलाल रहा है हमेशा।
अतिवाद के झंडे
का रंग रहा हो
भले ही काला, हरा
या कुछ और भी,
मगर उसके परिणाम में
दुनिया के किसी भी
हिस्से में होने वाले नरसंहार
और अत्याचार का
रंग लाल ही रहा है हमेशा।
इसकी ज़द में आकर
प्रताड़ित होने और
मरने वालों की जाति
या धर्म रहा हो
भले ही कोई भी,
मगर धर्म और विचारधारा
के नाम पर
ऐसे बर्बरतापूर्ण कृत्यों पर
संपूर्ण इंसानियत को
मलाल ही रहा है हमेशा।
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