अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

दोगला व्यवहार

गायों से नहीं चाहे हमने बछड़े
और स्त्रियों से लड़कियाँ, 
दोनों के प्रति हमारे समाज का
अघोषित सा दुराव रहा है, 
क्योंकि धन-संपत्ति घर में 
आने के अवसर ज़्यादा हैं
बछिया और लड़कों से, 
इसलिए बछड़ों और लड़कियों से ऊँचा
उनका यहाँ स्थान रहा है। 
 
कहने को भगवान की देन 
कहते हैं बच्चों को सब
लेकिन मन्नतों में लड़के ही माँगने पर
लोगों का ज़्यादा ध्यान रहा है। 
आती हैं ज़्यादातर लड़कियाँ बिन माँगे ही
इसलिए तो दाँव पर हमेशा 
उनका सम्मान रहा है। 
 
समाज के नियम रहे हैं ज़्यादातर
लड़कियों के लिए दुखदाई ही, 
उनके अपने घर में ही उनका दर्जा
बराए एक मेहमान रहा है, 
पाला-पोसा जाता है उन्हें पराए धन 
के तौर पर आज भी
उनके कन्यादान करके माँ-बाप का
पुण्य कमाने का अरमान रहा है। 
 
ज़रूरी दोनों हैं दुनिया में 
वंश-वृद्धि के लिए यह जानते हैं सब
लेकिन फिर भी लड़कों से ही
कुल बढ़ाने पर सबका अधिमान रहा है, 
समानता का राग अलापते ज़रूर हैं हम
मगर एक समाज के तौर पर
अक़्सर दोगला हमारा व्यवहार रहा है। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

हास्य-व्यंग्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं