सच्चाई से पलायन
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
बदल देता हूँ जल्दी से
न्यूज़ चैनल या
'स्क्रोल' कर देता हूँ
मोबाइल स्क्रीन,
जब भी किसी
'पाशविक कृत्य' की
न्यूज़ देखता हूँ,
भरमा लेता हूँ ख़ुद को
यह सोचकर कि
मेरे साथ ऐसा नहीं
होगा,
देखकर थोड़ी देर कोई
फ़िल्म या टीवी सीरियल
अपने डर को टाल
देता हूँ,
सच्चाई से पलायन
का यह तरीक़ा
अपनाते हैं बहुत सारे लोग
मेरी तरह,
ऐसी मानसिकता ही जड़
में है अपराधियों के हौंसले
बढ़ते जाने की ओर
एक समाज के रूप में
हमारे पतन की भी,
जब तक हम हर अपराधी
के ख़िलाफ़ बँटे रहेंगे
जाति, धर्म और पार्टी के
आधार पर,
हमारे जैसा कोई या हममें
से कोई एक,
बनता रहेगा ऐसे राक्षसों
का शिकार।
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