जो हम कहते नहीं
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 May 2021 (अंक: 180, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
कहने को तो दूर
तुमसे रहते हैं
लेकिन असल में सरूर
तेरे में रहते हैं,
जितना हिचकिचाती हो तुम
सबके सामने
अपना हमें बताने से,
तुम्हें अपना जानकर
उतना ही ग़ुरूर
में हम रहते हैं।
कहने को तो घर में
अपने रहते हैं
लेकिन ख़्यालों में दर पे
तेरे रहते हैं,
बहुत कम समय के लिए
मिलीं तुम
इस ज़िंदगी में
इसलिए अरमानों में
हम जी भर के
तुम्हें लिए रहते हैं।
कहने को तो शान में
अपनी रहते हैं
लेकिन असल में जान
तेरी में रहते हैं,
तेरी ख़ुशी में ही
ख़ुशनुमा रहती है हमेशा
ज़िंदगी हमारी
पर तेरी तकलीफ़ में
बड़े ही परेशान
हम रहते हैं।
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