मेरा प्यार आया है
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Mar 2022 (अंक: 200, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
भटका हूँ तेरी तलाश में बहुत
मिले हो अब तो मुझमें ठहराव आया है,
करने दे थोड़ा आराम
अपनी ज़ुल्फ़ों की छाँव में
कि बड़ी मुश्किल से हसीं यह
पड़ाव आया है।
जितनी देरी से मिला है यह तोहफ़ा
उतना ही ख़ूबसूरत और नायाब आया है,
छूकर ज़रा यक़ीं दिलाने दे मुझे ख़ुद को
कि है यह हक़ीक़त
या कि फिर मुझे हसीं कोई ख़्वाब आया है।
बंजर प्यासी थी मेरे मन की धरा
बुझाने उसकी प्यास
प्यार का यह सैलाब आया है,
ईश्वर आ नहीं पाया
लेकिन उसका नुमांइदा बनकर
मेरी ज़िन्दगी में यह आफ़ताब आया है।
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