सपनों का राजकुमार
कथा साहित्य | कहानी ममता मालवीय 'अनामिका'15 Jul 2020 (अंक: 160, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
सुरभि कुछ ख़्यालों में डूबी हुई, अपने घर के आँगन में बैठ कर कुछ सोच रही थी। उसके चेहरे पर एक उदासी और ज़ेहन में हज़ारों सवाल चल रहे थे। उसके अंदर ही इतना शोर था कि बाहर की आवाज़ें भी मानों क्षीण ही प्रतीत हो रहीं थीं।
उसी वक़्त सुरभि की भाभी मीना की नज़र उस पर पड़ी और मीना झट से दौड़ कर आँगन में आ गई।
सुरभि को छेड़ते हुए मीना ने कहा, "आज हमारी ख़्यालों की मलिका किसके सपनों में खोई हुई है?"
ये बात सुनते हुए सुरभि ने एकटक मीना की तरफ़ देखा और हौले से मुस्कुराकर झट से नज़रें झुका लीं।
मीना ने फिर से सुरभि को छेड़ते हुए कहा, "अब बताओ भी सही ननद बाई सा क्या सोच रही हो? कहीं अपने सपनों के राजकुमार के बारे में तो नहीं सोच रही?"
ऐसा कहकर वो ज़ोर से हँस पड़ी।
सुरभि माथे पर कई शिकने उभरीं, आँखों में नमी भरे और कँपकँपाते होंठों से बोली, "भाभी मुझे डर लग रहा है।"
इतना सुनते ही मीना ने भावुक होकर बड़े ही प्यार से सुरभि से पूछा, "क्या हुआ सुरभि किस बात का डर?"
"भाभी आपको पता तो है, पापा मेरी सगाई के लिए लड़का देखने जा रहे हैं।"
"हाँ, तो सुरभि इसमें डरने की क्या बात है? एक न एक दिन तो सगाई-शादी सब करना ही है," मीना ने बड़ी ही सहजता से सुरभि से कहा।
"भाभी, मैं डर नहीं रही, बस कई सवाल मेरे ज़ेहन में चल रहे हैं, और उन सवालों ने मुझे अंदर से झंझोड़ कर रख दिया है।"
"अच्छा बताओ कैसे सवाल?" मीना सुरभि की आँखों मे देखते हुए बोली।
"भाभी मैं नहीं जानती वो कौन, कैसा और कहाँ से होगा? कैसी सोच रखता होगा? निःसन्देह पापा अच्छा घर-परिवार और बाहरी दुनिया को दिख रहे हर सुख-सुविधायुक्त घर-संसार मेरे लिए चुनेंगे। लेकिन मैं दुनियाँ की नज़र में अच्छा दिखने वाली या बनावटी ख़ुशियाँ नहीं चाहती।
"मैं चाहती हूँ कि में जब भी उसे देखूँ, मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ जाए, और मुझे उसकी आँखों के सामने देखना उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सुकून का पल हो।
"दिन भर के काम से थक हार कर जब वो घर लौटे, सिर्फ़ तब उसे मेरी याद न आये। बल्कि जब वो भरी महफ़िल में बैठा हो, उस शोरगुल में भी मेरी दिल की आवाज़ सुन सके।
"वो सिर्फ़ मुझे ही अपना न समझे, बल्कि मेरे सपनों को भी अपना बना ले।
"उसे सिर्फ़ मेरी ख़ूबियाँ ही पसन्द न हों, बल्कि मेरी कमज़ोरियाँ भी उसे सच्चे दिल से मंज़ूर हों।
"मैं चाहती हूँ कि वो भले ही मुझे साल में दो बार ऊँचे पहाड़ों पर घुमाने न ले जा सके तो कोई बात नहीं। लेकिन हर रोज़ रात को चाँदनी रात में मेरे साथ छत पर बैठ कर अपना पूरा दिन मुझे बताए।
"जब मसालों के प्रकार से भी कई गुना ज़्यादा प्यार डाल कर मैं उसके लिए खाना बनाऊँ, तो वो मेरे प्यार की भीनी सुगन्ध महसूस कर सके।
"मेरे साथ वक़्त बिताने के नाम पर सिनेमाघर की खलबली, और रास्ते का ट्रैफ़िक नहीं, बस हमारे घर की बालकनी में बैठ कर उसके हाथ की बनी दो कप चाय हो।
"जब में माहवारी की पीड़ा में रहूँ तो, मुझे उसे ये बात बतानी न पड़े, कि क्या दर्द है मुझे। बल्कि वो मेरे चेहरे के रंग से मेरी तकलीफ़ समझ सके।
"अपने कामों में कितना भी व्यस्त क्यों न हो, लेकिन अगर में बीमार हो जाऊँ तो मेरे सिरहाने बैठ कर मेरे बालों को सहला सके।
"कोई भी बात हमें एक दूसरे से छुपाने की ज़रूरत ही न पड़े, इतना भरोसे का रिश्ता हो हमारा।
"पति पत्नी का रिश्ता सिर्फ़ नाम का तो नहीं होता। बल्कि इस रिश्ते में दोनों के सुख, दुख, दर्द, तकलीफ़ सब एक होते हैं।"
इतना सुनते ही मीना के आँखें से आँसू झलक पड़े।
एक सन्नाटा सा छा गया उसके चेहरे पर, घर के बाहर की चहल-पहल और घर के अंदर से कुकर की सीटी सब की आवाज़ क्षीण हो चुकी थी उसके लिए।
सुरभि के सवालों की आँधी अब मीना के मन को कचोट रही थी। क्योंकि एक वक़्त था जब मीना भी इन्हीं अरमानों के साथ ब्याह करके आई थी। और कुछ ही महीनों में वो इस सच्चाई से वाकिफ़ हो चुकी थी, कि "सपनों का राजकुमार" बस कहानियों में होता है; हक़ीक़त में नहीं। लेकिन फिर भी अपने अंदर की पीड़ा को अपने अंदर की दबा कर मीना मुस्कुराकर बोली, "सुरभि तुम चिंता मत करो, तुम्हें अपने सपनों का राजकुमार ज़रूर मिलेगा।"
ममता मालवीय "अनामिका"
ग्राम झोंकऱ, जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश)
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