उज्जैन दर्शन
संस्मरण | स्मृति लेख ममता मालवीय 'अनामिका'1 Feb 2024 (अंक: 246, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
कुछ तारीख़ें ऐसी होती हैं, जो हमारे जीवन के इतिहास में स्वर्णिम अक्षर से लिखी जाती हैं, उन्हीं तारीख़ में शामिल हैं, 18 जनवरी 2024 की तारीख़।
वो दिन, वो लम्हें, वो यादें, वो हँसी और उस दिन की मस्ती, ये ज़िन्दगी में कभी भुलाई नहीं जा सकेगी और ना ही दोहराई जा सकेंगी। क्योंकि इस दिन वो सब हुआ, जो हमने कभी ख़्वाब में नहीं सोचा था। और वो सब भी, जो हमारा एक ख़्वाब था।
17 जनवरी की रात को अचानक से मुस्कान (बचपन की दोस्त) का मैसेज आया, “कल महाकाल चल रही है क्या? मेरा मन है जाने का।”
हालाँकि महाकाल हम पहले भी बहुत बार जा चुके हैं। मगर इस बार महादेव ने कुछ अलग ही सोच रखा था हमारे लिए।
मैंने कहा, “सुबह सात बजे मैसेज करके बताती हूँ, अभी घर पर पूछना पड़ेगा।” बस इतना कह कर मैं सो गई।
सुबह न जाने क्या हुआ, मैंने घर पर पूछा, घर से जाने के लिए इजाज़त भी मिल गई और हम सुबह आठ बजे उज्जैन के लिए रवाना भी हो गए।
बस में जाते हुए भी यही सोच रहे थे, पहली बार इतनी आसानी से घर से निकलना हुआ है, देखते हैं आज का दिन कैसा जाता है!
बातें करते हुए पता भी नहीं चला हम दोनोंं कब उज्जैन पहुँच गए और वहाँ से महाकाल के लिए रवाना हुए। लाइन में खड़े ही थे कि एक लड़की मिली। उसने आगे रहकर बातें करना शुरू किया।
मैं उसके साथ खड़ी थी और मुस्कान हमारे मोबाइल रखने लॉकर के पास गई। वहाँ मुस्कान को उस लड़की के साथ आया, उसका एक दोस्त मिल गया।
जब तक मुस्कान लौटती तब तक मात्र दस मिनट मैंने उस लड़की से बात की, उसका नाम पूछा। उसने बताया की महाकाल आकर उसने बाहर से एक प्रार्थना की थी, कि “प्लीज़ महाकाल, कोई लड़की दोस्त से मिलवा दो, मुझे अकेला महसूस हो रहा है।” और अंदर आकर उसे हम दोनोंं (मैं और मुस्कान) मिल गए, तो वो बार-बार महाकाल और हमारा धन्यवाद करने लगी।
उस वक़्त उसके चेहरे पर एक उदासी थी। आँखों में पानी था। अपनी मन की पीड़ा लेकर वो महादेव के पास आई थी। साथ में उसका दोस्त, जो उसे मात्र कुछ रोज़ पहले ही मिला था। वो एक मुस्कुराहट के साथ हमसे मिला।
वो लड़की (रोहिणी) और उस लड़के (बाला) ने उनके बारे में हमें बताया। और यही बातें करते-करते हमने दर्शन किए।
जब महादेव के दर्शन कर हम बाहर निकले, तो मानों चारों पक्के दोस्त बन चुके थे। जानने लायक़ सारी बातें उस दरमियान हमने एक दूसरे को बता दीं।
महाकाल प्रांगण में रोहिणी और बाला ने हमें इतनी सारी दुआएँ दी, ज़िन्दगी भर दोस्ती निभाने का वादा किया। चूँकि हम पहले ही मोबाइल लॉकर में रख चुके थे, इसलिए फोटोग्राफर से हमने साथ में हमारी पहली तस्वीर भी खिंचवाई।
अभी तक मुस्कान और मैं कुछ भी समझ नहीं पाए थे, ये क्या चल रहा हैं। मगर उस लम्हें को जी भर कर जी रहे थे। रोहिणी भी अपने सारे ग़म भूल गई थी। बाला बार-बार हमें शुक्रिया बोल रहा था।
वहाँ से निकलते हुए रोहिणी ने कहा, “हम यहाँ नए हैं, तो तुम दोनोंं हमें उज्जैन घुमाओ। और जब तुम दोनों महाराष्ट्र आओगे, तो हम तुम्हें घुमाएँगे।”
बस फिर क्या था, हमने एक ऑटो किया और चल दिए; रोहिणी और बाला को उज्जैन दर्शन करवाने।
महाकाल से गोपाल मंदिर, सांदीपनी आश्रम होते हुए हम नवग्रह धाम पहुँचे। रास्ते में हमें एक बारात जाते हुए मिली।
मुस्कान और मेरा एक ख़्वाब था। “किसी अनजानी जगह, अनजानी बारात में जाकर डांस करना हैं।” तो फिर क्या था; मैं, मुस्कान और रोहिणी चल दिए बारात के मज़े लूटने।
हमारे ऑटो वाले भैया भी अब तक हमारे फ़ैन हो चुके थे। तो उन्होंने ही हमारा वीडियो शूट किया। वहाँ से होते हुए हम नवग्रह धाम पहुँचे।
वहाँ विधिविधान से पूजा की, क्षिप्रा मैया के दर्शन किए। फिर मंगलनाथ होते हुए हम काल भैरव पहुचे।
काल भैरव में हमें नासिक से आए चार लोग और मिल गए। अब हम चार से आठ हो चुके थे। पंक्ति में खड़े रहते हुए कुछ मिनट की बातें हुई, जो एक रोचक अनुभव रहा।
वहाँ से रोहिणी, बाला, मुस्कान और मैं गड़कलिका मंदिर पहुँचे, वहाँ मैंने और मुस्कान ने झूले के मज़े लिए।
उसके बाद रामघाट होते हुए, हम हरिसिद्धि माता मंदिर पहुँचे। वहाँ दर्शन किए और फिर खाना खाया।
अब बारी थी, अलविदा कहने की। रोहिणी और बाला की आँखें नम थीं। मैं और मुस्कान भी भावुक थे। मगर हमारा वहाँ से जल्दी निकलना भी बहुत ज़रूरी था।
मन कठोर कर हम वहाँ से निकल लिए, मगर घर आते-आते बस उनका ही ख़्याल दिल, दिमाग़, ज़ेहन में चल रहा था।
उस दिन की घटना ने मानों ज़िन्दगी को देखने का नज़रिया ही बदल दिया। उस दिन ने हमें बताया कि जब ऊपर वाला हमारे लिए कुछ सोचता है, तो फिर कोई बाधा हमारा रास्ता नहीं काट सकती। हमारी प्लानिंग फ़ेल हो सकती है, मगर जब ऊपर वाला हमारे लिए प्लानिंग करता है, तो वो सबसे बेस्ट होती है।
चाहें ईश्वर देर से देते हैं, मगर जब देते हैं, तो छप्पर फाड़ कर ही देते हैं। और वही देते हैं, तो हमारे लिए बना हो। जो हमारे लिए सही हो, बेस्ट हो।
और अगर ईश्वर हमसे कुछ छीन रहे हैं या फिर हम कुछ चाह रहे हैं, लेकिन वो हमें नहीं मिल रहा; तो इसका सीधा मतलब है, उसे छोड़ो और आगे बढ़ो। क्योंकि वो चीज़ हमारे लिए बनी ही नहीं है। और जो हमारे लिए बना है, वो समय आने पर ख़ुद-ब-ख़ुद चल कर हमारे पास आ जाता है।
इस दिन ने हमें सिखाया की चाहे दुनियाँ पाप से भर गई हो, लेकिन आज भी कहीं ना कहीं सच्चाई, अच्छाई, ईमानदारी, स्नेह जीवित है। बस आवश्यकता है, प्रेम और विश्वास भरे नेत्रों से उसे देखने की।
निरंतर प्रयास, भगवान पर विश्वास और सच्ची निष्ठा जब ये तीनों मिलते हैं, तो समय आने पर सब कुछ मिल जाता है। सारे सपने हक़ीक़त में बदल जाते हैं।
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