वक़्त की पराकाष्ठा
काव्य साहित्य | कविता ममता मालवीय 'अनामिका'15 Nov 2022 (अंक: 217, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
किसी के लिए मेहनत का
नाम है, दो सूखी रोटी;
तो कोई असली घी की भी,
क़द्र नहीं जान पाता हैं।
जिन्हें बिन मेहनत
मिल जाता है बहुत कुछ,
उन्हें रिश्ते और पैसे का
मोल कहाँ समझ आता हैं।
माँ बाप ने लगा दिया,
अपना जीवन फ़र्ज़ के नाम।
संतान का दिया थोड़ा वक़्त,
यहाँ त्याग कहा जाता है।
ये वक़्त की निर्मम
कसौटी तो ज़रा देखो,
इंसान अपनी ग़लतियाँ भी,
किसी को खो कर जान पाता है।
कोई चाहता है
थोड़ा खुल कर हँसना,
तो कोई उस स्वतंत्रता का
मज़ाक बना जाता है।
भरोसे की नींव पर
बनती हैं ऊँची मीनारें,
तो कोई उसी नींव की
बुनियाद हिला जाता हैं।
यही जीवन का कठोर,
दस्तूर है ‘अनामिका’;
दूसरों से की उम्मीदों को
यहाँ जीवित जलाया जाता है।
लेकिन वक़्त की सुंदर,
पराकाष्ठा भी ज़रा देखो।
ख़ुद पर यक़ीन रखने वाला यहाँ,
फ़कीर से बादशाह बन जाता हैं।
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SarojiniPandey 2022/11/08 04:10 AM
बहुत बढ़िया, यथार्थ