पिता का प्रेम
संस्मरण | स्मृति लेख ममता मालवीय 'अनामिका'15 Dec 2021 (अंक: 195, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
आज से 2 दिन पहले मेरी दोनों छोटी बहनों की शादी हुई, लेकिन अब तक यक़ीन नहीं आ रहा है, कि जिन लड़कियों पर लाड़ो-लाड़ो कह कर मैं अपना प्यार लुटाती रहती थी, अब वो किसी की पत्नी और बहू बन चुकी हैं।
“बचपन कब पँख फैला कर उड़ गया और जवानी ने कब ज़िम्मेदारी के थैले थमा दिए पता ही नहीं चला। शायद यही जीवन का सबसे बड़ा बदलाव का क्षण होता है, जब ज़िन्दगी एक तेज़ रफ़्तार में भागती है, और हम ख़ुशी और ग़म के आँसू की पहचान में उलझे रहते हैं।”
कहने को तो खुशबू और निकिता मेरे मामा की लड़कियाँ है, मगर मेरे लिए वो दोनों हमेशा मेरी बेटियों जैसी रहीं।
छोटी से छोटी परेशानी उन्हें मुझे बताने में कभी देर नहींं लगी, जैसे छोटा सा बच्चा शिकायत करने जाता है अपनी माँ से, वैसे ही साथ न होकर भी उनकी हर बात मुझे हमेशा से पता रहती थी। शायद इसी लगाव ने हमारे दिल के रिश्ते को ख़ून के रिश्ते से बड़ा बना दिया।
"रिश्ते वही ख़ूबसूरत होते हैं, जो दिल से जुड़े रहते हैं, वरना सम्मान और प्रेम से विहीन ख़ून के रिश्ते मात्र व्यक्ति के लिए बोझ बन कर रह जाते हैं।”
पूरी शादी में सबकुछ यादगार था, साथ खाना-पीना, हँसना-खेलना, नाचना-गाना और थोड़ी बहुत नोकझोंक। मगर एक घटना हृदय को झँझोड़ने वाली थी और वो है मेरी दोनों छोटी बहनों की विदाई।
मैंने अपने मामा और पापा को बहुत ही कम बार रोते हुए देखा है। पिछले कुछ साल में नानीजी, बड़े मामा, मेरे बड़े पापा, दादी जी इन सबके गुज़र जाने पर भी मामा और पापा ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्हें दुःख बहुत हुआ, मगर वो कभी टूट कर नहीं बिखरे।
मगर जब मेरी बहनों की विदाई का समय आया, तब मैंने उन दोनों मज़बूती की मिसालों को बच्चों की तरह बिलखते हुए रोते देखा। तब महसूस हुआ कि—
"किसी की मृत्यु के दुःख से भी बड़ा दुःख है, एक पिता के लिए अपनी बेटी को विदा करना। कठिन से कठिन परिस्थितियों में हिम्मत भरने वाला एक पिता भी बेटी की विदाई देख कर टूट जाता है।”
माँ अक़्सर अपनी संतान को अपने कलेजे से लगा कर अपना प्रेम जता देती है, मगर एक पिता कभी इतनी सहजता से अपना प्रेम अपने बेटे या बेटियों को नहीं जता पाता।
मेरी दोनों छोटी बहनों को बचपन के बाद शायद ही कभी मामा ने गले से लगाया होगा, मगर उनकी विदाई के समय उन दोनों को मामा ने इतना कस कर अपने कलेजे से लगाय, कि बड़ी मुश्किल से उनकी बाजुओं से उन्हें जुदा करना पड़ा। उस दिन एक मज़बूत हृदय पिता की आँखों की पीड़ा देखकर शायद ईश्वर ने भी अश्रु बहा दिए होंगे। इस दृश्य को देख कर मेरा हृदय पसीज गया, मैंने महसूस किया कि—
"चाहे एक पिता कभी भी अपनी बेटियों को अपना प्रेम न जता पाए, मगर एक पिता से ज़्यादा प्रेम एक बेटी को संसार में कोई दूसरा नहीं कर सकता"।
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