जीवन एक भ्रम है
आलेख | चिन्तन ममता मालवीय 'अनामिका'1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
कुछ पल में लोग याद बन जाते हैं और कुछ पल में ज़िंदगी बदल भी जाती है। कुछ पल में ज़िंदगी जी भी सकते हैं और कुछ पल में ज़िंदगी की वज़ह गुम भी हो जाती है।
कभी-कभी किसी के दुःख को देख कर अपने जीवन की हर परेशानी बड़ी छोटी लगने लगती है। लगता है किसी को ज़िंदगी से हमेशा के लिए खो देने से तो बेहतर हैं, छोटे–मोटे मन-मुटाव। कम से कम ये उम्मीद तो ज़िंदा रहती ही है कि आज न कल वो लोग हमसें बात ज़रूर कर लेंगे। आज नहीं तो कल सब ठीक हो ही जाएगा।
मगर जब आप किसी को हमेशा के लिए खो देते हैं, तब ज़िंदगी में इस सच्चाई को क़ुबूल करना ज़्यादा मुश्किल हो जाता है। क्योंकि आप उस वक़्त इस बात से निश्चित ही वाकिफ़ होते हैं कि आपके चीख़नेख, चिल्लाने, रोने, यहाँ तक कि अपनी जान भी दे देने से, वो शख़्स वापस नहीं आएगा। न ही आपके आँसू पोंछ कर आपको सीने से लगाएगा।
दो दिन पहले मेरे बड़े पापा हम सबको छोड़ कर हमेशा के लिए चले गए। मैंने अपनी आँखों के सामने उन्हें इस संसार से मोह तोड़, किसी और संसार में जाते देखा।
"किसी का जाना इतना निश्चित है कि हम उस वक़्त एक पत्थर की शिला बन जाते हैं। ऐसी शिला जो सब देख पा रही है, मगर न कुछ महसूस कर पाती है और न ही दौड़ कर उस भयाभह घटना को घटित होने से रोक पाती है"।
मत्यु शैय्या पर लेटे बड़े पापा को देख कर हम सभी उनसे जुड़ी हमारी स्मृतियाँ याद कर रो रहे थे। लेकिन कलेजा फटना, दुनियाँ उजड़ना किसे कहते हैं? ये मैंने अपनी बड़ी माँ को चीख़ते हुए देख कर महसूस किया।
"शायद स्वयं की मृत्यु की घड़ी से भी बुरी घड़ी है, अपने जीवन साथी की मृत्यु देखना"।
अपने पति को सीने से लगाकर चीख़ती, चिल्लाती,विलाप करती स्त्री को देख कर जीवन की सारी उलझनें छोटी लगने लगीं। संसार के सारे दुःख छोटे थे, उस दिन उस स्त्री के सामने जिसे कोई अचानक अपने पति की मृत देह के पास ला कर बिठा दें। उनकी अनवरत शिकायतें और विलाप को देख कर भी आज उनका जीवन साथी मुख पर एक तेज लिए मधुर मुस्कान बिखेर रहा था।
"जाने वाले लोग इतने निष्ठुर हो जाते हैं कि जिसके लिए वो जीते हैं, उनके रो-रो कर मर जाने पर भी वो लौट कर नहीं आते।"
अपने जीवन में घटित इन असमय घटनाओं को देख कर बस यही महसूस होता है—
"ज़िंदगी का हर पल आख़री समझ कर, ख़ूब जी लीजिए;
अपने मन की हर बात जिसे कहना है, अभी कह दीजिए;
देनी है अगर ख़ुशी किसी अपने को, तो देर मत कीजिए;
ये जीवन मात्र एक भ्रम है, बस इतना जान लीजिए"।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
25 वर्ष के अंतराल में एक और परिवर्तन
चिन्तन | मधु शर्मादोस्तो, जो बात मैं यहाँ कहने का प्रयास करने…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- आँचल
- आत्मविश्वास के झोले
- एक नई सोच
- एक ज़माना था
- कर्तव्य पथ
- गुमराह तो वो है
- चेहरा मेरा जला दिया
- जिस दिशा में नफ़रत थी
- जीवन पाठ
- डर का साया
- मंज़िल एक भ्रम है
- मंज़िल चाहें कुछ भी हो
- मदद का भाव
- माहवारी
- मुश्किल की घड़ी
- मेरे पिया
- मैं ढूँढ़ रही हूँ
- मैं महकती हुई मिट्टी हूँ
- मैंने देखा है
- विजय
- वक़्त की पराकाष्ठा
- संघर्ष अभी जारी है
- संघर्ष और कामयाबी
- समस्या से घबरा नहीं
- सयानी
- क़िस्मत (ममता मालवीय)
- ज़िंदगी
स्मृति लेख
चिन्तन
कहानी
ललित निबन्ध
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं