कर्तव्य पथ
काव्य साहित्य | कविता ममता मालवीय 'अनामिका'1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
बजती रह जाती है, घड़ी अब अलार्म की; 
न जाने कौन सा जुनून मुझे, 
अब पहले जगाने लगा है। 
 
अनवरत चलकर भी, थकते नहीं अब पैर मेरे; 
न जाने कौन सा नया आसमाँ, 
मुझे अब बुलाने लगा है। 
 
इन पराकाष्ठा की घड़ी पर, अब क्या लिखे ‘अनामिका’; 
न जाने कौन सा नया इतिहास, 
ईश्वर मुझसे लिखाने लगा है। 
 
मगन अपनी धुन में, मैं बड़ चली कर्तव्यपथ पर; 
मेरे किरदार पर जग सारा, 
अब सिर झुकाने लगा है।
 
मुझे इल्म सिर्फ़ एक सत्य, मेहनत, प्रयत्न और विश्वास का; 
दुआओं के सजदे से ही, 
मेरा आज और कल मुस्कुराने लगा हैं। 
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टिप्पणियाँ
दिनेश गजटा चौपाल शिमला हिमाचल प्रदेश । 2022/12/26 06:47 PM
कविता रचना में रुचि ।
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भरत भट्टी 2022/12/26 07:03 PM
हंमेशा सकारात्मक उर्जा भरी रचनाए बना कर लोगों में एक आत्मविश्वास जगाने का काम करती हो बहना ❤️