उम्मीद
आलेख | चिन्तन ममता मालवीय 'अनामिका'1 Feb 2023 (अंक: 222, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
घड़ी की सूई की टिक-टिक और हृदय की धड़कन की आवाज़, तब सबसे ज़्यादा दर्दनाक लगती हैं; जब कोई अपना, दवा की बोतल से गिरती बूँदों के साथ उम्मीद की गिनती गिनता है।
उम्मीद, सब कुछ ठीक होने की; उम्मीद अपने सपने पूरे करने की, उम्मीद अपनों के लिए जीने की, उम्मीद संकट की घड़ी जल्दी बीत जाने की, उम्मीद . . . उम्मीद . . . उम्मीद!
“जीने के लिए चाहे साँसों का चलना ज़रूरी हो, मगर दुनियाँ तो आज भी उम्मीद पर ही टिकी है। हालाँकि मेरा मानना है, हमें उम्मीद रखनी भी चाहिए, लेकिन सिर्फ़ ख़ुद से। क्योंकि दूसरों से की गई उम्मीद तो, मात्र उपेक्षा ही देती है।”
आज हर कोई चाहता है, सितारों सा चमकना। मगर कोई भी टूट कर बिखरने की हिम्मत नहींं रखता। उपलब्धि के शिखर पर बैठे व्यक्ति की तो, हर कोई वाह-वाह करने पहुँच जाता है; मगर कोई भी उसके पैर के छाले नहीं देखता।
आज ख़ुद को दो पल रोक कर, जब पलट कर देखती हूँ, तो मुझे ख़ुद से ही आगे का संघर्ष जारी रखने की प्रेरणा मिल जाती है। क्योंकि चारों तरफ़ अँधेरे से घिरे होने के बावजूद, मात्र ख़ुद पर विश्वास रखकर, उम्मीद की लौ अपने मन में जलाकर, मैं हर दफ़ा एक नए प्रकाश की ओर पहुँची हूँ।
जब-जब महसूस हुआ जीवन एक काले गर्त में समा जाएगा, तब-तब मात्र विश्वास और उम्मीद ने मुझे फिर से एक नई सुबह दिखाई है।
अपने जीवन अनुभव से मैंने सीखा है, कि जब-जब घड़ी की सूई टिक टिक और हदय की धड़कन की आवाज़, आपको बेचैन करने लगे, तब-तब सदैव ख़ुद पर विश्वास रखें। और एक सकारात्मक सोच और उम्मीद के साथ आगे बढ़ते जाएँ।
यक़ीन मानिए फिर कोई भी काली रात इतनी बड़ी नहीं हो सकती कि वह आपकी आने वाली ख़ूबसूरत भोर को रोक सके।
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