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कर्म का फल: मलाल

 

“आख़िर में सब मर जायेंगे अपनी-अपनी मौत, 
सबको किसी न किसी बात का मलाल रह जायेगा।”

कहीं सुना था ये शेर, पता नहीं किसने लिखा मगर दिल को छू गया। आख़िर सच ही तो है, हम चाहें कितना भी वक़्त की दौड़ में साथ भागने की कोशिश करें। लेकिन कुछ-न-कुछ मलाल हर किसी के जीवन में रह ही जाता है। 

अक़्सर कोशिश करती हूँ, दूसरों की ग़लतियों से सीखने की, क्योंकि ख़ुद ग़लती कर के सीखने के लिए ये उम्र ज़रा कम पड़ती है। मगर कुछ चीज़ें शायद ख़ुद पर बीतने के बाद ही समझ आती हैं। 

उम्र का एक चौथाई हिस्सा सपने के पीछे भागने में गुज़र गया और तीन चौथाई हिस्सा कोरे काग़ज़ सा पड़ा है, ये भी नहीं जानती उन पन्नों पर कुछ लिखने का मौक़ा मिलेगा या नहीं। मगर हर रोज़ का पन्ना ऐसे पूरा करती हूँ, कि यदि वो आख़री हुआ तो मुझे कोई मलाल न रहे। 

अक़्सर लोगों के सामने एक कश्मकश रहती है, सपने और अपनों के बीच किसी को चुनने की। कुछ लोग सपनों के लिए अपनों को छोड़ देते हैं। तो कुछ अपनों के लिए सपनों को भुला देते हैं। मगर बहुत कम लोग ही ये बात समझ पाए हैं, कि ‘अपने वही हैं, जो सपनों में साथ दे। और सपना वही हैं, जो अपनों का महत्त्व समझें।’

इस दुनिया में केवल उन्हीं लोगों के जीवन में कोई मलाल नहीं बचेगा, जिन्होंने अन्तिम क्षण तक निभाने की कोशिश की है। जो सपनों की दौड़ में भाग कर लहूलुहान हुआ है। और जिसने अपने मुख से निकले प्रत्येक शब्द के प्रति निष्ठा रखी है। साथ ही उसे निभाने का हर सम्भव प्रयास किया है। 

क्योंकि कुछ लौट कर आएँ या ना आएँ, मगर कर्म के बंधन से कोई व्यक्ति नहीं बच सकता। किसी की दुआएँ जीतना असर करती हैं, उतना ही प्रभाव कर्म के फल का होता है। जैसे वक़्त आने पर दुआएँ असर दिखा देती हैं, वैसे ही समय आने पर कर्म का फल हर इंसान को भुगतना पड़ता है। 

‘अच्छे और समय पर किए गए कर्म, अमृत बूटी बन इन्सान को मर कर भी अमर कर देते है। और बुरे कर्म या कर्म से भाग जाना, मलाल की आग में इन्सान को जला कर तिल-तिल कर मारता है।’

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