मलाल
आलेख | चिन्तन ममता मालवीय 'अनामिका'1 Jan 2023 (अंक: 220, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
सफ़र से मुझे हमेशा प्रेम रहा हैं, मगर पीछे छूटते मोड़ अक़्सर मुझे एक बात सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि आख़िर कुछ ऐसा तो नहीं छूट रहा पीछे, जिसके खोने का मलाल मुझे आगे जाकर हो।
“मलाल कंठ में अटके जल के समान है, जिसे सही करने के लिए भी, हमें फिर से जल पीना पड़ता है।”
जीवन की राह में पड़ने वाले प्रत्येक लम्हें को पूरे मन से जीते हुए आगे बढ़िए; क्योंकि ये लम्हें रास्तों में पड़ने वाले मोड़ के समान हैं, जो एक बार गुज़र गए तो बस मलाल पीछे छोड़ जायेंगे। और ज़िन्दगी के मलाल को दूर करने के लिए फिर से ज़िन्दगी चाहिए, जो मिलना असंभव हैं।
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