क़िस्मत (ममता मालवीय)
काव्य साहित्य | कविता ममता मालवीय 'अनामिका'1 Oct 2019
क़िस्मत भी बड़ी अजीब पहेली,
न जाने किस किस की सहेली।
कभी हँसाती, कभी रुलाती,
कभी बेगाने के संग मौज मनाती।
ज़िंदगी का हर रंग दिखाती है,
ये क़िस्मत भी हमे कितना आज़माती है।
क़िस्मत की हर बात निराली,
सुनाती हर दफ़ा एक नई कहानी।
कभी डराती, कभी मनाती,
कभी बेगानों को अपना बनाती।
ख़ुद पर भरोसा करना सिखाती है,
ये क़िस्मत भी हमे कितना आज़माती है।
क़िस्मत की एक रीत पुरानी,
वो दे जाती, जो मन ने ना हो ठानी।
कभी ख़ुशी, कभी तराना,
कभी न सोचा वो मिल जाना।
हर बुरे वक़्त से लड़ना सिखाती है,
ये क़िस्मत भी हमें कितना आज़माती है।
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