अलविदा 2023
आलेख | चिन्तन ममता मालवीय 'अनामिका'15 Jan 2024 (अंक: 245, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
पता ही नहीं चला और ये साल बीत गया। मानों कल की ही बात हैं, जिस दिन सवेरे जल्दी उठ कर मैं 1 जनवरी का लेख लिख रही थी। और आज अपनी पसंदीदा जगह बैठ कर सर्द हवाओं का लुत्फ़ लेते हुए, साल का आख़री ब्योरा लिखा रही हूँ।
इस साल की शुरूआत चाहें मेरे लिए कठिन रही, मगर साल का अंत जीवन को एक नए मोड़ पर ले आया है। जहाँ से मैं नहीं जानती, किन रास्तों से होकर मंज़िल तक पहुँच पाऊँगी। लेकिन इतना विश्वास ख़ुद पर ज़रूर है, कि अपने जीवन को एक सार्थक अर्थ देने का हर सम्भव प्रयास ज़रूर करूँगी।
साल के शुरूआत में पापा की तबियत बहुत ख़राब रही, इसलिए मन थोड़ा सहमा हुआ था। लेकिन उस कठिन वक़्त ने मुझे बहुत कुछ सीखा दिया।
‘कठोर समय हमें बताता है कि निःस्वार्थ प्रेम और एक सच्चे साथी के सिवा, जीवन में हमें कुछ नहीं चाहिए। और वो साथी और निःस्वार्थ प्रेमी, मात्र माता-पिता होते हैं। जो ख़ुद को भुला कर अपनी संतानों से प्रेम करते हैं, सदैव उनका साथ देते हैं।’
घर की परेशानियों के बीच कई सारी परीक्षाएँ भी रहीं, ऐसी परिस्थिति में मन को एकाग्र करना थोड़ा कठिन रहा। हालाँकि इस वक़्त भी पापा मेरे साथ थे, मेरी हिम्मत बढ़ा रहे थे। इस बात की बहुत तसल्ली थी। फिर मैंने भी ख़ुद को एक बात समझाई:
“ये ज़िन्दगी अंगारों की बिसात है,
यहाँ ठंडी छाँव नहीं मिलेगी।
गर मिल गई उपलब्धि तुम्हें,
तो साथ संघर्ष की तलवार मिलेगी।”
ख़ैर अप्रैल आते-आते पापा की तबियत पूरी तरह ठीक हो गई। इसी बीच मुझे बहुत अच्छे दोस्त भी मिले। ऋषिता, प्रतीक, राहुल के साथ, मैंने दोस्ती के यादगार पल गुजारे।
और सबसे प्यारा व्यक्ति भी इसी साल मेरे जीवन में आया, वो थी ‘हृतंभरा मैम’।
उनसे मिलकर लगा, मानों सदियों का रिश्ता रहा है हमारे बीच। मैम से दोस्ती होना, इस साल की सबसे ख़ूबसूरत घटना रही।
इसी साल कुछ भरोसेमंद लोगों को मन से दूर जाते हुए भी देखा। जिन्हें अपना मान कर मैंने सदैव प्राथमिकताओं में रखा। लेकिन कहते हैं ना, स्वार्थ पर टिके रिश्ते ज़्यादा वक़्त तक नहीं टिकते।
“स्वार्थ अपने माथे पर,
कभी ‘स्वार्थ’ लिख कर नहीं आता;
वानर अपनी फ़ितरत के कारण,
कभी घरौंदा नहीं बनाता।
और तुम चाहे सर्वस्व कर दो समर्पण,
रिश्ते निभाने के लिए।
मतलब से साथ आया व्यक्ति,
कभी साथ नहीं निभाता।”
ख़ैर मेरा सदैव से मानना रहा हैं, ‘किसी के चले जाने से ज़िन्दगी नहीं रुकती, बल्कि एक नए अध्याय की शुरूआत होती है।’
अनेक उतार–चढ़ाव के साथ साल बीतने ही वाला था कि नवंबर में मेरे अंकल चल बसे। उनका अचानक से चले जाना, मन को तोड़ गया। लेकिन एक बात भी समझ में आई:
‘जीवन में सबकुछ अस्थायी है, यहाँ तक कि साँसें भी। यह कब साथ छोड़ दें, कोई नहीं जानता। फिर किसी व्यक्ति के जीवन से चले जाने या सफ़र में हाथ छूट जाने का दुःख कैसा? जैसे साँसें छूट जाने के बाद, हमें उससे कोई गिला नहीं रहता; वैसे ही सफ़र में हाथ छोड़ने वालों से शिकायत भी नहीं करनी चाहिए।’
ख़ुशी, ग़म, मुस्कुराहट, उत्साह, प्रेम, इंतज़ार, निराशा, तड़प और भी बहुत कुछ दिया इस साल ने। इतना कुछ कि जिसे एक लेख में समेट पाना मुश्किल हैं। शुक्रिया 2023 मुझे कल से बेहतर बनाने के लिए। शुक्रिया मेरे जीवन में इतने रंग बिखेरने के लिए।
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