विजय
काव्य साहित्य | कविता ममता मालवीय 'अनामिका'1 Dec 2020 (अंक: 170, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
जब जब धर्म की हुई हानि,
बुराई ने किया सर ऊँचा।
तब अच्छाई ने किया जयघोष,
हुआ विजय का परचम ऊँचा।
राम आए निज धरा पर,
करने राक्षसों का संहार।
हुई अच्छाई की विजय,
छाया चहुँमुखी सत्य प्रकाश।
कृष्ण ने मुक्ति दी कंस को,
किया विजय का शंखनाद।
पाप कलुष को मिटाने आए।
यशोदा रानी के घर जगन्नाथ।
पाप एक दिन इतना छाया कि,
समस्त धरा हुई, बुराई से मलिन।
तब विष्णु ने लिया अवतार ,
बचाई अबला की आन होने से क्षीण।
इतिहास बना है सदैव साक्षी,
जब हुई है अच्छाई की हार।
तब सत्य से उठाया शस्त्र,
किया बुराई का संहार।
लेकिन इतिहास, इतिहास में दब गया,
कलियुग पाप का घड़ा बन गया।
अब विजय का तात्पर्य शक्ति है,
जिसके पास धन उसी की भक्ति है।
अब हर तरफ़ अन्याय हो रहा,
शोषण के स्वर गूँजते हैं।
विजय सिर्फ़ उसी की होती।
जिसके जेब में नोट बजते हैं।
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