मैंने देखा है
काव्य साहित्य | कविता ममता मालवीय 'अनामिका'1 Mar 2021 (अंक: 176, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ख़्वाहिशों का ऊँचा आसमान देखा है,
मैंने तकलीफ़ में, एक मज़बूत बाँध देखा है।
जहाँ बिन माँगे पूरी होती है, हर मन की मुराद;
मैंने ईश्वर अल्लाह का, ऐसा दरबार देखा है।
मेलों में मज़बूत कंधों का साथ देखा है।
चोट पर मरहम लगाता, कोमल हाथ देखा है।
जिसके साथ लगता है, पूरा बाजार है अपना;
मैंने जीवन में इतना बड़ा, ख़रीददार देखा है।
जिसके साथ हर रिश्ता, अपना बनता देखा है।
मौजूदगी में उसकी, लोगों का बदलता रुख़ देखा है।
जब तक वो है साथ, किसी बात की चिंता नहीं;
मैंने अपने आगे चलता, एक सीना विशाल देखा है।
त्याग, समर्पण, कर्तव्य और प्रेम का,
मैंने जीता जागता दृष्टांत देखा है।
मैंने देखा है ईश्वर का प्रत्येक रूप;
अपने पिता में मैंने, सम्पूर्ण संसार देखा है।
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