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त्रासदी

जीवन में जब त्रासदी आती है, तो प्रत्येक दिशा काँटों की दीवार सी प्रतीत होती है। कुछ अच्छा करने की इच्छा से उठाया गया क़दम भी, ठोकर में तब्दील हो जाता है। 

इसी त्रासदी की घड़ी में जीवन के सभी महत्त्वपूर्ण कार्य, प्रत्यक्ष खड़े होकर आपसे जुनून और हुनर का प्रमाण मागते हैं। तो इसी त्रासदी की घड़ी में एक तूफ़ान आपके घर की छत को डगमगा देता है। चारों तरफ़ इतना कुछ बिखरा होता है कि चाहे आप किसी को भी समेटें, कुछ तो ज़रूर छूटेगा। और इस बिखराव के प्रत्येक कण से आपको इतना लगाव होगा कि समेटे हुए की ख़ुशी मनाने से आपकी अंतरात्मा इंकार कर देगी। 

ये त्रासदी की घड़ी इतनी विकराल होगी कि मुख से निकला सरल शब्द भी सामने वाले को त्रिशूल सा प्रतीत होगा। तो वहीं घाव भरने की मनोकामना से किए गए प्रयास का भी, कोई मोल नहीं समझा जाएगा। 

मगर एक बात सदैव याद रखना, प्रकृति का एक अक्षुण्ण नियम है कि “हर त्रासदी की घड़ी, एक नए जीवन के संचार की प्रथम सीढ़ी होती हैं। कई बार कुछ तूफ़ान बुराई के साथ, कुछ अच्छाई का नाश ज़रूर करते हैं, मगर वही तूफ़ान आने वाले नए स्वर्णिम भविष्य की नींव भी रखते हैं।”

इसलिए घड़ी चाहे त्रासदी की हो या ख़ुशहाली की, आप सदैव अपने कर्तव्य पर अडिग रहें, क्योंकि “कर्तव्य निष्ट व्यक्ति ही भविष्य का प्रेरणास्त्रोत बनता है, और कर्तव्य से विमुख हुआ व्यक्ति, त्रासदी की घड़ी में पतन का पात्र।”

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