आभासी बेड़ियाँ
काव्य साहित्य | कविता जितेन्द्र 'कबीर'1 Oct 2021 (अंक: 190, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
पिंजरे का पंछी
उससे बाहर निकलकर भी
उड़ान भरने में हिचकिचाता है
बहुत बार,
वो दर-असल क़ैद है
कुछ ख़ुद की बनाई
मर्यादाओं में
और कुछ समाज की खींची
लकीरों में,
सुदूर आकाश में आज़ाद
उड़ने की उसकी तमन्ना
सिर उठाती है बहुत बार
लेकिन परिणाम की सोच कर
ठंडा पड़ जाता है
ख़ून का उबाल,
अनंत आकाश का आकर्षण
जहाँ उसकी
ज़िंदादिली को ललकारता है
वहीं प्रतिकूल परिणाम का डर
मजबूर करता है उसको
पिंजरे की क़ैद में
लगातार बने रहने के लिए।
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