आस्था
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
आओ हम दीपक जलायें
आस का विश्वास का।
राम की ही आस्था का
राम के इतिहास का।
आओ हम दीपक जलायें आस का विश्वास का।
आज भी रावण यहाँ है
छ्ल कपट विनाश का।
राम फिर अवतरित होंगे
दीप बन के प्रकाश का।
आओ हम दीपक जलायें आस का विश्वास का।
मेट कर रावण जगत को
राम औ भरत मिलाप का।
लखन की उस साधना का
उर्मिला हिय आस का।
आओ हम दीपक जलायें आस का विश्वास का।
आतंक का तम छा रहा है
तांडव होता है विनाश का।
आज के दानव छिपे हैं
ले आश्रय तम पाश का।
आओ हम दीपक जलायें आस का विश्वास का।
आज का यह पर्व सबको
शुभ्र हो सुचितास का।
राम का गुण गान होगा
हर भवन उल्लास का
आज की दीपावलि में, अवलि हो मन स्नेह की
भ्रात भाव की लगन लगाये पर्व ये उल्लास का।
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