होली में ठिठोली
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
होली में ठिठोली करत बरजोरी श्याम,
लागत न लाज आज एैसो रंग डारत है।
सांवली सलोनी सी सूरति मन भावत है,
होली, होली, होली कह नाचत नचावत है।
जन जन झूमत है रंग रंगे मोहन के,
प्रेम पिचकारी भर रंग में भिजावत है।
ऐसो रंग डारत भिगोए मन आत्मा को,
कान्हा मुस्कात जात मेरो मन गावत है।
रंग हुड़दंग मचा ग्वालन के बीच आज
सब गली ग्राम ग्राम बृज जैसो लागत है।
आयो है बसंत लायो फुलवा के भिन्न रंग
होली देख हुलसित मन प्रेम रंग चाहत है।
उड़त गुलाल मुख चमके है अबीर भाल
राधा की सहेली सैन नैनन के मारत है।
बाजत मृदंग ढोल फागवा में तीन ताल,
नाच नाच नटखट गोपियाँ रिझावत है।
भिन्न भिन्न भाषा का अपना तो भारत है,
निज निज धुन सब लोक गीत गावत है।
एक ऐसा गीत लिखें प्रेम अनुराग का ही
आओ सब कन्ठ मिलें, सबका ही स्वागत है।
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