मन की बात
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
जब तक तन है तब तक मन से
मन की बात नहीं जायेगी॥
बीत गई जो रजनी सुहानी
फिर वह रात नहीं आयेगी॥
तक तक हार गया है चातक
स्वाति बूँद पाई न अब तक ॥
आज नहीं तो कल इस जग मे
तेरी बात कही जायेगी॥
सुन न सका जग जो विपदायें।
उनको धीरज कौन दिलाये॥
तुम लिख देना मीत प्रीत ही।
हिय को सदा वही भायेंगी॥
सब कुछ भूला भुला सका ना।
एक घड़ी का वह अपनापन ॥
बुला रहा अब उसी घड़ी को।
क्या वह पास कभी आयेगी॥
घाव दिये हैं उसने मन को
भाव दिये थे हमने जिनको ॥
बुझते दीपक से अब बोलो
कब तक घात सही जायेगी॥
करते जो उपहास आज हैं
भरते साँसें बिना काज हैं ॥
मेरी व्यथा व्यर्थ ना होगी
मेरी कथा लिखी जायेगी..॥
भावों की भीगी झोली में
कितने मोती तुम्हें दिखाऊँ ॥
कल इन मोती की कीमत तो
स्वयं जगती ही बतलायेगी ॥
पुष्प खिलाया हृदय लगाया
कुन्ज कुन्ज भँवरा मँडराया॥
अमराई में बौर नहीं है
कोकिल राग नहीं गायेगी॥
स्नेह सिक्त थीं नहीं रिक्त थीं
प्रेम भाव की बे सब बगियाँ॥
क्यों उनका अभाव आज है।
क्या मधुमास कभी पायेंगी॥
मुर्झाये पौधे उपवन में।
उनमें प्राण जल कौन भरेगा॥
क्या ये उपवन फिर महकेगें।
क्या बरसात कभी आयेगी॥
ले मन मे एक प्रश्न आज मैं।
जग की ओर निहार रहा हूँ॥
आतंकवाद की काली छाया।
की क्या रात कभी जायेगी॥
दीप जला कर मानवता का।
सबको है कालिमा मिटाना॥
इस वसुधा मे हर प्राणी की
शान्ति गात ही मुस्कायेगी ॥
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