दिव्य मूर्ति
काव्य साहित्य | कविता भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'3 May 2012
जन्म दे माता न फूली समाई तुम्हें,
भारत में जन्मे यह गौरव मिला है हमें।
तुम तो संसार के युग सृष्टा थे मग दृष्टा थे,
देश यह अमर है कि जिसने पाया है तुम्हें।
आदर से निहारा था तुमने सभी धर्मों को,
भारत के भाल को उठाया निज बचनों में।
तुमने ही सर्व प्रथम जग को कुटुम्ब मान,
भाई बहन कह कर पुकारा था अमेरिकनों में।
तुमसे ही प्रकाशित हुआ अन्धकार मय जगत,
सत्य तो यही है कि तुम थे एक दिव्य मूर्ति।
जगत को तुमने एक नव प्रेरणा दिलाई थी,
जिसका प्रत्यक्ष रूप घर घर में तुम्हारी मूर्ति।
भारत की भूमि भूरि भूरि क्या प्रशंसा करे,
कहता है सकल विश्व अनेकों में तुम हो एक।
परम हंस गुरु ने बनाया तुम्हें भी अति परम,
पूजनीय पावन हो आदरणीय हो तुम ही एक।
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